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________________ [पौर, बीर- विच एक लौकिक या सागरिक और दूसरा धार्मिक या मा. पोछते ही हैं। जो प्रांखों और दांतों तकका भी मैल नहीं ध्यात्मिक । लौकिक जीवन जो कोई जितना भी अधिक छुड़ाते हैं। जो सजे सजाये महल मकान, अत्यंत जगपरिग्रही, अधिक सम्पत्तिवान् वैभवशाली, ठाठ बार और मगाती और चहल पहल करती हुई मनुष्योंसे भरी खान शौकतसे रहने वाला, साफ सुथरे, चमक दमक आबादी, साफ सुथरी रहने वाली सुंदर २ स्त्रियां और और तड़क भाकके सामानसे सुसज्जित, अनेक महल सब ही वैभव छोड़कर जंगलमें जा विराजते हैं, धरती मकान, बाग बगीचे, हाथी घोड़े, नाल की पालकी, नौकर पर सोते हैं, खाकपर लेटते हैं, सर्दी, गर्मी, डांस मच्छर चाकर बांदी गुलाम रखने वाला । अनेक प्रकारकी के दुख सहते है और कुछ भी परवाह नहीं करते हैं । मुंदर २ स्त्रीरबोसे जिसके महल भरे हुये, अनेक देशों लौकिक साधना वालेको तो अपनी इन्द्रियों और और अनेक राजाओपर जिसकी हकूमत चलती हो । देश कषायोंको पुष्ट करना होता है,इस कारण वो अपने शरीविदेश विजय करता फिरता हो, बड़ा भारी जिसका दब- रको भी साफ और सुंदर बनाये रखनेकी कोशिश करता दब हो वही बड़ा है, पूज्य है और प्रशंसनीय है, स्तुति है और अपने महल मकान और अन्य सब वस्तुओंको और विरद गानेके योग्य है । वह अपने शरीरसे जितनी भी झाड़ता पौंछता रहता है वह तो अपनी प्यारी त्रियों मी ममता करे थोड़ी है । शरीरकी पुष्टि के वास्ते सत्तर नौकरों चाकरों और हाथी घोड़ों आदि पशुओंको भी प्रकारके भोजन खाता हो। अनेक वैद्य जिसके लिये साफ़ सुंदर देखना चाहता है, इस कारण आप भी अत्यंत पौष्टिक और सुस्वादु औषधियां बनानेमें लगे बार २ नहा-धोकर सुंदर २ वस्त्रों और अलंकारोंसे रहते हों, अनेक चाकर और चाकरनियां जिसके शरीर सुसज्जित होता है और अपनी स्त्रियों, नौकरो, पशुओं, को चिकना मुलायम और सुंदर बनानेमें नाना प्रकारके महल मकानों, और सभी सामानको धो-पूछकर साफ तेलों और उबटनोंसे उसके शरीर का मर्दन करें, दिनमें कराता रहता है और तरह २ के सामानसे सजाता को २ बार नहलाते रहते हो और कई बार नवीन रहता है। इसके विपरीत अध्यात्म-साधना वालेको पन्न बदलते रहते हो, उस हो का संसारी जीवन सबसे अपने शरीर और तत्सम्बन्धी अन्य सब ही भोगों तथा उका और बदिया है। सब ही सामानसे मुँहमोड़ एक मात्र अपनी आत्माको परन्तु प्राध्यात्मिक या धार्मिक जीवन इससे बिल- रागद्वेष और विषय कषायोंके मैलसे दूर कर शुद्ध और कुल ही विपरीत है। यह जीवन सबसे उत्कृष्ट तो साधु- पवित्र बनानेकी ही धुन होती है। बोका होता है, जिनके पास परिमाके नामसे तो एक इस प्रकार जैन-धर्मके अनुसार तो जितना भी कोई लंगोटी मात्र भी नहीं होती है । शान तो धर्मका ज्ञान परीरका मोह छोड़, उसके प्रति सदा प्रशुचि भावना पास करने के लिये, पीकी जीव जन्तुओंके पार संयम रख, उसके धोने, माजने और साफ व शुद्ध करने के के लिये और कमसमें पानी ही जाकर गुदा साफ बखेड़ेमें न पाकर अपनी बात्माके ही शुद्ध करने में करने के लिये है, इसके सिवाय उनको सब ही प्रकारके लगता है, उतना ही धर्मात्मा और प्राध्यामिक है, सामानका त्याग होता तर निर्ममत्व होकर जो और जितमा २ कोई व शरीरको पो-मांजकर मुंदर नलान करते है, न किसी पूज्य प्रकार उतको कापते बनानेमें मन लगाता उन्ना पर सारी है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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