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जैन और बौद्ध निर्वाणमें अन्तर
[o-श्री. प्रोफेसर जगदीशचन्द्र जैन, एम. ए..]
तम्बर १९३६ के अनेकान्त (२-१३)में मैंने जैन बौद्ध साहित्य बहुत विस्तृत है। कभी कभी तो
और बौद्धधर्म एक नहीं' नामक एक लेख लिखा उसमें एकही विषयका मित्र २ रूपसे प्रतिपादन देखने था, जिसमें ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीकी “जैन और में पाता है। ऐसी हालतमें बौदवाङ्मयका गहरा बौद्ध तत्वज्ञान" नामकी पुस्तककी समालोचना करते अध्ययन किये बिना, ऊपर ऊपरसे दो चार ग्रन्थोंको हुए यह बताया था कि प्रमचारीजीका जैन और बौद्ध पड़कर अपना कोई निर्णय देना यह बड़ी भारी भूल है। धर्मको एक बताना निरा भ्रम है। मेरे लेखके उत्तरमें निर्वाणके सम्बन्धमें भी बौद्धग्रन्थों में विविधनायें देखने में ब्रह्मचारीजीने ३० नवम्बर १९३६ के जैन मित्रमें कुछ भाती हैं। यही कारण है कि युरोपियन विद्वानोंमें भी शब्द भी लिखे हैं, जिनमें कहा गया है कि मैं उनकी इस विषयमें मतभेद पाया जाता है । कुछ विद्वान पुस्तक भूमिका-सहित पायोपांत पढ़ लेता तो उनसे निर्वाणको शून्यरूप-अभावरूप-मानते हैं। जिसमें असहमत न होता । मैं ब्रह्मचारीजीये कह देना ards, Chulcers, Jiunes D' Alcis चाहता हूँ कि मैंने उक्त पुस्तक अच्छी तरह भायोपांत प्रादि है। दूसरे इसका विरोध करते हैं और कहते हैं पढ़ ली है, लेकिन फिर भी मैं उनसे सहमत न हो कि बौद्धोंका निर्वाण भी ब्राह्मणों की तरह शाश्वत और सका। मैं समझता हूँ शायद कोई भी विद्वान् इस मचल है । इस विभागमें Maxmulla, Stcherबातको माननेके लिये तैयार न होगा कि "जैन और thatsks आदि हैं। हम यहां इस वाद-विवादमें गहरे बौद्ध धर्म एक हैं और उनमें कुछ भी श्रन्तर नहीं है।" नहीं उतरना चाहते, केवल इतना ही कहना चाहते हैं अपने पिछले लेखमें मैंने विस्तार पूर्वक बौद्धोंकी पारमा कि यदि बौद्धोंका निर्वाण अच्युन और स्थायी है तो सम्बन्धी मान्यताका दिग्दर्शन कराते हुए बताया है उन्हें निर्वाणके लिये बहुत सी उपमायें मिल सकती कि उसकी जैनसिद्धान्तसे जरा भी तुलना नहीं की थीं, उन्होंने दीपककी उपमा ही क्यों पसंद की ? जा सकती । बौद्ध ग्रन्थों में मांसोल्लेख भादिके सम्बन्धमें निब्बति धीरा यथायं पदीपो' (संयुत्त २३५)भी मैंने उक्त लेखमें चर्चा की है। दुःख है कि ब्रह्मचारी प्रदीपके समान धीर निर्वाण पाते हैं (बुझ जाने हैं; जी उन भारेपोंका कुछ भी उत्तर न दे सके। "सीतीभूतोऽस्मि निश्वतो" (विनय :-८) नित
भव प्राचारीबीकी मान्यता है कि "निर्वाणका हो जानेसे मैं शीतल हो गया हूँ (सहो गया है) स्वरूप जो कुछ बौर मन्थों में मजकता है वही बैन "पदीपस्स एव निधानं विमोक्यो भाहु चेतसो" शास्त्रों में है।" इस लेख में इसी विषय पर चर्चा की भावि बौद्ध पानी ग्रन्थोंके व खोंसे माघूम होता है कि बायगी।
बौरखोग प्रदीपनिर्वावकी तरह माम विशेषकोही