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ऊँच-नीच-गोत्र विषयक चर्चा
। लेखक-श्री. बालमुकुन्द पाटोदी जैन जिज्ञासु' ]
इस लेखके लेखक पं. बालमुकुन्दजी किशनगंज रियासत कोटाके निवासी है। पचपि माप कोई प्रसिद्ध लेखक नहीं है परन्तु मापके इस लेख तथा इसके साथ भेजे हुए पत्र परमे यह साफ मायम होता भाप नदी ही विनम्र प्रकृतिके लेखक तथा विचारक है, और अच्छे अध्ययनशील तथा लिखने में चतुर बाम पाते है। अपने उपनामके अनुसार आप सचमुच ही जिज्ञासु हैं. इसीलिये मापने अपने पत्रमें लिखा है-"भापका अनेकान्तपत्र बहुत ऊँची श्रेणीका है और बड़े-बड़े उचकोटिके विद्वानोंसे सेवित है। यदि मुझ बालक (शामहीन) का यह श्वारूप प्ररनारमक लेख भनेकान्तपत्र छापना उचित हो तो कृपया छाप दीजियेगा और मही तो पति श्रापको अपने परोपकारस्वरूप शुभ कार्यों में अवकाश मिले तो कृपया किसी प्रकार उत्तर लिखकर मेरा समाधान करके मेरी ज्ञानवृद्धि में सहायक तो होना चाहिये ।' साथ ही, यह भी प्रकट किया है कि "मैंने पावसक किसी भी जैनपत्र में इच्छा रहने पर भी कई कारणों के वशवती होकर कुछ भी लेख नहीं लिखा है।" और इसके बाद अपनी कुछ त्रुटियोंका--जो बहुत कुछ साधारण जान पड़ती हैं - उल्लेख करते हुए लिखा है-"इतमा सब कुख होने पर भी, केवल अपनी ज्ञानवृद्धि के लिये, मेरे हृदयमें लिखने की इच्छा अब कुछ विशेष हुई है। इसलिये प्रश्नात्मक रूप यह लेख जिज्ञासु भावनासे प्रेरित होकर जिस्खा जाता है।" और इससे प्रापका लेख लिखनेका यह पहला ही प्रयास जान पड़ता है, जिसमें भाप बहुत कुछ सफल हुए हैं। इस तरहके न मालम कितने भच्छ लेखक अपना शक्तिको छिपाए और अपनी इच्छाको दबाए परे हुए हैं-उनें अपनी इच्छाको कार्य में परिसात करने और अपनी शक्तिको विकसित करनेका अवसर ही नहीं मिल रहा है, यह निःसम्देह खेदका विषय है। मैं चाहता है ऐसे लेखक संकोच छोड़कर भागे भाएँ और लेखनकखामें प्रगति करके विचार पेत्रको उम्नत बनाएँ। भनेकान्त ऐसे लेखकोंका हृदयसे अभिनन्दन करने और उन्हें अपनी शक्तिभर यथेष्ट सहयोग प्रदान करनेके लिये उपत है।
लेखक महोदयकी जिज्ञासा वृप्ति के लिये मैंने लेख में कहीं-कहीं कुछ समाधानात्मक फुट नोट्स बगा दिये हैं, उनमे पाठकों को भी विषयको ठीक रूपसे समझने में भासानी होगी । विशेष समाधान श्रद्धेय गाय सूरजमानजी करेंगे, ऐसी भाशा है, जिनके लेखको सय करके ही यह प्रश्नात्मक लेख लिखा गया है और जिनसे समाधान मांगा गया है।
-सम्पादक]
घानेबान्तकी द्वितीय पकी प्रथम किरसमें एक लेख भावि गुण देखते ही बनते हैं। मुझ जैसे अपने मन
- 'गोत्रम्मानित-र-नीचता' शीर्षक प्रकाशित की शक्ति नहीं कि उसकी विशेषनामोंका बर्वन हुआ है, बोकियोमुख एम्म बापू सूरबमानजी साहब कर सके। वकीका बिसा हुआ है। वास्तवमें पपा के अंत लेखमें गोम्मटसार-कर्मकावसकी वीं गाया देकर स्तबमें प्रविष्ट होकर विखा गया है, उसकी गंभीरता, उच और नीच गोरके स्वरूपका वर्णन किया है पर्यात् गहरी वावीन. सका शाजाविषय, अनुभव पूर्वता बसखापा किसकी परिपाटीके कमसे से पाये