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________________ बैन और बौद्ध निर्वाणमें अन्तर २६३ साक्षी नहीं है। बौद्ध ग्रन्थों में एक कथा भाती है। ful sanctification and महंत् ship and 'एक बार किसी चोरने एक भादमीके भाम चुरा लिये। the annihilation of existence in which भामोंका मालिक चोरको पकाकर राजाके पास लेगया, अर्हत् ship ends.) भागे चलकर वे लिखते हैं चोरने राजासे कहा 'महाराज, जो फल इस भादमीने “अब देखना है कि बौद्धधर्मका उद्देश्य क्या है?" जगाये थे वे दूसरे थे और वो मैंने धुराये हैं वे दूसरे हैं। “महत् अवस्थाकी प्राप्ति बौद्धधर्मका अंतिम उद्देश्य अतएव मैं दण्डका भागी नहीं हूँ । इसपर राजाने कहा नहीं है। क्योंकि अर्हत् अवस्था नित्य अवस्था नहीं है "यदि नामोंका मालिक भाम नहीं लगाता तो तू चोरी महंत अमुक समय बाद काल धर्मको प्राप्त होते हैं। कैसे कर सकता"हसलिए तू दण्डका भागी अवश्य है।' इस बातकी पुष्टिमें बौद्धग्रन्थोंमें सैंकड़ों उल्लेख मिलते कहने का अभिप्राय यह है कि उस समय भी पणभग- है कि अर्हत् मरण के पश्चात् जीवित नहीं रहते, बल्कि वाद मौजूद था । इसी लिये तो जैन विद्वानोंने उसमें उनका अस्तित्व ही नष्ट हो जाता है"-- 'प्रकृत-कर्म-भोग' नामका दोष दिया है । और वास्तवमें But since अर्हत्, die,महत् ship is not देखा जाय तो यह ठीक ही है। कारण कि क्षणिकवाद an eternal state, & therefore it is not ही बौद्धोंकी मजबूत भित्ति है। जिसपर अनात्मवाद the goal of Buddhims. It is almost और शून्यवाद नामक सिद्धांत रक्खे गये हैं। इस लिए superiluous to add that not only is ह मानना पड़ेगा कि क्षणिकवादका सिद्धांत पहला there no trance in the Buddhist scripहै। हाँ उसे तार्किकरूप भले ही बादमें दिया गया tuns of th: अर्हत् cont.uning to exist हो, जैसा कि रन-कार्ति, शान्तरक्षित श्रादि बौद्ध .ittet thouth. but it is deliberately stated विद्वानोंने अपने क्षणभंग सिद्धि' 'तस्वमंग्रह' श्रादि in inmumabit: p.1.५५ that the अर्हत् ग्रंथाम किया है। thoseos non live gunden death, but अब ब्रह्मचारीजीकी एक बान रह जानी है। वह censes to cust. उक्त विद्वान्का कथन है कि यह कि बौद्ध ग्रंथों में निर्वाणको 'अजान' और 'श्रमतं बहन अवस्था 'मो पानिममनिस्वाण' अथवा 'किलेस (अमृतं ) क्यों कहा ! ब्रह्मचारीजाको शायद विदे- परिनिग्वाण' की अवस्था है, जिसमें मय क्लेशोंका सय शीय विद्वानों पर बहुत श्रद्धा है। इसलिए हम इसका हो जाता है, और जहाँ केवल पंच स्कंध शेष रहते हैं। उत्तर Childers के शब्दों में ही दंगे। Childlers इसी अर्हन अवस्थाको बौद्ध ग्रन्धों में 'मजात' 'ममत' बौद्ध धर्मके एक बड़े विद्व न हो गये हैं। उन्होंने बौद्ध 'अनुत्तर' 'भकुनोभय आदि विशेषण दिये हैं। लेकिन धर्मका एक कोश भी लिम्बा है । Childers का बौद्धोका निर्वाण अभी इस और भागे है। उस कहना है कि बौद्ध ग्रंथों में निर्वाणकी दो अवस्थायें निर्वाणको बौद्ध ग्रंथों में अनुपादिसंसनिम्बाश' अथवा बताई गई है-एक ईत् अवस्था जो मानन्द स्वरूप खंधपरिनिव्वाण' के नामसे कहा गया है। यह वह है, दूसरी शन्यरूप--प्रभावरूप अवस्था, जो महंन् अवस्था है, जो अहत् अवस्थाकी चरम सीमा है । यहाँ अवस्थाकी चरम सीमा है ( The state of bliss- समस्त स्कंधांका--रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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