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उस दिन -
। 'माज 'घन' ही सब-कुछ है ! भाई, भाई का कत्ल कर देता है ! सुरेज़ीमें बुराई नहीं दिखाई देती। इन्साफको बालाए-ताक रखकर मासूमोंके हकको हलाक कर दिया जाता है । जिबह कर दिया जाता है गरीबोंकी दुनिया को ! किस लिए......? पैसेके लिए ! धनके लिए !! मगर 'उस दिन यह बात नहीं थी, कतई नहीं !
स्व न-आकाश! शरीर को सुखद धूप ! नगर मावश्यक-प्रयोग! हलवाहक अपनी धुनमें मस्त! ''से दूर रम्य-प्राकृतिक, पथिकोंके पद-चिन्ह उसे पता नहीं, कोई देख रहा है, या क्या है? से बनने वाला-और-कानूनी मार्ग; पगडण्डी! जरूरत भी क्या ? । इधर-उधर धान्य उत्पादक,हरे-भरे तथा अंकुरित- कुछ देर खड़ा रहा ! लालायित-राष्टिको स्वतंत्र खेत ! जहां तहां अनवरत परिश्रम के प्रादी; विश्व किए हुए ! प्रचल, मंत्र-मुग्ध, या रेखांकित-चित्र के अन्न-दाता-कृषक ! ..... 'कार्यमें संलग्न और की भांति !.. सरस तथा मुक्त छन्द की तानें पालापने में व्यस्त ! अचानक हलवाहककी दृष्टि पड़ी-नर पुंगव, स-घन वृक्षों की छाया में विश्राम लेने वाले-सुन्दर, धन्यकुमार पर ! कैसा प्यारा सुहावना-मुँह ।...... मधु-भाषी पशु-पक्षियों के जोड़े ! श्रवन प्रिय, मधु. सुदर्शन ! मनमें एक स्फूर्ति सी पैदा हुई, उमंग-सी स्वर से निनादित वायु-मण्डल ! "और समीरकी पनपी ! इच्छा हुई- कुछ बातें की जाऐं, सत्कार प्राकृतिक प्रानन्द-दायक झंकृति !!!... किया जाए !'....."अपरिचित है तो क्या, है तो __ महा-मानव धन्यकुमार चला जा रहा था, उसी प्रभावशाली ?....... पगडएसी पर ! प्रकृतिकी रूप-भंगिमाको निरखता,
विचारों का संघर्ष! प्रसन्म और मुद्रित होता हुआ! क्षण-प्रति-क्षण धन्यकुमारने देखा, हलवाहक प्रेम-पूर्ण नेत्रोंसे जिज्ञासाएँ बढ़ती चलती! 'हृदय चाहतो-'विश्व उसकी ओर देख रहा है ! उसकी मजबूत-भुजाएँ की समस्त ज्ञातव्यताएँ उसमें समा जाएँ! सभी शिथिलसी होती जा रही हैं ! परिश्रमसं विरक-सा, कला कौशल्य उससे प्रेम करने लगें.."नया खून ठगा-सा वह ज्यों-का-स्यों खड़ा रह गया है !...... जो ठहरा ! सुख और दुलारकी गोपमें पोषण पाने दो-कदम आगे बढ़कर वह कहने लगा-मन बाला!
की अमिनापा-क्या यह कला मुझे सिला सामनेके खेवमें हल चलाया जा रहा था !... सकते हो? ठिठककर रुक गया, देखने लगा-कषक-कलाका "फल-से मड़े ! उसने अनुभव किया स्वीक