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________________ अनेकान्त [वर्ष ३, किरण १ श्लोक-परिमाण इन्द्रनन्दि श्रुतावतारके कथनानुसार परंपराए आगंतूण गुणहराइरियं पाविय...... ३६ हजार है, जिनमें से ६ हजार संख्या पाँच खण्डोंकी (श्राराकी प्रति पत्र ३१३) और शेष महाबन्ध खण्डकी है; और ब्रह्महेमचन्द्र के जब धवला और जयधवला दोनों ग्रंथोंके रचयिता श्रुतस्कन्धानुसार ३० हज़ार है। वीरसेनाचार्य ने एक ही व्यक्तिके लिये इन दो नामोंका यह तो हुई धवला के आधारभूत षटखण्डागम स्वतंत्रतापूर्वक उल्लेख किया है, तब ये दोनों एक ही श्रुतके अवतारकी कथा; अब जयधवलाके श्राधारभूत व्यक्ति के नामान्तर हैं ऐसा समझना चाहिये; परन्तु, जहाँ 'कसायपाहुड' श्रुतको लीजिये, जिसे 'पेज्जदोस पाहुड' तक मुझे मालूम है, इसका समर्थन अन्यत्रसे अथवा किसी भी कहते हैं । जय धवलामें इसके अवतारकी प्रारम्भिक दूसरे पुष्ट प्रमाणसे अभी तक नहीं होता-पूर्ववर्ती ग्रंथ कथा तो प्रायः वही दी है जो महावीरसे श्राचारांग-धारी 'तिलोयपरणात्ती' में भी 'सुधर्मस्वामी' नामका उल्लेख लोहाचार्य तक ऊपर वर्णन की गई है-मुग्न्य भेद है। अस्तु; जयधवला परसे शेष कथाकी उपलब्धि इतना ही है कि यहां पर एक-एक बिषयके प्राचार्योंका निम्न प्रकार होती है:काल भी साथमें निर्दिष्ट कर दिया गया है, जब कि आचारांग-धारी लोहाचार्यका स्वर्गवास होने पर 'धवला' में उसे अन्यत्र 'वेदना' खण्डका निर्देश करते सर्व अंगों तथा पूर्वोका जो एकदेशश्रुत प्राचार्यपरहुए दिया है । दूसरा भेद प्राचार्योंके कुछ नामोंका है। म्परासे चला आया था वह गुणधराचार्यको प्राप्त हुआ । जयधवलामें गौतमस्वामीके बाद लोहाचार्यका नाम गुणधराचार्य उम समय पाँचवें ज्ञानप्रवाद-पूर्वस्थित न देकर सुधर्माचार्यका नाम दिया है, जो कि वीर दशम वस्तु के तीसरे 'कमायपाहुइ' नामक ग्रन्थ-महाभगवान् के बाद होने वाले तीन केवलियोंमेंसे द्वितीय विके पारगामी थे । उन्होंने ग्रंथ-व्युच्छेदके भयसे और केवलीका प्रसिद्ध नाम है। इसी प्रकार जयपाल की प्रवचन-वात्सल्यसे प्रेरित होकर, सोलहहजार पद परिजगह जसपाल और जसबाहू की जगह जयबाहू नामका माण उस 'पेज्जदोसपाहुड' ('कमायपाहुइ')का १८० उल्लेख किया है । प्राचीन लिपियोंको देखते हुए 'जस' सूत्र गाथाश्रोंमें उपसंहार किया-सार खींचा । माथ ही, और 'जय' के लिखनेमें बहुतही कम अन्तर प्रतीत होता इन गाथाओंके सम्बन्ध तथा कुछ वृत्ति-श्रादिकी सूचक है इससे साधारण लेखकों द्वारा 'जस' का 'जय' और ५३ विवरण-गाथाएँ भी और रची, जिससे गाथाओंकी 'जय' का 'जस' समझलिया जाना कोई बड़ी बात नहीं कुल संख्या २३३ हो गई । इसके बाद ये सूत्र-गाथाएँ है। हाँ, लोहाचार्य और सुधर्माचार्यका अन्तर अवश्य (शेषांशके लिये देखो, पृ० १३६ ) ही चिन्तनीय है । जयधवलामें कहीं कहीं गौतम और जम्बस्वामीके मध्य लोहाचार्यका ही नाम दिया इन्दनन्दि-श्रुतावतारमें 'भ्यधिकाशीत्या युक्तं है; जैसा कि उसके 'अणुभागविहत्ति' प्रकरणके निम्न शतं पाठके द्वारा मूबसूत्रगाथाओंकी संख्या ११ अंशसे प्रकट है: सूचित की है, जो ठीक नहीं है और समझनेकी किसी ___“विउलगिरिमत्थयत्थवढढमाणदिवायरादो राबतीपर निर्भर है। अयधवलामें १० गाथाओंका विणिग्गमिय गोदम लोहज्ज -जंबुमामियादि पाइरिय खूब खुलासा किया गया है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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