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बंगीय-विहानों की बैन-साहित्यमें प्रगति
१५॥
science of thoughts from the Jain नीचे दी जाती है:
stand point; (प्रका• The Indian Phi
losphy and religion, page 129-136) अनुवादित
७. The Jain Theory of space (प्रका० उप१ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकारटीका "रत्नाकरावतारिका" युक्त पृ० ११५ से १२० जैनगज़ट फरवरी १९२७) का अंग्रेजी अनुवाद
5. The theory of Time in Jain Philo.
_sophy पृ० १० (जैनगजट १६२७ फरवरी) मूल ग्रन्थ श्वेताम्बर न्यायग्रन्थों में प्रमुख ग्रंथों में
E.Ancient concepts of matter:- Review से एक है । इसकी टीका बड़ी ही विचित्र एवं कठिन है,
of philosophy and religion V. III अंग्रेजीमें उसका अनुवाद करना कोई साधारण काम
N. I. P. 13 (जैनगजट मार्चसे दिसम्बर १९३०) नहीं है। इस अनुवादमें भट्टाचार्यजीका दर्शनशास्त्र,
१०. First principles of Indian Ethical संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा पर असाधारण अधिकार
systems:-The Philosophical Quarस्पष्ट है । बहुत वर्ष पहले प्रस्तुत अनुवाद "जैनगज़ट"
terly P. 308-314 में धारावाहिक रूपसे बहुत ममय तक निकला था । अब
११. The message of Mahavirn and श्रापका उसे पुनः शुद्धि और वृद्धि कर स्वतंत्र ग्रंथरूपसे
Krishna Vir 1929:-१० ७१-७६ प्रकाशन करनेका विचार है, पाश्चात्य दर्शनकि माथ
१२. A comparative study of the Indiसमन्वय-सूचक व तुलनात्मक टिप्पणियें आप शीघ्र ही
an Doctrine of non-soul from the लिखेंगे । सिंघी-ग्रन्थमालासे उमके प्रकाशनका
Jain standpoint. (प्र. The Indian प्रबन्ध कर भट्टाचार्य जीके उत्माहको बढ़ानेका श्रीमान्
philosophical congress page 129बहादुरसिंह जी सिंघी व मुनि जिनविजय जीसे अनुरोध है ।
136) मौलिक रचनाएँ
बंगला भाषा में २. Lord Mahavira T० ३८
१. पुरुषार्थसिद्धिउपाय अनुवाद-प्र० बंग-विहार ३. Lord Parsva पृ० ४०
अहिंसाधर्मपरिषद्, अपूर्ण मुद्रित एवं जिनवाणी ४. Lord Arishta nemi पृ.६०
वर्ष २, पृ०६५-१०६ प्रकाशक “जैन मित्रमंडल, देहली।" प्रकाशन सन् २. भारतीय दर्शनमाहे जैनदर्शनेर स्थान, प्र० मिन१९२६-१६२८-१९२६
वाणी वर्ष १, पृ०८ . Divinity in Jainism (जैनगज़ट मद्राससे ३. (जैनदृष्टिए) ईश्वर-प्र. जिनवाणी वर्ष १,५०२५४ प्रकाशित)
____४. जीव-प्र• जिनवाणी वर्ष १, पृ० १२६ &. A comparative Study in Indian
वर्ष २,५०१.६