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________________ बीवन-साथ लिया है और नविषयक पत्र व्यवहार भी वे कर पर अधिक प्रकाश पड़नेकी पाशा है । जैनदर्शन रहे हैं। लेकिन उन्होंने अपभ्रश भाषाके विषयमें सम्बन्धी कोर्सके लिए श्रीमान् न्यायाचार्य पं०महेनाकुछ भी प्रकाश नहीं डाला है । इसलिए अपभ्रंश मार जी शास्त्री और पूज्य पं० कैलाशचन्द्रजी भाषाके विद्वान् बाबू हीरालालजी एम.ए. प्रोफेसर शास्त्रीको प्रकाश राखना चाहिए, जिससे रजिकिङ्ग एडवर्ड कालेज अमरावती और जो इस स्ट्रार महोदयको कोर्सके रखने में महलियत हो विषयके पूर्ण विद्वान् हैं, उन्हें एक कोर्स बनाना सके । और जो विद्वान् मेरे पास भेजना चाहेंगे चाहिए, ताकि जैनदर्शनके साथ २ प्रथमा, मध्यमा, मेरे पास भेजदें। मैं कोर्स नियत करवाकरके उनके साहित्यरलके कोर्समें अपभ्रशभाषाका भी साहित्य पास भेज दूंगा। भाशा है विद्वान् मेरे इस निवे. रखवाया जा सके। इस विषयमें जो विद्वान् सलाह दन पर ध्यान देंगे। जैनदर्शनका कोर्स सम्मेलन देना चाहें वे कृपया पत्रोंमें उसे प्रकाशित करवा की परीक्षामें रक्खे जाने का अधिकांश भय भाई देवें या मेरे पास भिजवा दें। क्योंकि अपभ्रंश रतनलाल जी संघवी न्यायतीर्थको ही है, जिन्होंने साहित्यक उद्धार होने से मध्यकालीन भाषा विकास इस विषयमें लगातार दो वर्षसे प्रयत्न किया है। जीवन-साध [ले०-५० भवानीदत्त शर्मा 'प्रशांत'] मेरी जीवन-साध ! पर-हितमें रत रहूँ निरन्तर, देश-प्रेमका पाठ पढ़े हम, मनुज मनुजमें करूँन अन्तर । साक्षरता-विस्तार करें हम । नस-नसमें बह चले देशकी प्रेमधार निर्बाध ॥ लिपी-भेद करनेका हमसे हो न कभी अपराध ॥ मेरी जीवन-साध ॥ १॥ मेरी जीवन साध ॥३॥ बौद्ध, जैन, सिख, आर्य, सनातन, अपने अपने मनमें प्रण कर, यवन, पारसी और क्रिश्चियन । एक दूसरे को साक्षरकर । हिन्द-देशके सब पुत्रोंमें हो अब मेल अगाध ॥ निज-स्वतन्त्रताके प्रिय पथसे दूर करें हम बाध ॥ मेरी जीवन-साध ॥२॥ मेरी जीवन-साध ॥४॥
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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