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________________ २५२ ] गरमी, सर्दीका ज्ञान होता है। उन्हीं की सहायता से हमको शब्द, रस, सुगन्ध दुर्गन्ध आदिका बोध होता है। इन सबका संवेदन अलग अलग नाड़ियों द्वारा होता है। अनेकान्त मस्तिष्क से १२ जोड़े नाड़ियोंके लगे रहते हैं। पहिला जोड़ा गंधसे सम्बन्ध रखता है। हरएक तरफ बालों सरीखी पतली २० नाड़ियाँ रहती है । ये प्राणनाड़ियाँ कहलाती हैं । नासिका के प्राण प्रदेश से प्रारम्भ होती हैं और कपालके घ्राण खण्ड से जुड़ती हैं। दूसरा जोड़ा—ष्टि नांदियां कहलाती हैं । तीसरा जोड़ा भी नेत्रचालिनी नाड़ियाँ कहलाती हैं। चौथे जोड़ेका भी नेत्र की गति से संबन्ध है। पांचवा जोड़ा तथा छठा जोड़ा आँखकी गतिसे सम्बन्ध रखता है । सातव जोड़ा चेहरेकी पेशियों की मति से सम्बन्ध रखता है। आठवीं जोड़ेका सुननेसे सम्बन्ध है इन्हें श्रावणी नाड़ियाँ कहते हैं। नवमें जोड़े का जिह्वा और कंठसे सम्बन्ध है । दसवें जोड़ेका स्वर, अन्त्र, फुप्फुस, हृदय, आमाशय, यकृतादि अंगोंसे सम्बन्ध है । और ग्यारहवां arr arreti जोड़ा जिलाके अंगोंसे सम्बन्ध रखता है। [ पौष, वीर निर्वाण सं० २४६६ छोड़ा गया। इस ठंडे पानीसे स्वचाके संवेदनिक कणों पर एक विशेष प्रकारका प्रभाव पड़ा बा परिवर्तन हुआ। इस परिवर्तनकी सूचना स्वगीया वारों द्वारा सुषुम्नाके पास तुरन्त पहुंचती है। ऊर्ध्वशाखा की नाड़ियां सुषुम्नाके ऊपरी भागसे निकलती है। ये तार पाश्चात्य मुलों द्वारा सुषुम्नामें घुसते हैं। सुषुम्ना में इन तारोंकी छोटी २ शाखायें तो सैलोंके पास रह जाती हैं, परन्तु वे स्वयं शीघ्र ही सुषुम्नाके बायें भागमें पहुंचकर सुषुम्नाशीर्षक और सेतुमें होते हुए स्तम्भ में पहुँचती हैं। स्तम्भ-द्वारा वायें थैलेमसमें पहुँचते हैं और यहीं रहजाते हैं, यहांसे फिर नये तार निकलते हैं, जो ऊपर चढ़कर बायें सम्वेदनाक्षेत्र में पहुँचते हैं, वहाँ सम्वेदन हुआ करता है। सम्वेदनक्षेत्रका सम्बन्ध गति क्षेत्रकी सेलोंस तथा मानसक्षेत्रकी सेलोंसे रहा करता है। यदि हम ठंडे जलको पसन्द नहीं करते तोगति क्षेत्र मानसक्षेत्रको आज्ञा देता है कि हाथ उस क्षेत्रसे हट जावे, तो हाथ वहाँसे हट जाता है। यह सब मस्तिष्कका कार्य है। मस्तिष्कके और भी बहुत से कार्य होते हैं, उनका उल्लेख इस लेख में उपयोगी नहीं है। हमारी मुख्य पाँच ज्ञान इन्द्रियां हैं, स्पर्शन ( स्वचा) रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण इन पांचों इन्द्रियोंसे केन्द्रगामी वार प्रारम्भ होकर सुषुम्ना नाड़ी द्वारा मस्तिष्क में पहुंचते हैं। मस्तिष्कके भी बहुतसे हिम्से माने गये हैं। चक्षु, कर्ण, प्राण आदिके केन्द्रगामी तार नादियों द्वारा मस्तिष्कके ज्ञानके केन्द्रोंमें जाते हैं। मस्तिष्क के इस विवेचनसे यह स्पष्ट होजाता है कि सभी प्रकारका सम्वेदन मस्तिष्क के द्वारा हुआ करता है। हृदयका काम सम्वेदन करना किसी भी तरह सिद्ध नहीं हो सकता । ser विचारना यह है कि जैन सिद्धाम्यसे हृदयके वर्णनमें किसी तरह विरोध दूर हो सकता है या नहीं ? इसके पूर्व यदि हम यह विचारल कल्पना कीजिए आपके हाथ पर ठंठा पानी कि हृदय और मस्तिष्कका कोई घनिष्ठ सम्बन्ध
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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