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________________ भनेकान्त [मार्गशीर्ष, वीरनिर्वाण सं० २४९९ सकता है। शास्त्र-श्रवणका भी प्रत्येकको समान-अधि- तोंका प्रबल खण्डन किया । दिङ नागादि पश्चात्वर्ती कार है; आदि आदि । इन कारणोंसे जनता वैदिक- बौद्ध तार्किकोंने इस विषयको और भी आगे बढ़ाया धर्मकी छत्र-छायाका त्याग करके जैनधर्म और बौद्ध- और इस प्रकार इस तर्कशास्त्रीय युद्धकी गंभीर नींव धर्मकी छत्र छायाके नीचे तेजीसे पाने लग गई थी। डाल कर अपने प्रतिपक्षियोंको चिरकाल तक विवश श्रमण संस्कृति (जैन और बौद्ध संस्कृतिका सम्मिलित किया साथ ही भारतीय तर्क- शास्त्रकी भव्य इमारतका नाम) ने थोड़े ही समयमें जनताके बल पर राजा महा- कला-पूर्ण निर्माण किया। राजाओंके शासन चक्र तकको भी अपना अनुयायी इस तर्क-युद्ध में जैनेतर तार्किक विद्वान् जैन-दर्शन बना लेनेकी शक्ति प्राप्त कर ली थी। पर भी छींटे उछालने लगे और भगवान् महावीर स्वामी इस प्रकार श्रमण-संस्कृतिके क्रियात्मक प्रभावको द्वारा प्रतिपादित धर्मका उपहास करने लगे; तब जैनदेखकर गौतम श्रादि वैदिक विद्वानोंने इस प्रभावका विद्वानोंको भी जैनधर्मकी रक्षा करनेकी चिन्ता सताने निराकरण करनेका विचार किया और इस प्रकार यह लगी। इन्होंने सोचा कि अब केवल "श्रागमों" पर विचार ही तर्क शास्त्रकी उत्पत्तिका मूल कारण हुश्रा। निर्भर रहनेसे ही कार्य नहीं चलेगा और न केवल __ भारतीय तर्क-शास्त्रका अपर नाम न्याय-शास्त्र भी 'बागम-रक्षा' से 'जिन-शासन' की रक्षा हो सकेगी। है । इसका कारण यह है कि इस शास्त्रके श्रादि इसलिये जिस प्रकार बौद्ध-विद्वानोंने सम्पूर्ण बौद्धप्राचार्य महर्षि गौतम द्वारा रचित तर्क-शास्त्रके श्रादि साहित्यकी विवेचना और रक्षाका अाधार 'शून्यवाद' प्रथका नाम न्याय-सूत्र है और इसीलिये प्रत्येक दर्शनका निर्धारित किया; उमी प्रकार इन विद्वान् साधुनोंने भी तर्क-शास्त्र "न्याय-शास्त्र" के नामसे भी विख्यात हो जैन-साहित्यकी विवेचना और रक्षका अाधार 'स्थाद्वादगया है। जैसे कि सांख्य न्याय, बौद्ध न्याय, जैन-न्याय सिद्धान्त' रक्खा । बौद्ध और जैन-न्याय साहित्य-रूप इत्यादि। भवनकी आधार शिलाका संस्थापन जिन कारणोंसे हुआ है, उनका यह संक्षिप्त दिग्दर्शन समझना चाहिये। चौद्ध और जैन न्याय-शास्त्र तर्कशास्त्रकी उत्पत्ति और विकासके कारणोंको जब बौद्ध विद्वानोंको महर्षि गौतमकी इस रहस्यमय जान लेनेके बाद यह जानना आवश्यक है कि धर्म, नीतिका पता चला तो उन्होंने भी तार्किक प्रणालीका दर्शन और तर्ककी परिभाषा क्या है ? मुख्यतया क्रियाआश्रय लिया । बौद्ध-तार्किकोंमें सर्वप्रथम और प्रधान त्मक चारित्रका नाम धर्म है, द्रव्यानुयोग सम्बन्धी ज्ञानप्राचार्य नागार्जुन हुश्रा । इनका काल ईसाकी दूसरी को 'दर्शन' कहते हैं और दर्शनरूप ज्ञान के सम्बन्धमें शताब्दी है। ये महान् प्रतिभाशाली और प्रचण्ड ऊहापोह करना, भिन्न भिन्न रीतिसे विश्लेषण करना तार्किक थे । इन्होंने 'माध्यमिक-कारिका" नामक तर्कका 'तर्क' अथवा 'न्याय' है ।। प्रौद और गंभीर ग्रंथ बनाया, एवं बौद्ध-साहित्यका मूल यद्यपि श्वे. जैन-न्याय-साहित्यका प्रारम्भ सिद्धसेन आधार "शून्यवाद" निर्धारित किया। इसके आधार दिवाकरके कालसे ही हुआ है। फिर भी जैन न्यायका पर वैदिक मान्यताओका और वैदिक-मान्यतानुक्ल मूल बीज विक्रमकी प्रथम शताब्दिमें होने वाले, संस्कृत
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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