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________________ [मार्गशीर्ष, वीर निर्वाच सं०१४ लेकिन तिरस्कार और वक्रतायुक्त शब्द ज्यादा चोट कलता हो, वहाँ जो शख्न अहिंसाकी उच्च मर्यादाका पहुँचाता है। जो प्रतिपक्षीके नाजुक भागको जल्म पालन नहीं कर सकता, वह उनका श्राश्रय ले तो पहुँचाता है, वह घाव ही है। और यह तो हम जान ममाज के लिए आवश्यक अहिंमाकी मर्यादाका पालन सकते हैं कि हमारा शब्द किमी अादमीको महज़ विनोद हुआ माना जायगा । जहाँ वैसा आश्रय लेने की गुजा. मालूम होगा या प्रहार । इमान्ना अहिमाम ऐमे प्रहार इश न हो (जैसे कि, जब चोर या हमला करनेवाला करना अयोग्य है। प्रत्यक्ष सामने पाया हो) वहाँ वह अपनी श्रात्मनाके (४) प्रश्न-अहिंसा में अपनी व्यक्तिगत अथवा निए और गुनहगारको पुलिस के हवाले करनेकी गर्नम संस्थाकी रक्षा, अथवा न्याय के लिए पुलिस या कच- उसे अपने वशमं लाने के लिए,जितना आवश्यक हो उनने हरीकी मदद ली जा सकती है या नहीं? चोर, डाक ही बलका उपायग करे ना उममें होने वाली हिंमा क्षम्य या गुंडोंके हमलेका सामना बलमे कर सकते हैं या नहीं मानी जायगी। मगर, बान यह है कि ग्राम तोर पर अहिंसावादी स्त्री अपनी इज्जत पर आक्रमण करने लोग उतने ही बलका प्रयोग करके रुकते नहीं । कम्जेवाने पर प्रहार कर मकती है या नहीं? में आये हुए गुनहगारको बुरी बुरी गालियाँ देते श्रीर उत्तर-यहां पर सामान्य जनता और प्रयत्नपूर्वक इतनी बुरी तरह पीटते हैं कि बाज दफा वह अधमरा अहिंसा की उपासना करने वाले में कुछ भेद करना हो जाता है । यह हिंसा अक्षम्य है; यह हैवानियत है । चाहिए । जो अपेक्षा एक विचारक अस्मिक कार्यकर्ता ममान को ऐमे पायम परहेज रखनेको तालीम देना से रखी जाती है वह सामान्य जनतासे नहीं रखी जाती ज़रूरी है। अहिमा पसन्द समाजके लिए यह ममम मतलब, सामान्य जनताके लिए अहिसाकी मर्यादा लेना ज़रूरी है कि हरेक गुनहगारको एक प्रकारका कुछ मोटी होनी अनिवार्य है। इसलिए अगर हम रोगी ही मानना चाहिए । जिस तरह तलवार लेकर इतना ही विचार करें कि सामान्य जनताके लिए अहिंसा दौड़ते हुए. किमी पागलको या साभपातमे उद्दडता धर्मका कब और कितना पालन ज़मग मममना करने वाले किसी रोगीको जबरदस्ती करके भी वशम चाहिए तो काफी होगा । ममझदार व्यक्ति अपनी २ लाना पड़ता है, उमी तरह चार, लुटेरे या अत्याचारीशनि के मुताबिक इससे आगे बढ़ सकते है। को पकड़ तो लेना होगा, लेकिन पागन या मनिपात इस दृष्टिगे, अहिंसाके विकास के मानी है जंगलके वाले मरीजको बशर्म करने के बाद हम उसे पीटते नहीं काननमें से मभ्यता अथवा कानुनी व्यवस्थाकी ओर रहते । उलटे, उसको रहम की दृष्सि देखते हैं । यही प्रयाण | अगर हरेक आदमी अपने भपहाता या अन्याय दृष्टि दूसरे गुनहगारोंके प्रति भी होनी चाहिए। उसे कर्ताके सामने हमेशा बनूक उठाकर या अपने बादहम पुलिसको सौपते हैं इमकी मानी ये है कि वैसे मियोंको कहा करके ही बड़ा होता रहे तो वह जंगल- रोगियोंका इलाज करनेवानी मंस्थाके हाथ हम उमे का कायदा कहा जायगा । इमलिए जहां पुलिस या दे देते हैं। कचहरीका प्राश्रय लेने के लिए. भरपूर समय या अनु (हरिजन-सेवासे) MEREmmm
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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