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सत्य अनेकान्तात्मक है
[ोजक-श्री बाबू जयभगवानजी बैन, बी. ए. एस. एल.बी.पीव]
गायक अनेकान्तात्मक है या अनन्तधर्मात्मक प्राधिदैविकदृष्टि (Animistic Outlook)
है, इस वादके समर्थनमें इतना कहना ही रखनेवाले भोगभौमिक लोग समस्त अनुभव्य पास पर्याप्त होगा कि सत्यका अनुभव बहुरूपात्मक है। जगत और प्राकृतिक अभिव्यक्तियोंको अनुभावक जीवनमें व्यवहारवश वा जिज्ञासावश सब ही अर्थात अपने ही समान स्वतन्त्र, सजीव, सत्यका निरन्तर अनुभव किया करते हैं; परन्तु सचेष्ट सत्ता मानते हैं। वे उन्हें अपने ही सक्या वह अनुभव सब-
J arunaruwauraru मान हावभाव, भायो. का एक-समान है। इस लेखाके लेखक बाबू जयभगवानजी वकील दि.१ जन प्रयोजन, विषयनहीं, वह बहुरूप है। एजैन समाजके एक बड़े ही अध्ययनशील और विचार
वासना,इच्छा-कामनाशीख विद्वान् है-प्रकृतिसे भी बड़े ही सजन है। भाप अनुभवकी इस विभिपहुचा चुप-चाप कार्य किया करते हैं, इसीसे जनता 10
र से मोतप्रोत पाते हैं। मताको जाननेके लिये आपकी सेवामय प्रवृत्तियोंसे प्रायः मनमिश रहती है। जरूरी है कि तत्त्ववे- मेरे अनुरोधको पाकर मापने जो यह लेख भेजनेकी र वज्रपात, भग्निज्वाला, ताओंके सत्यसम्बन्धी कृपा की है उसके लिये मैं भापका बहुत ही भाभारी?अतिवृष्टि, भूकम्प,रोग, उन गढ मन्तव्योंका । यह लेख कितना महत्वपूर्ण है और कितनी अधिक
२ मरी, मृत्यु मादि नि
. अध्ययन किया जाय,
मध्ययनशीलना, गवेषण तथा विचारशीलताको बिये, हुए है उसे सहृदय पाठक पदकर ही जान सकेंगे। इस
7 यम-विहीन उपद्रवोंको जो उन्होंने सत्यके सू.पसे सत्यको समझने और यह मालूम करने में कि पूर्ण, 7 परसे सत्यको समझने और यामास
देखकर निधित करते क्ष्म निरीक्षण, गवेषणा सत्य केवलज्ञानका विषय है पाठकोंको बात है कि यह जगतनियम
और मननके बाद नि-मासानी होगी। भाशा है लेखक महोदय अपने इस विहीन, अस्सल श्चित किये हैं। इस प्रकारके लेखों-बारा बराबर 'भनेकान्त' के पाठकों की देखतामोंका कीडास्थल अध्ययनसे पता चलेगा सेवा करते रहेंगे,और इस तरह उन्हें भी यह रस बांटते [
है। मनुष्यकी यह मा
. रहेंगे जिसका बाप एकान्तमें स्वयं ही भास्वादन करते र अन्वेषणका विषय एक Nimrunainmही संसारके प्रचलित सत्यमात्र था, तो भी उसके फलस्वरूप जो अनु- देवतावाद (Theism) और पितृवाद (Ancestor भव उनको प्राप्त हुए हैं, वे बहुत ही विभिन्न हैं
(भ) Haockle-Riddle of the universe विभिन्न ही नहीं किन्तु एक दूसरेके विरोधी भी
P.32. प्रतीत होते हैं।
(प्रा) Lord Aveburg-The origin of
civilization 1912 P.242-245 कन्य, वस्तु, अर्थ,सामान्य, सता, तत्व मादि सत्यके
(३)A. A. Macdonel-Vedic Mythology ही एकावाची नाम है।-पन्बायावी1-10१,
P.1,
कि यद्यपि उन सबकेगी ।
-सम्पादक
रम्भिक अधिदैविकदृष्टि