SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० अनेकान्त [मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं०२४६६ बौदोंके चीन, जापान आदि पौर्वात्य राष्ट्र, ईसाइयोंके प्रारम्भ हुआ, वह उठ बैठा और उसे त्रेता युगके चिन्ह पुरूप, अमेरिका भादि पाश्चात्य राष्ट्र और मुसलमानोंके दिखाई देने लगे और जहां उसने उद्योग प्रारम्भ किया तुर्कस्तान, काबुल आदि मध्य राष्ट उत्कर्षशाली हैं और मोर उसका सत्ययग या पहुंचा । इसलिये प्रयत्न हम कलिके मारे बेज़ार हैं ! यदि हमें फिर वद्धिष्णु और करो।" इस वेदाज्ञाने भा यहा सिद्ध होता है कि, जब जयिष्णु बनना है तो मनोदौर्बल्य उत्पन्न करने वाली हम सजग होकर अपना कर्तव्य पालन करन क गेंगे. कलिकल्पनाको हिमालयमें भेज देना चाहिये । वास्तवमें सभी सत्ययुगका प्रवर्तन कर सकेंगे। यह हमें अपने किसी युगका प्रवर्तन करना राजशासको अथवा सामा- मनमें अच्छी तरह जमा लेना चाहिये मोर कलिका जिक नेताओं के हाथ है । ऐतरेय ब्राह्मणमें लिखा है:- काला मुँह कर देना चाहिये। यदि हम असावधान कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः। रहेंगे, तो निश्चयसे जान रखें कि, झब्बू लोग हमें उत्तिष्टस्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यतेचरन।।चरैवेति। अपने बुद्धिहत्याके कारखानेमें पकड़कर ले जायगे और __ "जहां मनुष्यको नींद भायी और उसका कलि अवतारवाद, भाम्यवाद, कलिकरुपनाकी टिकटीपर चढ़ा माया जहाँ उसने पालसको हटाया और उसका द्वापर कर फाँसी लटका देंगे। साहित्य-परिचय और समालोचन (१) षट् खंडागम ('धवला' टीका और उसके बातोंका विस्तारके साथ वर्णन पृष्ठ ७२ तक किया गया हिन्दी अनुवाद सहित ) प्रथम खडका सत्यरूपणा नामक है । इभीमें मूल सूत्रके अवतारको वह सब कथा दी है प्रथम अंश-मूल लेखक, भगवान पुष्पदन्त भूतबलि ! जिसे पाठक 'अनेकान्त' के गत विशेषांकमें 'धवलाांद सम्पादक, प्रोफेसर हीरालाल जी जैन एम.ए.,एल.एल. श्रुत परिचय' शीर्षकके नीचे पढ़ चुके हैं। उसके बाद बी, सस्कृताध्यापक किग-एडवर्ड-कालेज अमरावती। जीवस्थानके कुछ प्रारंभिक सूत्रोंकी व्याख्या पृष्ठ १५४ प्रकाशक, श्रीमन्त सेठ लक्ष्मीचन्द शिताबराय, जैन- तक दी है, जिनमें १४ जीव समासों (गति आदि साहित्योद्धारक फड-कार्यालय अमरावती (बगर)। मार्गणास्थानों) का उल्लेख किया गया है और फिर बड़ा साइज पृष्ठ संख्या सब मिलाकर ५५६ । मूल्य, उनकी विशेष प्ररूपणाके लिये 'जीव स्थान' के सत्सजिल्द तथा शास्त्राकार प्रत्येकका १०) रु.। प्ररूपणादि पाठ अनुयोग द्वारोंके नाम सूत्र नं. ७ में 'धवल' नामसे प्रसिद्ध जिस प्रथके दर्शनोंके लिये दिये हैं। उसके बाद वे सूत्रसे सत् प्ररूपणाका प्रोद्य जनता असेंसे लालायित है उसके 'जीवस्थान' नामक और श्रादेशरूपसे विस्तार के साथ वर्णन ४१० पृष्ठ तक प्रथम खंडका यह अन्य प्रथम अंश है। इस अंशमें मूलके किया गया है। यह सब वर्णन अनेक अंशोंमें गोम्मटमंगलाचरण सहित कुल १७७ सूत्र है । मंगलाचरणका सारके गुणस्थान, मार्गणा और सत्यरूपणाके वर्णनके सूत्र प्रसिद्ध णमोकारमंत्र है और उसकी व्याख्या तथा साथ मिलता-जुलता है। टीकामें बहुतसी जगह 'उक्तमंगल, निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम और कर्तारूपसे छह च' रूपसे जो २१४ पद्य दिये है उनमें ११० के करीब
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy