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३. निव]
पुदि हत्याका कारनामा
बनी रहेगी और दिन दिन अधर्म, अनीति, अन्याय, काठका प्रचार किया जायगा, पतलूनके बदले लोग असत्य, हिसा, अत्याचार अनाचार प्रादिका बाजार लुङ्गी पहनना प्रारम्भ कर देंगे, सादीके बदल्ने पाँच पाँच गरम रहेगा। बेचारोंने यह भी सोचनेके कष्ट नहीं सौ कखियोंके पुरानी चालके लहंगे सियां पहनने उठाये कि जब हमारे देखते हुए १०-१२ वर्षोंमें ही लगेंगी, पण्डित लांग कलाईमें घी बांधने के बदले पूर्व-परिस्थिति बदल जाती है, तब वाखों वर्षोंतक गले में जलघवी, धूपधड़ी या बाबकी घदी पा घण्टा वह एकसी कैसे बनी रह सकती है? उनकी दृष्टिमें लटकावेंगे, चीनीके प्याले चम्मचके बदले लोग अर्घाकलिका प्रताप अनिवार्य है, वह होकर ही रहेगा। भाचमनी पञ्चपात्रका उपयोग करने लगेंगे, फ्रेन्चकटनया राज्य, नयी संस्थाएँ, नये विचार, नये कर्जनकट-मानवर्टकटके बदले जटा-दाढ़ी बढ़ा लेंगे और सुधार, जो कुछ वे नया देखते हैं, सब कलिका प्रताप रेलों मोटरोंको बन्द कर बैलगाड़ियाँ भैंसागादियां है। कोई नारी हरण करे, बलात् गोमांस खिला दे, बनायो जाने लगेंगी, तो क्या काम तुरन्त भाग जायगा अपमान करे, मूर्तियोंको तोड़ फोड़ दे, राज पाट छीन झब्बुनोंने कलिके गालसे बचनेके कुछ उपाय भी ले, गलेमें डोरी बाँधकर बन्दरकी तरह नाच नचावे, बताये हैं । जो कुछ मिल जाय, उससे सन्तुष्ट रहो, सब कलिकी महिमा है।
सत्यनारायण, जलनछुट आदि व्रतोत्सव कृपणता छोड़___प्रश्न यह उठता है कि, कलि भारतवर्षके ही पीछे कर मनाया करो, दान-दक्षिणामें मम्बुभोंको हाथी घोड़े, क्यों पड़ा है ? विदेशों में वह अपना प्रभाव क्यों नहीं धन रत्न, धान्य-वसा, मिष्टान-पकवान, बहू-बेटी भादि दिखाता? क्या खैबरघाटीके पार करने अथवा समुद्रके अर्पण कर सन्तुष्ट किया करो, किसी प्रकारका प्रतीकार लाँघनेकी उसमें सामर्थ्य नहीं है या उन देशोंमें उसे न कर जो कुछ होता जाय, उसे देखा करो-सहा कोई पूछता ही नहीं ? हमारे पडौसी जापान, रूस तथा करो और हाथ पर हाथ रखकर बैठे बैठे राम नाम तुर्किस्तानने अपने यहाँ सुवर्णयुग प्रस्थापित कर दिया है अपा करो । यदि कोई हाथ पैर हिलनेका उपदेश करे ।
और युद्ध में पराजित जमणी समराङ्गणमें ताल ठोककर तो उसे धर्महीन, पतित, वेदनिन्दक जानकर कलिवयंफिर खड़ा हो गया है । इलैण्ड, अमेरिका, फ्रान्म, प्रकरण और प्रायश्चित्तके कुछ संस्कृत श्लोक सुना दो। इटली आदि देशोंमेंकलिकी दाल नहीं गलती । कदा- कलिवय-प्रकरणमें पुरुषार्थनाशकी कोई बात नहीं छूटी चित वहाँके स्वाभिमानी कर्मवीरों और उनकी जल- है। बस, चार लाख बत्तीस हजार वर्षों तक इसी स्थल-नभोमबखनमें मरिडत सुसज्जित युद्ध-सामग्रीको तरह चुप्पी साधे बैठ रहनेमे बेड़ा पार है। फिर ब्रह्म. देखकर वह डर जाता हो । इसमे तो यही अर्थ निक- साक्षात्कार या मोच बहुत दूर नहीं रह जायगा । बता है कि, दुर्बल राष्ट्रोंको ही कलि सताता है, कलि-सन्तरणका यह कैसा अच्छा उपाय है; सबलोंके पास भी नहीं फटकता।
बुदिहत्याका कितना उसम यंत्र! इस पत्रक भाग विचार करने की बात है कि आज मानक बालि- सिर मुका देनेसे ही भारतकी सब भोजस्विता मारी कानोंको जो शिक्षा दी जाती है वह बन्द कर यदि गयी है । बौदों, ईसाइयों अथवा मुसलमानोंने अपने उन निरपर रखा जायगा, चायके बदले सुखसीके धर्म पा समाजमें कालिको नहीं घुसने दिया। इसीसे
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