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ककी लकड़ीसे पकाया अन, दूध मिलाकर अग्निमें वायुकुमार, मेघकुमार, अग्निकुमार देवोंका बाहुति देखें । (१) मंगलको सैरकी लकड़ीसे आहाहन कर भूमि शुद्ध कर, नागकुमारको तृप्त भुने हुए गुड पी मिले हुए जौके सत्तसे और गुगल, करे । फिर द्वारपालदेवोंको पूजकर नागराजको सफेद धी, लाल इलायची, अगरकी धूपसे बाहुति देवे। चूर्णसे, कुवेरको पीलेसे; हरितदेवको हरेसे, रक्त(४) बुद्धको अपामार्गकी लकड़ीसे भात बना कर प्रभदेवको लालसे, कृष्णप्रभदेवको काले चूर्णसे, दूध गल राज पी से पाहुति देवे। (५) बृहस्पतिको शत्रुओं के नाश के वास्ते स्थापन करे । फिर अर्हतपीपलकी लकड़ीसे बनी हुई खीर, घी, धूपसे आहुति की पूजाकर १६ विद्या देवियोंकी पूजा पाहाहनादि देवे। (६) शुक्रको उंबरकी लकड़ी फागुकी लकड़ीसे करके अलग २ अष्टद्रव्यसे करे । फिर २४ जिनभुने हुए जो, गुड़, घी, की माहुति देवे (७) शनिको माताओंकी पूजा अद्रन्यसे ३२ इन्द्रोंकी समीकी लकड़ी, उड़द, तेल, चावल, राल, घी, . पूजा करे। फिर २४ यक्षदेवोंकी, फिर २४ यक्षीअगरकी पाहुति देवे । (८) राहुको दूबके ईधनसे देवियोंकी श्राहाहनादिके साथ अष्टद्रन्यसे करे । फिर पकाया हुआ गेहूँ आदिका चूर्ण, काजल, दूध, घी, द्वारपालोंकी, फिर चारदिशाओंके यक्षोंकी, फिर लाखकी आहुति देवे। (E) केतुको उड़द और कुलथीके अनावृत यक्षकी, फिर छत्रादि पाठ मंगल द्रव्योंकी चनको दर्भके ईधनसे पका कर पी कच्ची खेल पूजा अष्टद्रव्य से करे, और फिर अ आयुध ( हथिमिला कर पाहुति देखे।
. यार ) स्थापन करे। फिर आठ ध्वजा स्थापन करे । .... फिर परम बम बईतदेवकी पूजा कर भी आदि अब यहाँ, इस मौके पर, इन देवी देवताओंका देक्सिको बार बन्य चढ़ाये, फिर गंगा प्रादि देवियोंकों . कुछ स्वरूप भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है चढ़ाये, किर : सीवा नदीके महाकुरके देवोंको जो कि इनकी पूजा समय प्रतिष्ठाग्रन्थोंके अनुचढ़ाने, फिर लवणादधि, कालोदधिके समुद्रोंके सार वर्णन किया जाता है । वन, चक्र, तलवार, मुद्गर मागाचादि तीर्थ देवोको, फिर सीता सीतोदानदियोंके और गदाादि हथियारों को खाणी, वैष्णवी, बाराही, मागासादि तीर्थ देवताओंको असंख्स ब्रामाणी, लक्ष्मी, चामुंडा, कौमारी और इन्द्राणी धारण (अनगचित) :समुद्रोंके देवोंको, फिर जिनको लोक किये होती है। ये देवियाँ कोई ऐरावतपर, कोई गम मानते है से तीर्थ देवोंको, जल प्रादि अभद्रम्प चढ़ाये। पर, कोई मोर पर, कोई जंगलीसूबर मादि पर सवार सब ही जल देवताओंको प्रष्ट द्रव्य पूजासे प्रसब कर . होती है । ध्वजा भी जया, विजया, सुषमा, माला, सरोवरमें घुसे और कलशोंको पानीसे भरकर उन मनोहरा, मेपमाला, पया और प्रभावती नासकी देवियोंकलयोंको चन्दन, पुषमाला, दूब, दर्भ, मदत और के हाथमें होती है। १६ मियदेगियों नाम रोहिणी सरसोंसे पूजकर सौभाग्यवती स्त्रियों के हाथ मंडपमें प्रशसि, वासला, वाशा, जम्बुनदा, पुश्बदना, लेजाकर जिनेन्द्रदेवकी पूजा करे।
काली, महाकाली, गौरी, गांधारी, ज्वालामालिनी, आहेत आदिका पूजनकर क्षेत्रपालकी मानवी, रोटी, अच्युता, मानसी, मामाची साकी पूजा बखप्पसे करे । फिर वास्तुदेवकी पूजाकर, है। इनमें से कोई घोड़े पर सवार होती है, जहाथी