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________________ ... हानसे मानी एक बेढंगा अलि मलिन चिन्ह बनीं होगये हैं आपके द्वारा तत्कालीन जैन समाज और दिया है और मेरत, संगर आदि चक्रवर्ती राजाओंके स्वयं जिनसेनाचार्य बहुत कुछ उपकृत हुए हैं और यशीका तारीक प्रकाशर्फ सदृश संहार करके जग- आपके उदार गुणो तथा यकी धाकने आचीयमहोसाने गुर्जर नरेन्द्र के महान् यशको फैलने और प्रका दयके हृदयमें अच्छा घर बना लिया था। इससे पण त होने की अवसर दिया है। इनको आदि लेकर स्तिमें गुरु वीरसेनसे भी पहले आपके गुणोका कीर्तन और मौ सम्पूर्ण राजानीसे बढ़कर क्षीरसमुद्रक फैन किया गया है। जान पड़ता है, आपके विशेष सहयोग (भाग की तरह गुर्जर-नरेन्द्रकी शुभ्रकीति, इस और आपके राज्यको महती सुविधाओं के कारण ही जोको, चन्द्र-तारानीकी स्थिति-पर्यन्त स्थिर रहे 'जयधवला' का निर्माण हो सका है, और इसीसे यद्यपि इस वर्णनमें कवित्व भी शामिल है, तो भी प्रेशस्तिके ८ वें पद्यमें, जो ऊपर उद्धृत किया जा चुका इससे इतना जर पाया जाता है कि महाराज अमोघ- है, इस टीकाका 'अमोघवर्ष राजेन्द्र भाज्यराज्य-गयी. वर्ष,निनका दूसरा नाम नृप.तुझ था, एक बहुत बड़े व्या', यह भी एक विशेषणे दिया गया है। प्रतापी, प्रशस्ती, उदार, गुणी, गुणद, धर्मात्मा, परो- इस प्रकार यह धवलं-जयधवल के रचयितां श्रीवीरपारी और जैनधर्म के एक प्रधान.प्राश्रयदाता सबाट सेन जिनसेन प्राचार्योका, उनकी कृतियों तथा समका बबालीबालके बाद निम्न पच-द्वारा जैन- लीन राजादिको-सहित, धवल जयधवलके आधार पर नामका लागि मला है। मौद्र से प्रारम- संक्षिप्त परिचय है। मामालियासित शासन और मुक्तिमोकशासन वीरसेवामन्दिर, सरसावा, ता०७-१-१९४० जैसे विशेडगों के साथ स्मरण किया है। इस पथके बाबही प्रशस्ति पोरसन और जिनसेनादि सम्बन्धी के सब पच दिये । बिमका ऊपर उल्लेख किया जा सका गणितसारसंग्रहके को महावीर भाचार्यने भी भापकी प्रशंसामें कुछ पचबिखे है और कितने ही जयत्यजन्यमहात्मं विशासित कुशासनम् । शिबालों भादिमें भापके गुचोंका परिचय पाषा शासनं जैनमुभासि मुक्तिनादम्यक शासनम् ॥ १६ जाता है। ... सुधार-संसंचन . (1) नेवान्त' की गत दूसरी किरयके प क्ष की तीसरी पंक्तिके, प्रायम्भमें वो "लिखकर उसे" मो .इसके कान पर पाक बन "अपने प्रास्ताविक शब्दोंके साथ" ये शम्द बना ले। और १६ 10 की प्रथम पंतिके तुर तथा पृ०॥के दूसरे काखमकी 10वीं पंक्तिक अन्तमें इनकेटरकामाज ("..." बगा देखें, जिससे गोत्र विचार सम्पनी इस मूव खेसो दूसरे विद्वानका समझने में कोई प्रम नरहे। ( R aच' की नस ममी मियो पृ० १०८ पर जो कुटपोट पा सके सम्बन्ध में अपने श्री मांगीलाबार सावो मर सहित पर.कि-"नमसार: पति "औनमा प्रचारक में बेकिन हिलामको प्रभाबके सृष्टि का प्रयाप । मुद्रित वावकियोर प्रेम राबवल्में साविको वैवान प्रचारक माना है। स हिन्न नसकी पुस्तकों के आधार पर है इसलिये समममी पावती मा मुम्न परिवाम गोटमै "समर्मक स्थान पर हिन्दु पुराणकारी"वना । सम्पादक
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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