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________________ ૨૧ર भनेकान्त [पौष, वीर-निर्वाण सं०२४॥ निर्वाण मानते थे । फिर यदि भकलंक आदि जैन advisedly, for though the Pall texts प्राचार्योने बौद्धोंकी इस मान्यताका खंडन किया है तो have entirely for many years in public उन्होंने कौनसा अन्याय किया है ? ब्रह्मचारीजीका बो libraries, they are only now beginning यह कथन है कि "अकलंक आदि जैन भाचार्योंने जैसा to be understood. Buddhims of Pali बौधर्मका खंडन किया है वैसा बौद्धधर्म मज्झिम- Pitakas is not only a different thing निकाय भादि प्राचीन पाली पुस्तकोंमें नहीं है" वह from Buddhism as hitherto commonly भूलसे खाली नहीं है। अपने कथनकी पुष्टिमें ब्रह्मचारी received, but is antagonistic to it." बी ने W. Rys Davids के कथन का उल्लेख अर्थात् जबसे बौद्धोंके प्राचीन साहित्यकी खोज हुई है, किया है। लेकिन W. Rys. Davids का अभि- तबसे बहुत सी बातोंपर नया प्रकाश पड़ा है। यद्यपि प्राय यह बिलकुल नहीं है कि जैन और ब्राह्मण ग्रन्थ- पाली साहित्य वर्षोंसे पब्लिक लाइबेरियोंमें मौजूद था, कारोंने बौदधर्मका अनुचित खंडन किया है या उन्होंने लेकिन लोगोंने उसे अभी समझना शुरु किया है बौद्ध धर्मके विषयमें जो कहा है वह भ्रमपूर्ण है । उन्हों- इत्यादि। ने 'सेकेड बुक्स मान दिईस्ट'में बौद्धोंके कुछ ग्रंथोंका इससे Rys. Davids का कहना यही है कि अंग्रेज़ीमें अनुवाद किया है। ये अनुवाद उन्होंने भाज लोगोंकी बौद्धधर्मके विषय में जो मिथ्या धारणायें थीं, से साठ बरस पहले यानी सन् १८८० में किये थे। इन वे अब पाली साहित्य के प्रकाशमें मानेके कारण दर की भूमिकामे W. Rys. Davids ने Gegerly होती जा रही हैं। इससे उनका माक्षेप युरोपियन तथा Burnouf भादि युरोपियन विद्वानोंकी समा- विद्वानोंपर है। जो बौद्धधर्मको ठीक ठीक न समझकर बोचना करते हुये उनकी भूलें बताई हैं। इसी सिल- उसपर टीका टिप्पणी करते हैं। इसका यह मतलब सिनेमें W. Rys. Davids ने बताया है कि जबसे कदापि नहीं कि कलंक आदि विद्वानोंने बौद्ध धर्मका बौद्धोंका पाली साहित्य प्रकाशमें पाया है तबसे बौद्ध ग़लत खबडन किया है। दुःख है कि ब्रह्मचारीने पूर्वाधर्मके सम्बन्धमें लोगोंको नई बातें मालूम हुई है और पर संबंधका ध्यान रखकर, केवल उनके एक वाक्यको खोग बौद्ध धर्मको ठीक २ समझने लगे हैं। वह उझेख पढ़कर अपना मत बना लिया है। निम्न प्रकारसे है: __ यही बात पणिकवादके लिये भी कही जा सकती _It is not too much to say that the है। जैन और ब्राह्मण ग्रंथकारोंने बौदोंके गणिक वादमें discovery of early Buddhism has नो कृत-प्रणाश, प्रकृत-कर्म-भोग, भवमंग, स्मृतिभंग placed all previous knowledge of the भादि दोष दिखाये हैं, वे कुछ निर्मूल नहीं है। धिक subject in an entirely new light, and बाद बौर मानते हैं। एक तरह यो कहिये कि 'पणिक has turned the flank, so to speak of बाद' के बिना पौर धर्म टिका नहीं रह सकता। इस most of the existing literature on लिए ब्रह्मचारीजीच यह सिखना कि 'पानी प्राचीन Buddhism.I use the term "discovery" पुस्तकों में सर्व वस्तुषोंको नाशवान नहीं कहा" अमसे
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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