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साहित्य- परिचय और समालोचन
वर्ष २ २]
गाथाएँ ऐसी है जो गोम्मटसार में भी प्रायः ज्यों की त्यों और कहीं कहीं कुछ पाठ-भेदके साथ पाई जाती हैं और जो किसी प्राचीन ग्रंथ संभवतः पंचसंग्रह प्राकृतपरसे उद्धृत की गई हैं। बाकी १०४ के करीब संस्कृत प्राकृत के पद्य भी दूसरे ग्रंथों पर से उद्धृत किये गये हैं। और इस तरह ग्रंथ में प्रस्तुत विषयका अच्छा सप्रमाण विवेचन किया गया है।
मूल ग्रन्थ और उसकी 'धवला' टीकाका हिन्दी अनुवाद भी प्रत्येक पृष्ट पर साथ साथ दिया गया है। परन्तु अनुवादक कौन हैं यह ग्रंथ भर में कहीं भी स्पष्ट सूचित नहीं किया गया। जान पड़ता है जिन पं० हीरालालजी शास्त्री और पं० फूलचन्द जी शास्त्रीके सहयोगसे ग्रंथका सम्पादन हुआ है और जिन्हें ग्रंथके मुख पृष्ठ पर ‘सहसम्पादकौ' लिखा है उन्हींके विशेष सहयोगसे ग्रंथका अनुवाद कार्य हुआ है । अनुवादके अतिरिक्त फुटनोट्सके रूपमें टिप्पणियाँ लगानेका जो महत्वपूर्ण कार्य हुआ है उसमें भी उक्त दोनों विद्वानों का प्रधान हाथ जान पड़ता है । टिप्पणियोंमें अधिकाश तुलना श्वेताम्बर ग्रंथों परसे की गई है। अच्छा होता यदि इस कार्य में दिगम्बर ग्रंथोंका और भी अधिकता के साथ उपयोग किया जाता। इससे तुलनाकार्य और भी अधिक प्रशस्तरूपसे सम्पन्न होता । श्रस्तु अनुवादको पढ़कर जाँचनेका अभी तक मुझे कोई असर नहीं मिल सका, इसलिये उसके विषयमें मैं अभी विशेषरूपसे कुछ भी कहनेके लिये श्रसमर्थं हूँ परन्तु सामान्यावलोकनसे वह प्रायः अच्छा ही जान पड़ता है ।
ग्रंथके शुरूमें श्रमरावती, आरा और कारंजाकी प्रतियोंके फोटो चित्र और ग्रन्थोद्धार में सहायक सेठ हीराचन्द, सेठ माणिकचन्द जी आदि ७ महानुभावोंके
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चित्र, चित्र-परिचय सहित देकर ७ पेजका प्राकथन, ४ पेजमें अंग्रेजी प्रस्तावना और फिर ८८ पृष्ठकी हिन्दी प्रस्तावना दी है। साथ, प्राक्कथनके बाद एक पेजकी विषय-सूची भी दी है, जो कि फोटो चित्रोंसे भी पहले दी जानी चाहिये थी; क्योंकि सूचीमें फोटो चित्र तथा प्राक थनको भी विषयरूपसे दिया गया है। प्राकथनादि तीनों निबन्ध प्रो० हीरालाल जीके लिखे हुए हैं । उनके बाद दो पेज की संकेत सूची, तीन पेजकी सत्प्ररूपणाकी विषय-सूची, एक पेजका शुद्धि पत्र, एक पेजका सत्प्ररूपणा का मुखपृष्ठ, और फिर एक पेजका मंगलाचरण दिया है । सत्प्ररूपणाकी जो विषय सूची दी है वह केवल सत्प्ररूपणाकी न होकर उसके पूर्व के १५८ पृष्ठोंकी भी विषय सूची है । श्रच्छा होता यदि उसे जीवस्थान के प्रथम अंशकी विषय सूची लिखा जाता । और सत्प्ररूपणाका जो मुख पृष्ठ दिया है उस पर सत्प्ररूपणाकी जगह 'जीवस्थान प्रथम अंश' ऐसा लिखा जाता। क्योंकि पट् खण्डागमका पहला खण्ड जीवस्थान है, उसीका णमोकारमंत्र मंगलाचरण है, न कि सत्प्ररूपणा का |
ग्रन्थके अन्त में परिशिष्ट दिये हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं:
१ संत-प्ररूपणा सुत्ताणि, २ श्रवतरण-गाथा-सूची, ३ ऐतिहासिक नाम सूची, ४ भौगोलिक नाम सूची, ५ ग्रन्थनामोल्लेख, ६ वंशनामोल्लेख, ७ प्रतियोंके पाठभेद, ८ प्रतियों में छूटे हुए पाठ, ६ विशेष टिप्पण |
प्रस्तावना - १ श्री धवलादि सिद्धान्तों के प्रकाशमें श्रानेका इतिहास, २ हमारी श्रादर्श प्रतियां, ३ पाठसंशोधनके नियम, ४ षड् खण्डागमके रचयिता, ५ श्राचार्य-परम्परा, ६ वीर निर्वाणकाल, ७ षट् स्वगडागमकी टीका धबलाके रचयिता, ८ धवलासे पूर्वके