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कार्तिक, पीर निर्माण सं०२४४६]
वीतराग प्रतिमानोकी अजीव प्रतिष्ठा विधि
गावके गोवरके पिंडमादिसे अपने पाप नाश करनेके देवे, चन्द्रमा कुशल देवे, मंगल मंगल करे, युद्ध बुदि वास्ते आहेतोकी अपतरण क्रिया करै।
देवे, बृहस्पति शुभजीवन देवे, शुक कीर्ति देवे, शनि ___ वेदियाँ तय्यार करानेके बाद प्रतिष्ठाके पहले दिन बहुत सम्पत्ति देवे, राहु वाहुबल देवे, केतु पृथ्वी पर सब लोग सरोवर पर जावें । खूब सजी हुई प्रसन्नचित्त प्रतिष्ठा देवे, ऐसी प्रार्थना प्रत्येककी पूजा की जाये। स्त्रियाँ दूध, दही, अक्षतसे पूजित, 'फल से भरे हुए घड़ों- अलग २ ग्रह अलग २ तरहकी लकड़ी होम करनेसे को उठाये हुए साथ हों, प्रतिष्ठाचार्य जी और सरसोंको प्रसन्न होता है । सूर्य पाखकी लकड़ीसे, चन्द्रमा पलाससे मंत्रसे मंत्रित कर चारोतरफ बखेरता जावे, सरोवर पर मंगल खैरसे, बुद्ध अपाभार्गसे बृहस्पति पीपलसे, शुक्र पहुँचकर सरोवरको और वास्तुदेवको (जिसका कथन फल्गुसे शनि शमीसे, राहु दूबसे और केतु दाभसे ।
आगे किया जायगा) अर्घ देकर, वायुकुमार देवोंके प्रत्येकका अष्ट द्रव्यसे पूजन कर, इनही लकड़ियोंसे होम श्राहाननसे भूमिको साफ़कर, मेघकुमार देवोंके आहा- करना चाहिये । इन सबका पूजन करनेके बाद सातहनसे छिड़ककर, अमिकुमार देवोंके आहाहनसे अग्नि सात मुट्ठी तिल, शाली, धान और जो यह तीन अनाज, जलाकर, ६० हजार नागोंको पूजकर, शान्तिविधानकर पानी में डाले । पाहाहन सब ग्रहोंका उनके परिवार अर्हतका अभिषेक करे । फिर सरोवर (तालाब) को और अनुचरों मादि सहित इस प्रकार करेअर्घ देवे, फिर अहंत श्रादिकी पूजा करें। फिर जया पावित्य भागकर संबीपर् । श्रादि देवताओंका पूजन करके, सूर्य प्रादि नवग्रहोंका तिर । 30 मम सनिहितो भार । पूजन करें । सूर्यका रंग लाल है और वस्त्र, चमर, छत्र, मादित्याय स्वाहा । मादित्यपरिवनाथ साहा । पारिविमान भी लाल है । चन्द्रमा सफ़ेद है। मंगल त्यानुचराय स्वाहा । मादित्व महत्ताप स्वाहा । चन्मये लाल है, बुध और बृहस्पतिका रंग सोने जैसा है, शुक्र स्वाहा । अनिवाव स्वाहा । पवाय स्वाहा । मवापतये सफ़ेद है । शनि, राहु और केतु काले हैं। इनको इनही- स्वाहा । साहा । भूः स्वाहा । भुका स्वाहा । स्वा के समान रंगके द्रव्यसे पूजनेसे पानन्दमंगल प्राप्त स्वाहा । गमक सास्वाहापाराविधायक होता है। उनके समान रंगवाले प्रदतको रख, उनपर गवपरिखताब इदम, पावं, गंध, अपसाब, पुणे, वीर्य, उनहीके रंगके समान रंगे हुए दर्भके प्रामन रखे। पं चर्षि, कर्क, स्वस्तिक, पानामामहे नागकुमार शरीर पीड़ा करते है, यज्ञ धन हरते हैं, भूत प्रविणता र स्वाहा । पत्वा लियते पूना समोर स्थान भ्रष्ट करते हैं, राक्षसधातुवैषम्य करते हैं, इन ग्रहोंको का सवा पूजनेसे सब विघ्न दूर होजाते हैं और कापालिक, भिक्षु, अब जो अलग २ वस्तु जिस २ ग्रह को चढ़ाई वाणी, संन्यासी ( मिथ्याती साधुओं) के किये हुए उप- जाती है वह लिखते हैं (१) सूर्यको जास्वंती श्रादिके द्रव भी शांत होते हैं । तापस, कापालिक प्रादि भित्र २ फूल नारंगी श्रादि फल चढ़ावे और प्राकके इंधनसे प्रकारके मिथ्यात्वी साधु अलग २ इन ग्रहोंको पूजते हैं। पकाई हुई खीरकी आहुति दे, घी, गुरु, लङ्क से पूगे । कोई किसी प्रहको और कोई किसी ग्रहको, उन ही की (२) चन्द्रमा कोसफेद रंगके पुष्प, अक्षत और दूध पूजासे यांचलग २ मह प्रसव होते है। सूर्य शोषगुरु आदिसे पूजे, देवदारुकी लकड़ीका पूरा, बी, धूप