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________________ बनेकान्त [मार्गशीर्ष, वीर निवाब सं० के आप जनरल-एडीटर है, इस ग्रन्थमालासे १० दिग- १०. प्राचार्य जिनसेन (बंगला)- भारतवर्ष । म्बर अंथ अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित हो चुके हैं। ११. द्वादशानुप्रेक्षा (बंगला)-प्र० जिनवाणी । जिनमें व्यसंग्रह आपके द्वारा अनुवादित भी है। प्रो० अमूल्यवरण विद्याभूषण, प्रो० विद्याअापके मुख्य कार्य-कलापकी, जोकि जैनदर्शनके सम्बन्ध- सागर कॉलेज कलकत्तामें किया है, सूची नीचे दी जाती है । दि० साधुओंके (पताः-० ५ जदुमित्रलेन, कलकत्ता) नगरों में विहार-प्रतिबन्धक आन्दोलनके समयतो आपने आप बहुत वर्षोंसे "बंगीय महाकोष" के सम्पादन एक महत्वपूर्ण लेख लिखकर दिगम्वरत्वके औचित्यकी में लगे हुए हैं। इस कोषमें जैनदर्शनके अनेक शब्दों ओर ध्यान आकर्षित किया है, जिसके फलस्वरूप वह पर विस्तृत विवेचन किया गया है । कोषके अतिरिक्त प्रतिबन्ध उठा दिया गया है। स्वतंत्र प्रकाशित जैनदर्शन सम्बन्धी लेखोंमें कतिपय अनुवादित प्रन्थ १. Jain Jatakas-प्र. मोतीलाल बनारसीदास १. द्रव्यसंग्रह-सटीक, अंग्रेजीमें अनुवादित-प्र० लाहौर, उपयुक्त ग्रन्थमालाका प्रथम पुष्प प्रकाशन- २. Culture, Origin of Jainism. सन् १९१७, मूल्य ५॥) 1. Queen, The History of the Jain २. परीक्षामुख-दि० न्याय ग्रन्थ, प्र. जैनगजट Sects, Parsvanath & Mahavir. ३. प्रमाण मीमांसा-अंग्रेजी अनुवाद, प्र० जैनगज़ट ४. National Council of Education. १६१५ Lecture on Syadwad. ४. प्रश्नम्याकरण-, , . ,, १९१५ ५. जैनधर्म-प्र.नभ्यभारत । ५. वृहद्रतिदत्तकथा-अंग्रेजी अनुवाद, प्र. जैन गज़ट ६. विजयधर्मसूरि-प्र. वानी १३१७ बंगला। १९१५ आपकी इच्छा है कि अपने कोषमें जैनदर्शनके 1. The Digambar Saints of India. सभी मुख्य एवं रूद शब्दों पर विस्तारसे विवेचन हो ७. Abuse of Jainism in non-Jain पर यह कार्य बिना जैनविद्वानोंके सहयोगके नहीं हो __Literature. सकता । आपने हमसे यहाँ तक कहा था कि यदिबंगला Published in Jain Gazette 1917 या अँग्रेज़ी भाषाविद् जैनविद्वान् शब्द-विवेचन लिख ___Vol. XIII P. 144. भेजें या हम उन्हें लिख भेजें वे उसको पड़कर शुद्धि८. Gommata Sara. Published in वृद्धि कर भेजें ताकि हमारे कोषमें अपूर्णता एवं भूल Digambar Jain. अन्ति न रहने पावे। प्राया है योग्य विद्वान उन्हें ६. The Rules of ascetics in Jainism. सहयोग देंगे। (Jain Sidhant Bhaskar. वर्ष २, ५ प्रो० सातकोडी मुखर्जी, प्रो. कलकत्ता किरण) युनीवरसिटी
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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