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________________ श्वेताम्बर न्यायसाहित्यपर एक दृष्टि [ले०-६० रतनलाल संघदी, न्यायतीर्थ-विशारव] प्रागम-कालक्ष विक्रमकी तीसरी-चौथी शताब्दिके पूर्वका श्वे. क्षिकी विद्या" नामसे तर्क-शास्त्रका पता चलता है किंतु ' जैन-न्याय-साहित्यका एक भी ग्रन्थ उपलब्ध भारतीय न्याय-शास्त्रकी मज़बून नींव डालने वाले गौतमनहीं होता है; इसके पूर्वका काल अर्थात् विक्रमसे पांच- मुनि ही हैं । इन्होंने ही सर्वप्रथम "न्याय-सत्र" नामक मो वर्ष पहलेसे लगा कर उमके तीनभौ-चारमौ वर्ष प्रथकी रचना की। इनका काल ईमाकी प्रथम शताब्दि बाद नकका काल “अागम-काल" है। मूल अागम माना जाता है । इमी कालम भारतीय-प्रांगणमें तर्क और आगमिक-विषयको स्पष्ट करने वाली नियुक्तियों युद्ध प्रारंभ होता है और श्रागे चल कर शनैः शनैः एवं चर्णियाँ ही उस समय श्वे. जैन-साहित्यकी मीमा मभी मतानुयायी क्रमशः इसी मार्गका अवलम्बन लेते थी। श्रागमों पर ही जनताका जान निर्भर था। भग- हैं। यहीम भारतीय दर्शनोंकी विचार-प्रणाली तर्कवान महावीर स्वामीके निर्वाण कालमे लगा कर निर्धा- प्रधान बन जाती है और उत्तरोत्तर इसीका विकाम ग्नि अागम-काल तकका निर्मित माहित्य वर्तमानमें होता चला जाता है। इतना पाया जाता है:-११ अंग, १२ उपाग, ५ छेद, भर्वप्रथम यह सोचना श्रावश्यक है कि महर्षि ५ मूल, ३० पयन्ना, १२ नियुक्तियाँ, तत्वार्थमूत्र जैम गौनमन हम प्रणालीकी नींव क्यों डाली ? बात यह थी ग्रंथ एवं कुछेक ग्रथ और भी मिलते हैं । इनके कि ब्राहाणाने म्वार्थवश मनाके बल पर बैदिक-धर्म पर अतिरिक्त इस कालमें निर्मित अन्य श्व० ग्रथांका पना एकाधिपत्य जमा लिया था, एवं धार्मिक-क्रिया-कर्मो में नही चलता है। इस प्रकारकी विकृति पैदा कर दी थी कि जिसमें जनविक्रमकी पांच शताब्दिसं जग माहित्य पल्लवित माधारणका शोषण होता था और उनके दुःबोगं वृद्धि हाने लगा और ज्योज्यो ममय बीतता गया त्या त्यों होती जाती थी । इमलिये जनताका झुकाव तेज़ीम जैनविकान और प्रौद्र होता रहा है। धर्म और बौद्धधर्मकी ओर होने लग गया था। क्योंकि भारतीय-तर्कशास्त्रकी प्रतिष्ठा इन दोनोंकी कार्य प्रणाली ममान-बाद और मध्यममार्ग भारनीय तर्क-शास्त्रके आदि प्रणेता महर्षि गौतम है पर अवलम्बित थी। ये जातिवादका (वर्ण व्यवस्थाका) इन्हीन ही इस शास्त्रको व्यवस्थितम्प दिया । यद्यप और यज्ञ श्रादि निरुपयोगी क्रिया काण्डोका निषेध उनके पूर्व भी उपनिषदो आदि प्राचीन प्रथोंमें "अान्धी- करते थे, एवं यह प्रतिपादन करते थे कि मभी मनुष्य 8 इसका दृष्टिकोण श्वेताम्बर साहित्य धाराकी समान हैं, सबके हित एक है, प्रत्येक व्यक्ति ( चाहे वह अपेशामे है।लेखक म्त्री हो या पुरुष ) धर्मका श्रागधन कर मुक्ति प्राप्त कर तिका
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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