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________________ वर्ष ३, किरण ३] द्रव्य-मन [२५५ अर्थ तत्रस्थ आत्मासे ही है । इसीप्रकार मनः. उम् इन्द्रियपर भी असर पड़ता है। तेष सुगन्धिसे पर्यय ज्ञानभी द्रव्यमनके आत्मप्रदेशोंमें होता है। दिमाराके साथ नाक भी झनझना जाती है। किसी ऐसाही समझना चाहिये । अतः यह शंका नहीं पदार्थको बहुत देर तक देखते रहनेसे आखें दर्द हो सकती कि मन:पर्ययज्ञानका संवेदन मनमें करने लगती हैं। उसी प्रकार किसी तरहके भयानक होता है या मन इन्द्रिय उसमें काम करती है। विचारोंस अथवा भयस हृदयकी गतिपर असर अतः मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय ज्ञान मनमें पड़ता है, हृदय धकधकाने लगता है, इससे मालम नहीं होते किन्तु मन केवल निमित्त कारण ही है। पड़ता है ये सब गुण हृदयके हैं । अन्यथा हृदय ___ वृहद् द्रव्यसंग्रहमें "द्रव्यमनस्तदाधारण पर असर नहीं पड़ना चाहिए था। जिस प्रकार शिक्षालापोपदेशादि प्राहक" इस तृतीयान्तपदसे सुगन्धि घाणका कार्य मानाजाता है, क्योंकि उस भी यही अर्थ निकलता है। यदि टीकाकारको का असर घाण पर पड़ता है। उसी प्रकार भय "मनमें" यह अर्थ अभीष्ट होता तो सप्तमीका आदिका असर हृदयपर पड़ता है, इसलिए ये पद दिया जासकता था। सब हृदयके कार्य माने जाने चाहिएँ । ___ यहां यहभी शंका नहीं करना चाहिये कि डा० त्रिलोकीनाथवर्मा शरीरविज्ञानके प्रामाजैनाचार्योंने हृदयका मुख्यकार्य रक्तसंचालनका णिक लेखक माने जाते हैं। आपने "स्वास्थ्य और वर्णन नहीं किया । क्योंकि सिद्धान्त प्रन्थोंमें रोग" नामक एक सुन्दर पुस्तक लिखी है, इसी सिद्धान्तका ही वर्णन किया जायगा, शरीरशास्त्र पुस्तकके ७८१ वें पृष्ठ पर आपने लिखा है कि की यहां अपेक्षा नहीं है। नाकका काम सुगन्ध- "मन-सम्बन्धी जितनी बातें हैं वे सब मस्तिष्कके ज्ञानके अलावा श्वास आदि कार्य भी है । जिह्वा- द्वाग होती हैं। विचार अनुभव, निरीक्षण, ध्यान, का रसज्ञानके साथ शब्दोचारण आदि कार्य हैं, स्मृति, बुद्धि, ज्ञान, तर्क या विवेक ये सब मनके परन्तु सभीके वर्णनकी सब जगह अपेक्षा नहीं गुण हैं।" होती। हां, वैद्यक शास्त्रोंमें इसका वर्णन किया डा. त्रिलोकीनाथके इस कथनसे हमारी और गया है। भी पुष्टि होजाती है । इसलिये जैन सिद्धान्तमें जिस इन्द्रियका जो कार्य होता है, उस कार्य माने हुए मनके लक्षणमें किसी तरह विरोध नहीं की अधिकतासे या तेजीसे मस्तिष्कके साथ साथ आता।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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