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________________ पुरुषार्थ कि कलिवर भी मैथिलीशरण गा पुरुष स्या, पुरुषाव हुमान , मनुज-बीवनमें जवके लिये, दयकी सब दुर्बलता हो। प्रथम ही बह पौन चाहिये। अक्ल जो तुममें पुरुषार्थ हो, विजय तो पुरुषार्थ बिना कहाँ, सुलभ कौन तुम्न पदार्थ हो? कठिन है चिर-जीवन भी यहाँ। अगतिके पयमें विचरो उठो, भय नहीं, भवसिन्धु वरो, उठो, पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो ॥ . पुरुष हो, पुरुषार्थ करो उठो॥ न पुरुषार्थ बिना कुछ स्वार्थ है, यदि अनिष्ठ अड़े भड़ते रहे, "पुरुषार्थ बिना परमार्थ है। विपुल विघ्न पड़ें पड़ते रहे। समझ लो यह बात यथार्थ है, हृदयमें पुरुषार्थ रहे भरा, ... कि-पुरुषाचे वही पुरुषार्थ है। जलधि क्या, नम क्या, फिर क्या धरा । भुवनमें सुख-शान्ति भरो उठो, दृढ़ रहो, ध्रुवधैर्य धरो, उठो पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो पुरुष हो, पुरुषार्थ करो उठो।। न पुरुषार्थ विना वह स्वर्ग है, यदि अभीष्ट तुम्हें निज सत्व है, न पुरुषार्थ बिना अपवर्ग है। प्रिय तुम्हें यदि मान-महत्व है। न पुरुषार्थ बिना क्रियता कहीं, यदि तुम्हें रखना निज नाम है, ___न पुरुषार्थ विना प्रियता कहीं। जगतमें करना कुछ काम है। सफलता पर तुल्य बरो उठो, मनुज ! तो श्रमसे न डरो, उठो, पुरुष हो, पुरुषार्थ करो उठो॥ "पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो ।। (४) न जिसमें कुछ पौरुष हो यहाँ, प्रकट नित्य करो पुरुषार्थ को, सफलता बह पा सकता कहाँ ? हृदयसे तज दो सब स्वार्थको । अपुरुषार्थ भयंकर पाप है, यदि कहीं तुमसे परमार्थ हो, न उसमें यश है न प्रताप है। . यह विनश्वर देह कृतार्थ हो । न कमि-कीट-समान मरो, उठो, सदय हो, पर दुख हरो, उठो, पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो ॥ पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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