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________________ १६५ [मार्गशीर्ष, वीर निर्वावसं२४ लेकिन तिरस्कार और वक्रतायुक्त शब्द ज्यादा चोट कलता हो, वहाँ जो शल अहिंसाकी उच्च मर्यादाका पहुँचाता है। जो प्रतिपक्षीके नाजुक भागको जल्म पालन नहीं कर सकता, यह उनका प्राश्रय ले तो पहुँचाता है, वह घाव ही है। और यह तो हम जान समाजके लिए आवश्यक अहिंमाकी मर्यादाका पालन सकते हैं कि हमारा शब्द किमी श्रादमीको महज विनोद हुआ माना जायगा । जहाँ वैमा श्राश्रय लेनेकी गुजा. मालूम होगा या प्रहार । इमन्निा हिमाम ऐमे प्रहार इश न हो (जैसे कि, जब चोर या हमला करनेवाला करना अयोग्य है। प्रत्यक्ष सामने पाया हो) वहाँ यह अपनी श्रात्म-रत्नाके (४) प्रश्न-अहिंसामं अपनी व्यक्तिगत अथवा लिए और गुनहगारको पुलिमके हवाले करनेकी गईम संस्थाकी रदा, अथवा न्याय के लिए पुलिस या कच- उसे अपने वशमं लाने के लिए,जितना आवश्यक हो उनने हरीकी मदद ली जा सकती है या नहीं ! चोर, डाक ही बलका उपायग करे ना उममें होने वाली हिंमा क्षम्य या गुंडोके हमलेका सामना बलमे कर सकते हैं या नहीं मानी जायगी। मगर, बान यह है कि आम तोर पर अहिंसावादी स्त्री अपनी इज्जत पर आक्रमण करने लोग उतने ही बलका प्रयोग करके रुकते नही । कनेवाने पर प्रहार कर सकती है या नहीं ? में आये हुए गुनहगारको बुरी बुरी गालियाँ देते और उत्तर-यहां पर सामान्य जनता और प्रयत्नपूर्वक इतनी बुरी तरह पीटते हैं कि बाज दफा वह अधमरा अहिंसा की उपासना करने वाले में कुछ भेद करना हो जाता है । यह हिंसा अक्षम्य है; यह हैवानियत है। चाहिए । जो अपेक्षा एक विचारक अहिंमक कार्यकर्ता ममाजको ऐसे बर्नाम परहेज रम्बनेकी तालीम देना से रखी जाती है वह सामान्य जनतासे नहीं रखी जाती ज़रूरी है। अहिंमा पसन्द समाजके लिए यह ममझ मतलब, सामान्य जनताके लिए अहिमाकी मर्यादा लेना ज़रूरी है कि हरेक गुनहगारको एक प्रकारका कुछ मोटी होनी अनिवार्य है। इमलिए अगर हम रोगी ही मानना चाहिए । जिस तरह तलवार लेकर इतना ही विचार करें कि सामान्य जनताके लिए. अहिंसा दौड़ते हुए किमी पागलको या सानपातम उद्दडता धर्मका कब और कितना पालन ज़रूरी मममना करने वाले किसी रोगीको जबरदस्ती करके भी वशम चाहिए. तो काफी होगा। ममझदार व्यक्ति अपनी २ लाना पड़ता है, उमी तरह चोर, लुटेरे या अत्याचारीशक्ति के मुताबिक इमसे आगे बढ़ सकते है। को पकड़ नो लेना होगा, लेकिन पागल या मनिपान इस दृष्टिसे, अहिंसाके विकास के मानी है जंगलके वाले मरीजको बशमं करने के बाद हम उसे पीटते नहीं कानुनमें से मभ्यता अथवा कानुनी व्यवस्था की ओर रहते । उलटे, उसको रहम की दृष्टिस देखते हैं । यही प्रयाण | अगर हरेक आदमी अपने भयदाता या अन्याय दृष्टि दूसरे गुनहगारोंके प्रति भी होनी चाहिए। उसे कर्ताके सामने हमेशा बनूक उठाकर या अपने श्राद- हम पुलिसको सौंपते है इसकी मानी ये है कि वैसे मियोंको कहा करके ही बड़ा होता रहे तो वह जंगल. रोगियोंका इलाज करनेवानी मंस्थाके हाथ हम उसे का कायदा कहा जायगा । इमलिए जहां पुलिस या दे देते हैं। कचहरीका प्राश्रय लेने के लिए भरपूर समय या अनु (हरिजन- सेमे) mupos de interen
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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