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________________ चंगीय विद्वानोंकी न साहित्य में प्रगति - (पता-०२२ वृन्दावनचरणमलिकलेन कलकत्ता) Mimansa theories of the self rela प्रापका अध्ययन भी बहुत गंभीर है, जैनधर्मसे tion to knowledge. प्र. जैन सि मारकर प्रापका बहुत अनुराग है । आपके लिखित निबंध भाग ६, कि.१ ७० बिमलचरणलाह M.A. B.L. PH.D.१.अनेकान्तवाद-प्र० विश्वकोष द्वि. श्रावत्ति • अनकान्तवाद-प्र० विश्वकाष बि० श्रावात्त (पता-नं.४३ कैलास बोस स्ट्रीट, कलकत्ता) २. जैनधर्मेनारीर स्थान-प्र. रुपनंदा (अग्रहायन- पाप कलकत्तेके सुप्रसिद्ध जमींदार, पत्रसम्पादक पौष १३४४) एवं साहित्यिक विद्वान है। भारतीय प्राचीन संस्कृति के ३. The Status of women in Jain अन्वेषण में आपकी बड़ी दिलचस्पी है । बौद्ध एवं ____Religion. जैनसाहित्यसे आपका बहुत प्रेम है। आपसे में दो r. The doctrine of Relativity in Jain बार मिला था और आपके लिखित जैनसाहित्य सम्बंधी Metaphysics. लेखोंकी सूची मांगी थी और आपने कुछ समय बाद ५. सभापति भाषण-इंडियन कलचर कान्फरेन्स; जैन देनेकी स्वीकृति भी दी थी पर दो तीन बार फिरसे सूचना और बौद्ध विभाग देने पर भी साहित्य-कार्योंमें विशेष व्यस्त होनेसे प्रापसे ६. प्रो० हरिमोहन भट्टाचार्य प्रो० आसुतोष कालेज सूची नहीं मिल सकी अतः मुझे शात निबन्धोंकी सूची (पता:--नं० ३ तारारोड़ कालीघाट कलकत्ता) देकर ही संतोष मानना पड़ता है। आपके लिखे हुए निबन्ध ये है:-- १. Mahavira (His Life and Teachings f. The Jain conception of Truth and Page 113, प्रकाशक Lunac & Co; 46, reality (Proceedings of Indian G.Russel Street London W.C. I. Philosophical Congress. 1925) 1939. स्व. बाब पूर्णचंद नाहरको सपित । २. The Jain Theory of knowledge & प्रस्तुत ग्रन्थ दो विभागोंमें विभक्त है-१ महावीरकी errors. (प्र० जैनसिद्धान्तभास्कर १६३८ जन) जीवनी २ उनके उपदेश । जैन संस्कृतिका तथाविध ३. The Jain Theory of Existence & शान न होनेसे इस प्रथमें कई मूल प्रान्तिये रह गई Evolution है, तो भी आपका परिश्रम सराहनीय है। (प्र० इण्डियन कलचर १९३८ एप्रिल) २. Distinguished Menarar (?) women ४. Studies in Philosophy (प्र. मोतीलाल in Jainism.-प्र. इंडियन कलचर v. II बनारसीदास लाहौर) . 669 V. III 89. 343. इस ग्रंथमें जैनदर्शनके सम्बन्धमें कई बातें लिखी है। ३. The Kalpa Sutra प्र. जैनसिद्धान्त भास्कर ५. स्थावाद-प्र. साहित्यपरिषदपत्रिका मा० ३०, भा० ३, किरण ३-४ पृ. १४३ मा० ३१ पृ०१ ४. Studies in the Vividha-Tirtha Kalpa 8. Jain critique of the Sankhya & the (प० जैनसिद्धान्त भास्कर मा०४ कि०४१०१.६)
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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