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अनेकान्त
[पौष, वीर-निवांवर
होता रहेगा, उसीके धको मुक्केसे: जैनियोंमें भी जो कुछ है कि हमारे हिन्दू भाइयोंमें मिन जिन धुरी मली बातो. परिवर्तन होगा उसको ही होमे देना उचित समझते हैं। का प्रचार होगा वे सब बातें समयके प्रभावसे आगे भी निर्जीवकी तरहसे दूसरी शक्तियोंके ही प्रयाहमें बहते आहिस्ता आहिस्ता जैनियोंमें भी भाती रहेंगी; कारण रहना पसन्द करते हैं, खुद कुछ नहीं करना चाहते हैं। कि जैनियोंने इस विषयमें जैनसिद्धान्तानुसार कोई
अन्तमें हम इतना कह देना जरूरी समझते हैं कि नियम स्थिर नहीं कर रखा है, किन्तु जिस लिस आज-कल सब ही जातियों में परिवर्तन बड़े वेगसे होरहा प्रान्तमें हिन्दुओंका जो व्यवहार है उस ही का अनुसरण है । परिवर्तनसे खाली कोई नहीं रह सकता है। वह परि- करना अपना धर्म मान लिया है यहाँ तक कि जो बातें वर्तन बिगाड़ रूप हो या संवार रूप, यह कोई नहीं कह जैन धर्मके प्रतिकुल भी हैं उनका भी अनुकरण दृढ़ता मकता है । हाँ, इतनी बात ज़रूर है कि जो अपना के साथ किया जाता है, जैसा कि राजपतानेमें ब्याह परिवर्तन श्राप नहीं करेंगे किन्तु दूसरोंके ही प्रवाहमें शादीमें जलेबियोका बनाना और जीमना जिमाना, बहना चाहेंगे उनका अस्तित्व कुछ नहीं रहेगा। उचित बड़ी हृदय विदारक मौतमें भी सबका नुकता जीमना तो यही है कि जो भी रूढ़ियाँ जैनधर्म के विरुद्ध हममें और जिमाना आदि । यदि जैनियोंकी यही प्रगति और
आगई हैं उनको दूर कर हम अपना सुधार जैन अनुकरणशीलता रही और अपना कोई अलग अस्तित्व सिझन्तानुसार करलें । यदि ऐसा नहीं करेगे और दूसरों स्थिर न किया गया तो नहीं मालूम हिन्दू भाईयोंके के ही परिवर्तनमें परिवर्तन होना पसन्द करते रहेगे तो प्रवाहमें बहते बहते हम अपने धर्मकी सारी विशेषताको जैनधर्मका रहा सहा अस्तित्व भी नहीं रहेगा। खोकर कहाँसे कहाँ पहुँच जायें और किस गढ़े जा.
श्राप यह बात देख रहे हैं कि जबसे गांधी महाराज- पड़ें। ने अछूतोंसे अछूतपन न रखनेका आन्दोलन चलाया आजकल तो ऐसा होरहा है कि प्रचलित रूढ़ियोंके है और कांग्रेसने इमका बीड़ा उठाया है, तबसे अनेक विरुद्ध अपने हिन्दू भाइयोंका अनुकरण जब कुछ थोड़े हिन्दुओंने तदनुसार ही वर्तना शुरू करदिया है और ही जैनी भाई शुरू करते हैं तब तो सेठ' साहूकार और अनेक जैनी भी उनके प्रभावमें प्रा तदनुसार ही प्रवर्तने बिरादरीके पँच रूढ़ियोंकी दुहाई देकर उनको बहुत लग गये हैं। इस ही प्रकार अनेक हिन्दू बैरिस्टरों,वकीलों कुछ बुरा भला कहने लग जाते हैं, विद्वान लोग भी डाक्टरों, और जजों आदिने मेज़ पर रोटी खाना शुरू उनकी हाँ में ही मिलाकर धर्मचला धर्मचलाकी रट करदिया है तो अनेक अंग्रेजी पढ़े जैनी भी उनकी देखा लगाने लग जाते हैं। फिर जब कुछ अधिक लोग इस देखी ऐसा ही करने लग गये। इस ही प्रकार बहुधा नवीन मार्गपर चलने लग जाते हैं तो लाचार होकर हिन्दुश्रीमें बरफ और सोगवाटर पीने का प्रचार देख सब ही पंच और पंडित भी चुप हो जाते हैं । पंचम जिसके बनानेमें हिन्दू मुसलमान, छुस-प्रत सबहीका कालमें तो ऐसा होना ही है ऐसा कहकर संतोष कर लेते हाथ लगता है, हमारे कुछ जैनी माई भी इनको ग्रहण है। इस प्रकारकी गड़बड़ जैनजातिमें बहुत दिनोंसे करनेमें आनाकानी नहीं करते है। इसी प्रकारके अन्य होती चली मासी है, यदि कोई सुधारवादी इस विषयमें भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जिनसे यह स्पष्ट कुछ भावान उठाता भी है और विद्वानोको इसमें योग