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अनेकान्त
[माध, बीर-निर्वाथ सं. २
हरिभवसरि चैत्यवासी संप्रदायके थे वा अन्य संप्रदाय MENIMANAMEANAME के, यह कह सकना कठिन है। किन्तु कोई २ इन्हें ' रेवासी संप्रदाय के ही मानते हैं । उस समयमें चैत्य
'वीरशासनांक' पर कुछ सम्मतियाँ पासी और पस्तिवासी ऐसे दो प्रबल दल उत्पन्न होगये थे। इन दोनोंके परस्परमें समाचारी विषयको लेकर
___ (६) श्री बालमुकन्दजी पाटौदी 'जिज्ञासु,' काफी वाद-विवाद, वाकसह एवं संघर्ष चलता था,और
किशनगंज कोटाइस प्रकार ये वो विरोधी दल होगये थे-ऐसा ज्ञान होता है। अंतमें चैत्यवासी संप्रदाय विक्रम सं०१००० "अनेकान्तका विशेषांक मुझे मिल गया है। के भासपास समाप्त होगया और खरतर गडके संस्था- उसके गढ़ साहित्य, गहरे अन्वेषण व पूर्णविचारसे पक श्रीजिनेश्वरसूरिने अपने अनुयायियों के लिये वि० लिखे गये लेखोंकी प्रशंसामें कुछ लिखनेके लिये मैं सं० १.८० में वस्तिवास स्थिर किया।
स्वयं अयोग्य हूँ-लिखनेकी शक्ति नहीं रखता । मैं इस परिस्थितिके सिंहावलोकनसे हरिभवसरिका इसे भले ही पूर्ण रूपेण न समझ पाऊँ परन्तु पढ़ता काल जैन साहित्य, जैन संस्कृति और जैन प्राचार मैं उसे बड़े ध्यानस और बड़ी शान्तिसे हूँ। मैं उसे क्षेत्र में एक संक्रान्ति काल कहा जा सकता है। अतः एकाग्र मनसे एकान्तमें पढ़कर बड़ा ही आनन्द लाभ हरिमहसूरिका आविर्भाव जैन इतिहासमें अत्यन्त करता हूँ। और हृदयसे मैं उसकी उन्नति चाहता हूँ महत्वका स्थान रखता है । इसलिये यदि इन्हें "कलि- और चाहता हूँ उसके सदैव निरन्तराय दर्शन । काज-सुधर्मा" कहा जाय तो यह युक्ति संगत प्रतीत
जैन लक्षणावली लिखनेका आपका अनुष्ठान होगा । यही संक्षेपमें प्राचार्यश्रीके पूर्वकालीन और तत्कालीन साहित्यिक एवं प्राचार विषयक स्थितिकी
___ बहुत ही प्रशसनीय है और ऐसे ग्रन्थकारोंकी जैन
' संसार व जैनेतर संसारको बहुत बड़ी आवश्यकता स्थूल रूप रेखा है। अब भागे इनकी जीवनी और
र है। यह ग्रन्थ जैन संसारकं रत्नकी उपमा धारणकरतस्मीमांसा, साहित्य-रचना म तत्प्रभाव एवं निबन्ध
ने वाला होगा । इससे लोगोंकी बहुत बड़ी ज्ञानसे संबंधित अन्य अंगोंके संबंध लिखनेका प्रयास होगी।
"श्रीमानकी 'मीनसंवाद' नामक कविता बडी ही ज्ञात होता है कि श्वेताम्बर संप्रदायमें विक्रमकी हृदयस्पर्शी है उसका यह वाक्य "गुंजी ध्वनी अंबर१५ वीं शतान्दिके आसपास या इसके कुछ पूर्व पुनः लोकमें यों, हा ! वीरका धर्म नहीं रहा है !!" तो माधु संस्थामें चैत्यवासी जैसी स्थिति पैदा होगई होगी; बड़ा ही हृदयमें चुभ जानेवाला और घुलजानइमीलिये प्राचारकी दृढताके लिये धर्मप्राण लोकाशाहने वाला है।" चुनः वस्लिवासी अपर नाम स्थानकवासी संप्रदायकी नींव डाली है।-लेखक।