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वर्ष ३, किरण
एक महान साहित्यसेवीका वियोग
छोटे-बड़े सैंकड़ों शास्त्र भण्डारोंका उद्धार हुआ 'भारतीय जैनश्रमण संस्कृति भने लेखनकला' नाम है और वे जनताके लिये उपयोगी तथा विद्वानों की जो महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है वह सब भापके के लिये सरलतासे काम आने योग्य बने हैं। ही लेखनकला-विषयक अनुभवोंका फल है, ऐसा पाटन, बड़ौदा और लिम्बड़ी आदिके जो बड़े बड़े मुनि पुण्यविजयजी अपने पत्रमें सूचित करते हैं। ज्ञान भण्डार माज सुव्यवस्थित अवस्था में पाये इस परसे उक्त पुस्तकका परिचय करने वाले जाते हैं, उनको सुव्यवस्थित सूचियाँ बनकर प्रका- विद्वान इस बातका सहजमें ही अनुभव कर सकते शित हुई हैं. और जगत उनसे जो आज भारी हैं कि श्री चतुरविजयजीको लेखनकला और लाभ उठा रहा है वह सब आपके और आपके लिपियोंके विकासादि विषयक कितना विशाल गुरुदेव प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी महाराजके तथा गम्भीर परिज्ञान था । और यह सब उन्हें परिश्रमका ही फल है --इस कार्यमें सबसे अधिक उनके हजारों हस्तलिखित ग्रन्थोंके अवलोकन हाथ आपका ही रहा है।
और मनन परसे ही प्राप्त हुआ था। आपने सैंकड़ों ग्रन्थोंकी प्रतियाँ अपने हाथसे समाजमें मुद्रण कलाके प्रचारका प्रारम्भ होने लिखी हैं और दूसरोंकी लिखी हुई प्रतियोंका संशो- पर आपने ग्रंथोंके प्रकाशनकी ओर खास ध्यान धन किया है । संशोधन कार्यमें आप खूब दक्ष थे, दिया था और यह काम आपका साहित्य सेवा आपको प्राचीन लिपियोंकी ठीक वाचनकला की ओर दूसरा महान कदम था । इसके फल स्व. आती थी। और इसी तरह प्रति लेखन-कलामें भी रूप ही आत्मानन्द जैन सभा भावनगरकी ओरसे आप निपुण थे। आपकी हस्तलिपि बड़ी ही सुन्दर 'आत्मानन्द जैनग्रन्थरत्नमाला' का निकलना एवं दिव्य रूपा थी, आपने बहुतसे लेखकोंको प्रारम्भ हुआ। इस ग्रन्थमालाके आप मुख्य प्राण अपने हाथतले रखकर उन्हें लेखन-कला सिखलाई ही नहीं किन्तु सर्वस्व थे। प्रन्थमालामें अब तक है, कई अच्छे मर्मज्ञ लेखक तैयार किये हैं और ८८ प्रन्थ प्रकाशित हुए हैं, जिनमेंसे बृहत्कल्प उनसे हजारों ग्रन्थोंकी प्रतिलिपियाँ कराई हैं। अपने सूत्रादि कितने ही ग्रन्थ बड़े महत्वके हैं। इन मंथों लिखे हुए और अपने हाथके नीचे दूमरोंसे लिखाये में से अधिकांशका सम्पादन आपके द्वारा तथा हुए तथा अपने द्वारा संशोधित हुए ग्रन्थोंका एक आपके प्रभावसे हुआ है । आप करीब २९ वर्ष बहुत बड़ा समूह आपने पं० श्रीकान्तिविजयजीके तक ग्रन्थमालाका सतत कार्य करते रहे हैं ! इस नाम पर स्थापित बड़ौदा और छाणीकं ज्ञान समय कई प्रन्थोंकी प्रेम कापियां छपाने के लिये भण्डारोंमें स्थापित किया है । बड़ौदाका भंडार तैयार मौजूद हैं, बृहत्कल्पक (जिसके पाच खंड इतना अधिक पूर्ण और उपयोगी संग्रह लिये हुए निकल चुके हैं ) पूरा छप जाने के बाद भापका है कि पं० सुखलालजीने उसे 'चाहे जिस विद्वानका विचार निशीथसूत्र' तैयार करनेका था और फिर मस्तक नमानेके लिये काफी' लिखा है। कथारलकोश तथा मनयगिरि-व्याकरण भादि
आपके शिष्योत्तम मुनि श्री पुण्यविजयजीने दूसरे भी भनेक प्रन्थोंको हाथमें लेनेका विचार