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अति प्राचीन प्राकृत 'पंचसंग्रह'
(लेखक. परमानन्द जैन शास्त्री)
लप्तप्राय दिगम्बर जैन प्रन्थोंमेंसे 'पंचसंग्रह' इनमेंसे पहली गाथामें बताया है कि 'जीवस्थान
नामका एक अति प्राचीन प्राकृतग्रन्थ अभी और गुणस्थान-विषयक सारयुक्त कुछ गाथाओंको हाल में उपलब्ध हुआ है। इस ग्रन्थकी यह उपलब्ध दृष्टिवादसे १२ वें अंगसे लेकर कथन करता प्रति सं० १५२७ की लिखी हुईहै, जो टवक नगरमें हैं।' और दूसरी गाथा में यह बताया गया है कि माधवदी ३ गुरुवारको लिखी गई थी। इसकी पत्र 'दृष्टिवादसे निकले हुए बंध, उदय और सत्वरूप संख्या ३२ है, आदि और अन्तके दोपत्र एक और प्रकृविस्थोनोंके महान् अर्थको पुनः प्रसिद्ध पदोंके ही लिखे हुए हैं और हासिये में कहीं कहींपर द्वारा संक्षोपसे कहता हूँ। इसमें स्पष्ट है कि संस्कृतमें कुछ टिप्पणी भी वारीक अक्षरों में दी इस ग्रन्थको अधिकांश रचना दृष्टिवादनामक हुई है। इस टिप्पणीके कर्ता कौन हैं ? यह ग्रन्थ १२ वें अंगसे सार लेकर और उसकी कुछ गाथाप्रति पर से कुछभी मालूम नहीं होता । ग्रन्थमें ओंको भी उद्धृत करके कीगई है। प्रथकी प्राकृत गाथाओंके सिवाय, कहीं कहीं पर कुछ श्लोकसंख्या दोहजारके लगभग है। इसमें जुदे. प्राकृत गद्य भीदिया हया है। प्रन्थके अन्तमें जुदे पांच प्रकरणोंका संग्रह कियागया है, इसीकोई प्रशस्ति लगीहई नहीं है और न ग्रन्थकाने लिये इसका नाम 'पंचसंग्रह' सार्थक जान पड़ता किसी स्थलपर अपना नाम ही व्यक्त किया है। है। वे प्रकरण इस प्रकार हैंऐसी स्थितिमें यह प्रन्थ कब और किसने बनाया ? १ जीवस्वरूप, २ प्रकृतिसमुत्कीर्तन, ३ कर्म
आदि बातें विचारणीय और अन्वेषण किये जानेके स्तव, ४ शतक और ५ सप्ततिका । ग्रन्थको आद्योयोग्य हैं।
पान्त देखने और तुलनात्मक दृष्टिसे अध्ययन इस ग्रन्थकी रचना दृष्टिवाद नामके रखें अल- करनेसे यह बहुत ही महत्वपूर्ण और प्राचीन से कुछ गाथाएं लेकर कीगई हैं, जैसाकि उसके जान पड़ता है। दिगम्बर जैनसमाजमें उपलब्ध चतुर्थ और पंचम अधिकारमें क्रमशः दीगई
गोम्मटसार और संस्कृतपंचसंग्रह से यह बहुत निम्न दो गाथाओंसे प्रकट है:
अधिक प्राचीन मालम होता है । इस ग्रंथकी बहुत सुणह इह जीव गुणसन्निहि मुठाणे सुसार जुत्ताओ।
सी गाथाओंका संग्रह गोम्मटसारादि ग्रन्थोंमें बोच्छ कदि वश्यामो गाहामो दिट्टिवादाभो ।।
कियागया है, जिसे विस्तारकं साथ फिर किसी सिडपदेहि महत्थं बंधोदय सत्त पयडि ठाणाणि । स्वतन्त्र लेख द्वारा प्रकट करनेका विचार है। वोच्छ पुण संवेषणिस्सद विट्टि वादा दो ॥ पुष्पदन्त और भूतबलि द्वारा प्रणीत 'षट्
४-३, ५-२ खण्डागम्' पर 'धवला' और 'जयधवला' टीकाकं