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पास सुनाई दिया करता है। इसी धड़कनके बन्द कभी भी नहीं लिया जा सकता कि ठीक भटक्स होनेसे या रक्ताति बन्द होनेसे मृत्यु हो जाती है। कमलके सदृश ही होना चाहिए। यह वो केवल इसीको आज कल हार्ट फेल कहते हैं। पोध करानेके लिए दृष्टान्तमात्र है। यदि हम
हृदयका इस प्रकार जितना भी वर्णन मिलता मांसके बने हुए हृदयमें वैसी ही पांखुदो तवा रज है, वह सब रक संचालनसे ही मतलब रखता है, मादि खोजने लगजावें तो हमको निराराही होना हृदय रत्तका ही केन्द्रस्थान है।
पड़ेगा। पुस्तकोंमें दिए हुए हृदयके चित्र देखनेसे इसके विपरीत जैन सिद्धान्तमें मनका लक्षण शात होता है कि जो जैनाचार्योने कमतका दृष्टान्त निम्नप्रकार किया है-आचार्य पूज्यपादने द्रव्य दिया है, वह बन्द मुट्ठीके दृष्टान्त से अच्छा है। मनका सामान्य लक्षण "पुगल विपाकिकर्मोदया- इसलिए आकारके विषयमें विशेष विवाद नहीं पेक्षा द्रव्यमनः " ( सर्वा-२-११) अर्थात हो सकता। पुद्गल विपाकी कर्मोदयकी अपेक्षा अथवा अंगो- सैद्धान्तिक प्रन्थों में किसी भी जैनाचार्यने मन पांग नामानामकर्मके उदयसे द्रव्यमनकी रचना काकार्य रक्तसंचालन नहीं बताया। प्राचार्य पूज्यहोती है। इसी विषयको प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत पादने चक्रवर्दीने, हृदयका स्थान बताते हुए जीवकांडमें गुणदोष विचारस्मरणादि व्यापारेषु इद्रियांनपेखानकहा है कि
दुरादिवद् बहिरनुपलब्धेश्च अन्तर्गत परममिति : हिदि होबिहु दधमणं वियसिय-भट्ठच्छदारविंद वा।
(सर्वा०९-१४) अंगोगुदयादो मणबग्गाणबंध दो णियमा ॥४४२॥ इस वाक्यके द्वारा मनको गुण दोष विचार स्म
अर्थात-अंगोपांग नाम कर्मके उदयसे मनो- रणादिमें कारण बताया है। वृहद्रव्य संग्रहमें भी वर्गणाके स्कन्धों द्वारा हृदयस्थानमें आठ पांखड़ीके "द्रव्यमनस्तदाधारणशिक्षालापोपदेणादि प्राहक कमलके प्राकारमें द्रव्यमन उत्पन्न होता है। इत्यादि पद मिलते हैं। इन प्रमाणोंसे शिक्षा,
इस माथाके द्वारा मनका स्थान तथा उसकी उपदेश आदि मनका व्यापार सिद्ध होता उत्पत्तिका कारण बताया गया है । आजकलके है। परन्तु वैज्ञानिक इस बातको स्वीकार वैज्ञानिक भी मनका स्थान वक्षस्थल या हृदय नहीं करते । वैज्ञानिकोंके कथनानुसार यह पढाते हैं। क्या हृदयके आकारको भी बम्द मुट्ठी सब कार्य मस्तिष्कका ही है। विचारना, स्मरण के सदृश बताया करते हैं। जैनाचार्योंने मनका करना आदि विवेकसम्बन्धी सभी कार्य मस्तिष्क
आकार कमलाकार बताया है। इस प्रकार प्रकट से ही होते हैं । मस्तिष्कको संवेदनका केन्द्र माना रूपसे दोनों कथनोंमें विरोध मालूम होता है। मया है। यह मस्तिष्क पाठ अस्थियोंसे निर्मित परन्तु विचारकर देखा जाय तो इसमें कोई विरोध कपालके भीतर होता है। इस मस्तिष्क में पहुक्से की बात नहीं हैं। जैनाचार्योंने भाठ पांखड़ीके अंग होते हैं। उनमें से कुछ अंगोंके द्वारा हम कि कमलका सान्त दिया है, इसका यह वात्पर्य चार करते हैं। उन्हीके द्वारा हमको मुख, दुस,