SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व ३, किरण २] ऊँच-नीच-गोत्र-विषयक चर्चा आगे लिखा है कि "सारी पृथिवी पर रहनेवाले अपेक्षा 'आर्य' कहा है और म्लेच्छोंको म्लेच्छ बंडमें सभी मनुष्य प्रार्य होनेसे उच्चगोत्री भी जरूर है।" उत्पन्न होनेको अपेक्षा तथा वहां धार्मिक प्रवृत्तियां आर्य होने मात्रसे कोई उच्चगोत्री नहीं हो सकता असंभव होनेकी अपेक्षा 'म्लेच्छ' कहा है।। जब सारी श्रार्य होनेके साथ साथ शाल संयमावि धर्माचरण भी जानी हुई दुनियां आर्य बंदु है तब कार्योको म्लेच्छ हों तभी उच्चगोत्री हो सकता है जैसा कि प्राचार्य श्री खंडके म्लेच्छ क्योंकर बनलाया ? महायोजनके हिसाबविद्यानन्द स्वामीने लिखा है ® । उपर्युक्त प्रार्थना केवल से प्रार्य खंड ही बहुत बड़ा है. फिर म्लेच्छ ग्वंड कितनी आर्यभूमिमें उत्पन्न होनेकी अपेक्षा है। दूर और कहां होंग। यदि जानी हुई सारी दुनियां आगे लिखा है कि "ये कार्य म्लेच्छखंडोंमें आर्य ग्वंड है नो जर्मन जापान रूस फाम इंगलैंड यादि रहने वाले म्लेच्छही हो सकते हैं।" कर्म आर्य म्लेच्छ देशों में वर्ण व्यवस्था क्यों नहीं ? अथवा जर्मन जापान वंडके रहने वाले म्लेच्छ कैसे हो जायेंगे ? फिर उन इटली आदि ही म्लेच्छ खंड हैं, और केवल भारतवर्ष बंडाको म्लेच्छ खड ही क्यों कहा ? कर्मायाँक रहनेमे पार्य खंड ? कृपाकर बतलाइयेगा। वह भी आर्य खंड ही कहा जाना चाहिये था । अमः अन्तमें यशस्तिलक, चम्प, पाचरित, रत्नकरण्ड, जिनने भी ये भेद अभेद पार्योंक हैं वे सब आर्य खंडके धर्म-परीक्षा, धर्मरसिक श्रादि ग्रन्थोंके जो भी श्लोक रहने वाले श्रार्योंके ही हैं। म्लेच्छ खंडके रहने वाले इस लेखमे उदधृत किये हैं उनमे नो भले प्रकार यह म्लच्छ ही हैं वे आर्य नहीं हो सकते । आर्योको आर्य बात प्रमाणित हो जानी कि अपने धर्माचरणोंमें मनुष्य ग्वंडमें उत्पन्न होनेकी अपेक्षा और यहां धार्मिक प्रवृत्तियां ऊँच गोत्री है और पापाचरणोंसे नीच गाग्री है अर्थात् सम्भव होने को अपेक्षा नथा धर्माचरण पालन करनेकी अपने धर्माचरणोंय चांडाल भी ऊँच गाग्री (बाह्मण) है विद्यानन्द म्यामा एमा कहाँ निग्या है उम और अपने पापाचरणाम ब्राह्मण भी नीच गोत्री है, 12 ग वनलाना चाहिये था। उनके "उचगांवो इस बानमें अब कोई भी मन्दह शेष नहीं रहना है। या देगा: इम पार्यलक्षणसे नो जिम 'श्रार्य' कहा इस नरह पर इस लेख में अपने अच्छे बुरे आचरणवायगा उसके उच्चगोत्रका उदय नारा मानना पड़ेगा- के आधार पर ही जावों में अथवा मनुष्यों में उंचना गन्न ही वह किसी भी प्रकारका ग्रार्य क्या न । अथवा ऊँच गोत्र तथा नाचमा व नीच गोत्र है इस बाद नेत्रार्य श्रादि भाभदाम उन लगा मटिन प्रकारकी प्रश्नात्मक चर्चा करके लम्बको समाप्त किया ना होता है तो उसे अव्याप्ति दोपमं दूपित सदोष लनायिाद इन अपेक्षा ग्राम ही आयं और म्लन्छया। ५२ना चाहिय । म ही कारणांके वशवनी उक्त कथन हो अथवा माना जाय नो फिर अार्य उच्चगोत्रका 'नेक्षा के मदोष होनकी कल्पनाकी गई है। और इग उदय और म्लेच्छ के लिये नीच गोत्रका उदय अप्रयोनगय "उपयुक्त अार्यना केवल आर्यभूभियोग उत्पन्न नीय हो जाना है अथवा लाजिमी नहीं रहना, निमका को अपेक्षा है" एमा श्रागे निग्यना कुछ अर्थ नही विद्यानन्द प्राचार्य ने श्रायं-मलेच्छके लक्षणोंम प्रति "येन' ---यह निरर्थक जान पड़ता है। पादन किया है; और न अायंग्या दादय म्लच्छाको -सम्पादक मनच्छ ही कहा जा मकता है। -मम्पादक
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy