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________________ [ मार्गशीर्व, वीर-निर्वाण सं०२५६१ जाता है। धर्माचरण, व्रताचरण, संयमाचरण, व्यवहार पाचरखमें तो पाप महा रूपसे है कोई पाचरणमें योग्य कुलाचरण, सद्व्यवहार सभ्य कुलाचरण भादि अणुरूपसे । सब एक ही बात है। इन पाचरणोंमें अन्तर केवल अब मैं लेखको समाप्त करके पूज्य बाबू सूरजभानइतना ही है कि कोई पावरणमें तो धार्मिकता महारूप जीसे प्रार्थना करता हूँ कि यदि लेखमें मुझसे कुछ से हैवकोई माचरणमें अणुरूपसे। इसी तरह पाप- अनुचित लिखा गया हो तो उसके लिये वे कृपाकर चरण असंयमाचरणा निच कुलारण असभ्याचरण मुझ अल्पज्ञको पमा करें तथा मेरे उपर वात्सल्य भाव कुन्सित म्यवहार भावि भी सब एक ही बात है। इन धारण करके किये गये प्रश्नोंका सम्यक् समाधान करके पाचरणों में भी अन्तर केवल इतना ही है कि कोई मुझे अनुगृहीत करें। अनुपम क्षमा क्षमा अंतःशत्रुको जीतनेमे खड्ग है पवित्र आचारकी रक्षा करनेमे बस्तर है। शुद्ध भावसे असह्य दुःखमें सम परिणामसे क्षमा रखने वाला मनुष्य भवसागरसे पार हो जाता है। कृष्ण वासदेवका गजसकमार नामका छोटा भाई महास्वरूपवान और सकमार था । वह केवल बारह वर्षकी वयमें भगवान् नेमिनाथके पास संसार त्यागी होकर म्मशानमें उग्र ध्यानमें अवस्थित था । उस समय उसने एक अद्भुत क्षमामय चारित्रसे महासिद्धि प्राप्त की उसे मैं यहां कहता हूँ। सोमल नामके ब्राह्मणकी सुन्दर वर्ण संपन्न पुत्रीके साथ गजसुकुमारकी सगाई हुई थी। परन्तु विवाह होनेके पहले ही गजसुकुमार संसार त्याग कर चले गये । इस कारण अपनी पुत्रीकं सुख नाश होने के द्वेषसे सोमल ब्राह्मणको भयङ्कर क्रोध उत्पन हा। वह गजसकमारकी खोज करते-करते उस स्मशान में आ पहुँचा, जहाँ महामुनि गजसुकुमार एकाग्र विशुद्ध भावसे कायोत्सर्गमें लीन थे। सोमलने कोमल गजसुकुमारके सिरपर चिकनी मिट्टी की बाड़ बनाकर इसके भीतर धधकते हुए अंगारं भरे और उसे ईधनसे पर दिया । इस कारण गजसुकुमारको महाताप उत्पन्न हुआ। जब गजसुकुमारकी कोमलदेह जलने लगी, तब सोमल वहाँसे चल दिया। उस समयके गजसकमारके असह्य दुःखका वर्णन कैसे हो सकता है। फिर भी गजसकमार सम्भाव परिणामसे रहे । उनकं हृदयमें कुछ भी क्रोध अथवा द्वंष उत्पन्न नहीं हुआ। उन्होंने अपनी आत्माको स्थिति स्थापक दशामें लाकर यह उपदेश दिया, कि देख यदि त ने इस ब्राह्मणकी पुत्रीके साथ विवाह किया होता तो यह कन्या दानमें तुझं पगड़ी देता । यह पगड़ी थोड़े दिनोंमें फट जाती और अन्तम दुःखदायक होती। किन्तु यह इसका बहुत बड़ा उपकार हुआ, कि इस पगड़ीके बदले इसने मोक्षकी पगड़ी बाँध दी। एसे विशुद्ध परिणामोंस अडिग रहकर सम्भावसे असह्य वेदना सहकर गजसुकुमारने सर्वज्ञसर्वदशी होकर अनन्त जीवन सुखको पाया । कैसी अनुपम क्षमा और कैसा उसका सुन्दर परिणाम । तत्त्व ज्ञानियोंका कथन है कि आत्माओंको कंवल अपने सद्भावमे आना चाहिये । और आत्मा अपने सद्भावमें आई कि मोक्ष हथेली में ही है । गजसुकुमारकी प्रसिद्ध क्षमा कैसी शिक्षा देती है। -श्रीमदराजचन्द्र
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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