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________________ कातिक वीर निर्वाण सं०२४६६] धवलादि-श्रुत-परिचय भगवद् धरसेनसे निवेदन किया । इस पर धरसेन जीने वर्षायोगको समाप्त करके तथा 'जिनपालित' को सन्तुष्ट होकर उन्हें सौम्य तिथि और प्रशस्त नक्षत्रके देखकर पुष्पदन्ताचार्य तो वनवास देशको चले गये दिन उस ग्रन्थका पढ़ाना प्रारम्भ किया, जिसका नाम और भूतबलि भी द्रमिल (द्राविड) देशको प्रस्थान कर 'महाकम्मपयडिपाहुड' ( महाकर्मप्रकृतिप्राभृत ) गये । इसके बाद पुष्पदन्ताचार्यने जिनपालितको दीक्षा था। फिर क्रमसे उसकी व्याख्या करते हुए (कुछ दिन देकर, बीस सूत्रों (विंशति प्ररूपणात्मकसूत्रों) की रचना व्यतीत होने पर) आषाढ़ शुक्ला एकादशीको पूर्वाह के कर और वे सूत्र जिनपालिनको पढ़ाकर उसे भगवान् समय ग्रन्थ समाप्त किया गया । विनयपूर्वक ग्रन्थका भूतबलिके पास भेजा । भगवान् भूतबलिने जिनपालिअध्ययन समाप्त हुश्रा, इससे सन्तुष्ट होकर भूतोंने तके पास उन विंशतिप्ररूपणात्मक सूत्रोंको देखा और वहाँपर एक मुनिकी शंख-तुरहीके शन्द सहित पुष्यबलिसे · साथ ही यह मालूम किया कि जिनपालित अल्पायु है। महती पूजा की। उसे देखकर धरसेन भट्टारकने उस इससे उन्हें 'महाकर्मप्रकृतिाप्रभृत'के व्युच्छेदका विचार मुनिका 'भूतबलि' नाम रक्खा, और दूसरे मुनिका नाम उत्पन्न हुश्रा और तब उन्होंने ( उक्त सूत्रोंके याद) 'पुष्पदन्त' रक्खा, जिसको पूजाके अवसर पर भूतांने 'द्रव्यप्रमाणानुगम' नामके प्रकरणको आदिमें रखउसकी अस्तव्यस्त रूपसे स्थित विषमदन्त-पंक्तिको कर ग्रन्थकी रचनाकी । इस ग्रन्थका नामही 'घटखण्डासम अर्थात् ठीक कर दिया था । फिर उसी नाम- गम' है; क्योंकि इस आगम ग्रन्थमें १ जीवस्थान, २ करणके दिनां धरसेनाचार्य ने उन्हें रुखसत ( विदा) क्षुल्लकबंध, ३ बन्धस्वामित्वविचय, ४ वेदना, कर दिया । गुरुवचन अलंघनीय है, ऐसा विचार कर ५ वर्गणा, और ६ महाबन्ध नामके छह खण्ड अर्थात् वे वहाँमे चल दिये और उन्होंने अंकलेश्वर में आकर विभाग हैं, जो सब महाकर्म-प्रकृतिप्राभूत-नामक मूलावर्षाकाल व्यतीत किया। गमग्रन्थको संक्षिम करके अथवा उस परसे समुद्धृत * इन्द्रनदिन्द-श्रुतावतारमें उक्त मुनियोंका यह करके लिखे गये हैं। और वह मूलागम द्वादशांगभुतनामकरण धरसेनाचार्य के द्वारा न होकर भूतों द्वारा के अग्रायणीय-पूर्वस्थित पंचम वस्तुका चौथा प्राभूत किया गया, ऐसा उल्लेख है। है। इस तरह इस घट खंडागम श्रुतके मूलतंत्रकार इन्द्र नन्दि-श्रुतावतारमें ग्रन्थसमाति और नामकरण श्री वर्द्धमान महावीर, अनुतंत्रकार गौतमस्वामी और का एक ही दिन विधान करके, उससे दूसरे दिन सबसत उपतंत्रकार भूतबलिपुष्पदन्तादि श्राचार्योको समझना करना लिखा है। चाहिये । भूतबलि-पुष्पदन्तमें पुष्पदन्ताचार्य सिर्फ ___ यह गुजरातके भरोंच ( Broach ) जिलेका 'सत्यरूपण' नामक प्रथम अधिकार के कर्ता है, शेष प्रसिद्ध नगर है। सम्पूर्ण ग्रन्थ के रचियता भृतयलि श्राचार्य है । ग्रन्थका * इन्द्रनन्दि श्रुतावतारमें ऐसा उल्लेख न करके सम्बन्दि-श्रुतावारमें जिनपालिनको पुष्पान्तका लिखा है कि खुद धरसेनाचार्य ने उन दोनों मुनियोंको करीश्वर' (१) पत्तन भेज दिया था जहाँ वे दिनमें भानजा लिखा है और दक्षिणकी घोर बिहार करते पहुंचे थे और उन्होंने वहीं भाषाद कृष्ण पंचमीको हुए दोनों मुनियोंके करहाट पहुँचने पर उसके देखनेका वर्णयोग ग्रहण किया था। उल्लेख किया है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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