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..::मनेनन्त'
सहित इस प्रकार किया जावे:- .. कोई गम पर, कोई घोड़े पर, कोई हाथी पर, कोई
को स्थापुण्याहवमन्युनिसपरितार सिंह पर, कोई सूअर पर, कोई अपद पर, कोई हंस व बावण संबौद् विजवि मम समाहिती पर चढ़ कर आता है। किसीकी भैंसेबादि सात भामाबाद न्याय स्वाहा, परिवबाप स्वाहा, पशु- प्रकारकी सेना, किसीकी मगर श्रादि सेना, किसीकी भराव साहा, महजाब स्वाहा, भग्नवे स्वाहा, अनि- ऊंट प्रादि सात प्रकारकी सेना, किसीकी सिंहादि बाप साहा, बसवाय स्वाहा, प्रजापतये स्वाहा।" सात प्रकारकी सेना, किसीकी घोड़ा श्रादि सात प्रकार
अनावृत यद, जिसकी पूजा कीजाती है, वह गरुड़ की सेना; किसीके हाथमें दंड, किसीके हाथ में तलवार पर सवार होते हैं। चार हाथोंमें चक्र, शंख प्रादि लिए किसीका आयुध वृक्ष किसीके हाथमें नागपाशादि होते जम्बूद्वीपके जम्बवृक्ष पर रहते हैं जयन्त,अपर- होता है । ज्योतिषेन्द्र जिनकी पूजा होती है दो है एक जित, विजय, वैजयंत उनके नाम है। पूर्वकी तरफ चन्द्रमा, जिसकी सिंहकी सवारी और दूसरा सूर्य उनको बलि दी जाती है। सोम, यम, वरुण, कुवेर ये जिसकी सवारी घोड़ा होता है। चार बारपाल है, जो दुष्टोंके वास्ते यमके समान है। इनके तिथि देवता १५ हैं जिनकी पूजा होती है, यह हाथमें भी कमशः धनुष, दण्ड, पाय और गदा होती है। भी यक्ष होते हैं। यह अग्नि, पवन, जल प्रादि पाठ अमवनि इस प्रकार दी जाती है-ओही को रक्तवर्ण- प्रकारके रूपके होते हैं। यद, वैश्वानर, राक्षस, नघृत, यन प्रायुध युवति जन सहित ब्रह्मन् भभुवः स्वः स्वाहा पनग, असुर, सुकुमार, पितृ, विश्वमाली, चमरवैरोचन, इमं सार्थे र अमृतमिव स्वस्तिकं गहाण । इसही प्रकार महाविद्य, मार, विश्वेश्वर, पिंडाशिन इनके नाम हैं। और मी दिकपालको बलि दीजाती है । जयादि देषियो. कुमुद, अंजन, बामन और पुषदंत इन चार द्वारपालोकी पूजा पदन्यसे कीजाती है। नाम इनके जया, की पूजा होती है। सर्वायह यकी पूजा होती है जो विजया, अजिता, अपराजिता; जमा, मोहा; स्तंभा, सफेद हाथी पर चदकर आता है। महावज यक्षकी स्तंमिनी है, इनके भी चार हाय होते हैं। पर्वतोंके . पूजा होती है, अष्टदिकन्याओंकी पूजा होती है, और सरोवरोंके कमलोंमें रहनेवाली देवियों की भी पूजा वास्तुदेवको बलि दी जाती है जो इस प्रकार है-पद कीजाती है नाम जेभी, ही. भूति, कीर्ति बुद्धि, लक्ष्मी देवको मांगी बड़े और भातकी बलि ब्रमाको भो शांति और पुष्टि है। ३२ प्रकारके इन्द्रोकी भी पूजा गांव खेस और घरों में रहता है, की दूध मिला हुआ होती है जिनमें भवनवासी और व्यन्तरके नाम असु- भात, इन्द्रको फूल; अग्निको दूध श्री, यमको जो रेन्द्र, नागेन्द्र, सुपरेन्द्र, दीपकुमारेन्द्र, उदधिकुमारेन्द्र, मेमेपर सवार हे तिल और शमी । नैऋत्यको तेल मिली स्तनितकुमारेन्द्र विद्युतकुमारेन्द्र, दिकुमारेन्द्र, अग्निः हुई खली। वरुणको दूध भात वाबुको हल्दीका वर्ण कुमारल्य, मातकुमारेन्द्र, किनरेन्द्र, किंपुरुषेन्द्र, महो कुवेरको सार अन । ईशानको घी दूध मिला हुना रगेन्द्र, गंधर्वेन्द्र, यक्षेन्द्र, राक्षसेन्द्र, भूतेन्द्र, और भात, पार्यको पूरी ला, और फल, विस्वस्तको उड़द पियांचन्द्र, इनमेंसे हर एक इन्द्रकी दो दो हजार और तिल, मित्रदेवको दही और दूब, महीपरको दूष देवियां है। इनमेंसे भी बो भैसे पर, कोई नवे पर, सबीन्द्रको पानकी लील, गपिन्द्रको काफूर केलर और