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अनेकान्त
मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं.२०६६
जीवके ऊँचे भाचरणको 'उंच गोत्र' और नीचे भाचरण- अपनी खीसे संतुष्ट रहना. वेश्यागमन-परस्त्री गमन न को 'नीच गोत्र' कहते है । ऊँचगोत्र-सूचक ऊँचे करना, प्रति लोभ न करना, दूसरेका हक ( स्वस्व ) पाचरणको सम्यक् चारित्र, धर्माचरण प्रादि न मान- न दबा बैठना, श्रणीकी शक्तिपे अधिक ब्याज न लेना, कर व्यवहार योग्य कुलाचरण, नागरिकका पाचरण या अति तृष्णा न करना, अपनेमे न सँभल सके ऐसे सभ्य मनुष्यका आचरण प्रादि माना है। और व्यापारादिको न बढ़ाना आदि सहस्रों प्रकारके ऊँच नीचगोत्र-सूचक नीचे पाचरणको मिथ्याचारित्र, गोत्र सूचक व्यवहारयोग्य सभ्य कुलके ऊँचे पाचरण भधर्माचरण भादि न मानकर वोटा लौकिक पाचरण, हैं। और गर्वोन्मत्त होकर निरपराधोंको मार डालनालोकम्यवहारके अयोग्य आडकेतोंका निच पाचरण काट डालना उन्हें मताना, अनेक प्रकारके कष्ट देना या असभ्य मनुष्योंका आचरण आदि माना है। और उनका चित्त दुग्वाना, गुरुजनोंका अपमान तिरस्कार ऐसा मानकर सम्यक् चारित्र, धर्माचरण और व्यवहार- करना, दूसरेकी धरोहर हड़प जाना, ऋण लेकर नहीं योग्य कुलाचारण या सभ्य मनुष्यके भाचरणमें तथा देना, अधिक तौलकर लेना तथा कम तौल कर देना, मिण्याचारित्र, अधर्माचरण और ठग-डकेतोंके निया चोरी करना. डाका डालना, किमीका धन ठग लेना, चरण या प्रमभ्य मनुष्य के आचरणमें भेद व्यक्त किया झूठ बोलना, झूठी सादी देना, दूसरे विश्वासघात है। और इस तरह पर ऊँचे पाचरणका अर्थ व्यवहार- करना, बचन देकर नट जाना, ऐसी बान कहना जिससे योग्य कुलाचरण और नीचे आचरणका अर्थ :ग- दुसरा संकटमें पड़ जाय, पुत्र-भाई-नानेदार पड़ोसी मित्र तकनोंका निध कुलाचरण लगाया है। अर्थात् उपर्युक्त आदिकी स्त्रियों से बलात्कार व्यभिचार करना, परस्त्रीअभिप्राय निकाला है।
विधवा दासी वेश्यादिको घरमें डाल लेना या उनसे परन्तु यदि देखा जाये तो संसारमें दो ही प्रकारके छिपकर अथवा प्रकट रूपमें व्यभिचार करना, अनि माधरण रष्टिगोचर होते हैं --एक संयमाचरण और तष्णा व अति लोभ करना, दुसरेके धनको-रहने के दूसरा असंयमाचरण । लोकम्यवहार-योग्य सभ्य कुलके स्थानको हडप जाना, अधिक ब्याज लेना, अपनेमे न मनुष्यके पाचरणको संयमाचरण अर्थात् ऊँचा आचरण सँभल सके इतने व्यापार यन्त्रालयादिको बढ़ाते जाना कहते हैं और लोकन्यवहारके अयोग्य असभ्यकुलके ठग- आदि सहस्रों प्रकारके नीच गोत्र सूचक व्यवहार के रकेतोंके नियमाचरणको प्रसंयमाचरण अर्थात् नीचा अयोग्य असभ्य ठग डकेतोंके निच कुलके नीचे पाचरण आचरण कहते हैं। जैसे माता पितादि गुरुजनोंकी सेवा हैं। व्यवहारयोग्य सभ्य कुलके मनु न्योंमें कम त्याग व करना, रोगियोंको औषधि प्रादि देना, असमर्थदीनोंकी कम संयम होता है और व्रती भावक व मुनियों में कई प्रकारसे सहायता करना, किसीकी धरोहर उसे अधिक त्याग व अधिक संयम वा पूर्व संयम होता है, वैसीकी बैसी वापस देना, ऋण लेकर पूरा चुकाना, और इसी तरह पर उग-डकेतोंके असभ्य कुलवालोंमें ठीक पूरे तौखसे देना तथा वैसे ही पूरा लेना, झूठ नहीं अधिक भसंयम व पूर्ण प्रसंयम होता है। और इस बोजना, मी साती नहीं देना, किसीको वचन देकर तरह पर व्यवहार योग्य सम्म कुलाचरण व धर्माचरण निभाना, दूसरेकी बीको माता बहिन या बेटी सममना, एक ही बात है तथा असभ्य कुखाचर असंबमा