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স্থাঅল্পটি
[d०-५० रतनलाल संघवी, न्यायतीर्थ-विशारद ]
विषय-प्रवेश
प्रदर्शित दिशा निर्देशसे कोई भी जैन-साहित्यका
मुमुक्षु पथिक पय-भ्रष्ट नहीं हो सकता है। भारतीय साहित्यकारों और भारतीय वाङ्मयके जैन पुरातत्व साहित्यके पाचर्य श्री जिनविजयजी
उपासकोंमें साहित्य-महारथि, भाचार्यप्रवर, ने लिखा है कि--"हरिभद्रसरिका प्रादुर्भाव जैन इतिविद्वान-चक्र-चूड़ामणि, वादीमगजकेसरी, याकिनीसूनु, हासमें बड़े महत्वका स्थान रखता है। जैनधर्मकेमहामान्य श्री हरिभत्रिका स्थान बहुत ही ऊंचा है। जिसमें मुख्यकर श्वेताम्बर संप्रदायके--उत्तर कालीन इनकी प्रखर-प्रतिमा, बहुश्रुतता, विचारपूर्ण मध्यस्थता, स्वरूपके संगठन कार्यमें उनके जीवनने बहुन बड़ा भाग भगाध गंभीरता, विषण वाग्मीता, और मौलिक लिया है। उत्तरकालीन जैन साहित्यके इतिहासमें वे एवं असाधारण साहित्य सृजन-शक्ति प्रादि अनेक प्रथम लेखक माने जानेके योग्य हैं। पर जैनसमाज सुवासित सद्गुण मापकी महानता और दिव्यताको के इतिहासमें नवीन संगठनके एक प्रधान व्यवस्थापक मान भी निर्विवाद रूपसे प्रकट कर रहे हैं। आपके द्वारा कहलाने योग्य हैं। इस प्रकार वे जैनधर्मके पूर्वकालीन विरचित अनुपम साहित्य-राशिसे उपलब्ध अंशका और उत्तरकालीन इतिहासके मध्यवर्ती सीमास्तम्भ अवलोकन करने से यह स्पष्टरूपेण और सम्यक प्रका
समान है।" रेण प्रतीत होगा कि भाप भारतीय साहित्य संस्कृतिके
इस प्रकार प्राचार्य हरिभद्र विद्वत्ताकी रष्टिसे तो एक धुरीणतम विद्वान् और उज्ज्वल रस्न थे।
धुरीणतम है ही; भाचार,विचार और सुधारकी दृष्टि से भी आपकी पीयूपवर्षिणी लेखनीसे निसृत सुमधुर इनका स्थान बहुत ही ऊंचा है । ये अपने प्रकांड पांडिऔर साहित्य-धाराका भास्वादन करने से इस निष्कर्ष त्यसे गर्मित,प्रौढ़ और उच्चकोटिके दार्शनिक एवं ताविक पर पहुंचा जा सकता है कि जैन-आगम-साहित्य (मूल, ग्रंथोंमें जैनेतर ग्रंथकारोंकी एवं उनकी कृतियोंकी मालोनियुक्तियां आदि) से इतर उपलब्ध जैन-साहित्यमें चना प्रत्यालोचना करते समय भी उन भारतीय साहिभर्यात् (Classical Jain literature) में यदि त्यकारोंका गौरव पूर्वक और प्रतिष्ठा के साथ उदार एवं
सेन दिवाकर सूर्य तो भाचार्य हरिभद्र शार- मधुर शब्दों द्वारा समुल्लेख करते हैं। दार्शनिक संघदोष पूर्णिमाके सौम्पचन्द्र है। यदि इसी अलंकारिक पणसे जनित तत्कालीन भाषेपमय वातावरणमें भी माणमें जैन साहित्याकाशका वर्णन करते चलें तो कलि- इस प्रकारको उदारता रखना प्राचार्य हरिभद्र सूरिकी काल सर्व प्राचार्य हेमचन्द्र ध्रुव तारा है। इस प्रकार श्रेष्ठताका सुंदर और प्रांजल प्रमाण है। इस रष्टिसे व साहित्याकाशके इन सूर्य चन्द्र और ध्रुवतारा-द्वारा इस कोटिके भारतीय साहित्यक विद्वानोंको श्रेणीमें