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ऊँच नीच-गोत्र विषयक चर्चा
चरण भी एकही बात है।
नीच-गोत्रके स्वरूपमें कोई विरोध प्रतिभासित नहीं मब मैं यहाँ प्रश्न करता हूँ कि ऊँच गोत्र सूचक होगा । क्या मेरा यह कहना ठीक है। अथवा उत ऊँचे आचरणका अर्थ व्यवहारयोग्य मभ्य कुलाचरण प्रकारसे मानने पर जैनसिद्धान्तसे क्या कोई विरोध व संयम धर्माचरण दोनों ही प्रकारका प्राचरण किया नहीं पाएगा। जावे तथा नीच गोत्र सूचक नीचे भानरणका अर्थ ठग- भागे लिखा है कि सब ही देव (कल्पवासी भादि
केनों के असभ्य कुलका आचरण व असंयमाचरण धर्मान्मा व भवनवासी भादि पापामारी देव) और दोनों ही प्रकारका आचरण किया जावे और व्यवहार- भोग भूमियाँ जीव-चाहे वे सम्यकदृष्टि हों या मिथ्यायोग्य सभ्य कुलाचरण तथा धर्माचरणमें और ठग- दृष्टि-जो प्रणु मात्र भी चारित्र ग्रहण नहीं कर सकते
केनी के प्रमभ्य कुलाचरण में और असंयमाचरणमें भेद वे तो उच्च गोत्री हैं और देशचारित्र धारण कर सकने ज्यक न किया जावे तो क्या हानि है?
वाले पंचम गुणस्थानी संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच नीच आगे चलकर श्रीपज्यगदस्वामीकृत सर्वार्थमिद्धिमें गोत्री ही हैं।' वर्णित ऊँचगोत्र और नीचगोत्रका स्वरूप यह श्री वीर भगवान्ने अपने शासनमें विरोध रूप अनलाया है कि 'लोक पृजित कुलों में जन्म होनेको शत्रुको नष्ट करनेके लिये अनेकाम्न अपना अपेक्षावाद उंच गोत्र व गर्हित कुलोंमें जन्म होनेको नीचगोत्र वा स्याद्वाद जैप गंभीर सिद्धान्त-अमोघास्त्रका निर्माण
किया है, फिर जहाँ हमें कुछ विरोध प्रतिभामित हो ___ यहाँ पर लोकजिन कुल व गर्हिन कुलका स्वरूप वहाँ हम अनेकान्नमें विरोधका क्यों न ममन्वय कर लें विचारना चाहिये। जो कुल अपने हिंमा मठ-चोरी क्यों न अपेक्षावादका उपयोग करें ? और वह समन्वय श्रादि पापोंके त्यागरूप अहिंसा पत्य-शील-संयम दान इस प्रकार कर लिया जावे तो क्या कोई जैनअदि धर्माचरणों के धारणरूप प्राचरणों के कारण पज्य सिद्धान्त विरोध भावेगा ?हैं-सन्मानित हैं-प्रतिष्ठा प्राप्त है वे ही कुल लोक- कल्पवासी देवों और भवनत्रिक देवोंमें जो उच. पूजिन कल माने जाने चाहिये- राज्य-धन सन्य बत्व गोत्रका उदय बतलाया है वह उनके शक्तिशालीपनेकी प्रादिके कारण पूजित कुल नोक पजिन नहीं माने जाने अपेक्षा व विशिष्ट पुण्योदपको अपेक्षा है और वह भी चाहिये । जो कुल हिंमा झठ-चोरी आदि पापाचरणोंके केवल मनुष्यों के मानने के लिये है अर्थात मनुष्य ऐसा कारण गर्हित है वे गर्हित कुल माने जाने चाहिये। माने कि देव हमसे ऊँचे हैं, ऐसा मानना चाहिये ।
और इस तरह पर धर्माचरणों के कारण लोकों द्वारा और इसी प्रकार नियंचों में जो नीच गोत्रका उदय पूजिन कुलमें जन्म लेनेवावेको 'ऊँचगोत्री' व पापा- बतलाया है वह उनके पशुपने व विशिष्ट पापोदयकी चरणोंमें गर्हित कुखमें जन्म लेनेवालेको नीच-गोत्री अपेक्षाम है, और वह भी केवल मनुष्यों के माननेकी मानना चाहिये, और ऐसा माननेसे गोगटसारको अपेक्षास है अर्थात मनुष्य ऐमा माने कि निर्यच हमसे ५वीं गाया में वर्णित ऊँच नीच-गोत्रके स्वरूपमें और नीचे हैं, ऐमा मानना चाहिये । हमी नर नारकियों में श्रीपूज्यपादस्वामीरचित सर्वार्थसिदिमें वर्णित अंच भी जो नीच गोत्रका उदय बतखाया है वह भी उसके