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मार्गशीर्ष, बीर मिल
५. जैनदर्शने कर्मवाद-प्र०जिनवानी वर्ष १, पृ०२०५ का हिन्दी अनुवाद अापने तैयार भी कर दिया है जो वर्ष २, पृ० २२
शीघ्र ही प्रकाशित किया जायगा। 4- जैनकथा, ७ संवत ८ अन्द, चन्द्रगुप्त-प्र.जिनः भट्टाचार्य अभी एक अत्यन्त उपयोगी ग्रंथ पानी वर्ष १ पृ०७१-२६८
अंग्रेज़ीमें लिख रहे हैं, जिसमें जैनधर्म सम्बन्धी सभी १० भगवान् पार्श्वनाथ-प्र.जिनवानी वर्ष २,अंक ४, अावश्यक तव्यों का समावेश रहेगा। इसके कई पृ० १४१
प्रकरण लिखे भी जा चुके हैं । जैनममा जका कर्तव्य ११. महामेघवाहन खारखेल-प्र. जिनवानी वर्ष २ है कि इस ग्रन्थको शीघ्र ही पूर्ण तैयार करवाकर पृ०६६
प्रकाशित करे, जिससे एक बड़े अभावकी पति हो १२. जैनदर्शने धर्मश्रो अधर्म-प्र० साहित्यपरिषद्- जाय । पत्रिका भाग ३४ संख्या २ मन १३३४
२ प्रो०चिन्ताहरण चक्रवर्ती काव्यतीर्थ M.A. १३. प्रमाण-प्र० साहित्य परिषद पत्रिका भाग ३३ Prof. Bethune collegeपृ०१८ से
(पता-नं० २८।३ झानगर रोड, कालीघाट, कलकत्ता) १४. जैनदर्शने आत्मवृत्ति निचय-प्र० साहित्यसंवाद श्राप भी बहुत उत्साही लेखक हैं । जैनधर्मके
इन लेखोंमेंसे कतिपय लेख पहले अंग्रेज़ीमें प्रचारके लिये श्रापकी महती इच्छा है । संस्कृत-साहिलिखे गये थे फिर उनका बंगानुवाद कर “जिनवाणी" त्यमें दूतकाव्य श्रादि अनेकों गंभीर अन्वेषणात्मक लेख पत्रिकामें प्रकाशित किये गये थे । “जिनवाणी' आपने लिखे हैं । जैनसाहित्यके प्रचारमें श्राप बहुत पत्रिकामें प्रकाशित नं० २-३-४-५-६-१०.११.१२ का अच्छा सहयोग देनेकी भावना रखते हैं । आपके लेखोंगुजराती अनुवाद श्रीयुक्त सुशील ने बहुत सरस किया कीसंक्षिप्त सूची इस प्रकार है:है और उसके संग्रहस्वरूप "जिनवाणी" नामक ग्रंथ १. जैनपद्मपुराण-जिनवाणी पत्रिकामें धारावाहिक 'ऊंझा आयुर्वेदिक फार्मेसी अहमदाबाद'से प्रकाशित भी रूपसे प्रकाशित, एवं बंगबिहारधर्मपरिषदसे स्वतन्त्र हो चुका है, इसको जनताने अच्छा अपनाया। इससे ग्रन्थरूपस प्रकाशित, मूल्य ।-)। इस ग्रंथकी द्वितीयावृत्ति भी हो चुकी है।। प्रकाशक अापके इस लेखकी जैन पत्रोंमें बड़ी प्रशंसा हुई महारायने भी प्रचारार्थ २६० पृष्ठ के सजिन्द ग्रन्थ थी व शोलापुर के दि० पं. जिनदास पार्श्वनाथ का मूल्य केवल ।।) ही रखा है।
शास्त्री जीने इसका मराठी अनुवाद भी प्रगट हिन्दी-भाषा-भाषी भी भट्टाचार्य के गंभीर लेखोंके किया था। अध्ययनसे वंचित न रहे, अतः मैंने इन लेखोंका २. जैनपुराणे श्रीकृष्ण-जिनवानी वर्ष २, अंक १ में हिन्दी अनुवाद भी करवाना प्रारम्भ कर दिया है। प्रकाशित व उक्त परिषदद्वारा स्वतन्त्र रूपसे दो सिलहट-निवासी जैनधर्मानुरागी रामेश्वरजी बाज- फरमा अपूर्ण मुद्रित । पेई ने मेरे इस कार्य में सहयोग देनेका वचन दिया ३. जैन त्रिरत्न-"भारतवर्ष" नामक प्रसिद्ध बंगीय है और "भारतीय दर्शनोंमें जैन दर्शनका स्थान" लेख मासिकपत्रमें प्रकाशित अग्राहयन सं० १३३१