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________________ १०० अनेकान्त [वर्ष, किरण १ मन्दिरों, विद्यालयों तथा शिक्षा संस्थानोंमें संग्रह रामजी प्रेमी, बम्बईने प्रो० साहबको इस प्रन्थके करनेके योग्य है। . . . सम्पादनके लिये प्रेरित किया, उसीका फल मन्थका (२) वरामचरित-मूल लेखक, भी जटासिंह यह प्रथम संस्करण है और यह उक्त प्रन्थमालाका नन्दिाचार्य। सम्पादक, प्रोफेसर ए० एन० ४० वां ग्रन्थ है। उपाध्याय, राजाराम कालिज कोल्हापुर । प्रकाशक, प्रन्थका विषय उसके नामसे ही स्पष्ट है। पं० नाथूराम प्रेमी, मंत्री 'माणिकचन्द्र दिगम्बर यह 'वराज' नामके एक राजकुमारकी कथा है, जो जैनग्रंथमाला, हीराबाग, बम्बई ४ । साइज, अपनी विमाता मृगसेनाके डाह एवं षडयन्त्रके २०४३०, १६ पेजी। पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर कारण अनेक संकटोंमें गुजरता हुआ और ४९७ । मूल्य, सजिल्द ३) रु०। अपनी योग्यतासे उन्हें पार करता हुआ अन्तको यह प्राचीन संस्कृत ग्रंथ भी उन लुप्तप्राय जैन- अपना नया स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने में समर्थ प्रन्थोंमेंस है जिनके उद्धारार्थ-आजसे दस वर्ष हुआ और जिसने बादको जैन मुनि होकर भगवान. पहले भनेकान्तमें समन्तभद्राश्रम-विज्ञप्तियोंके नेमिनाथके तीर्थमें मुक्ति लाभ किया और इस द्वारा आन्दोलन उठाया गया था और पारितोषिक तरह अपना उत्कर्ष सिद्ध करके पूर्ण स्वाधीनताभी निकाला गया था। इसके उद्धारका सारा श्रेय मय सिद्धपदको प्राप्ति की। कथा रोचक है, ३१ इसके सुयोग्य सम्पादक प्रोफेसर ए० एन० (आदि. सोंमें वर्णित है और प्राचीन साहित्यका एक नाथ नेमिनाथ ) उपाध्यायजीको है, जिन्होंने सब अच्छा नमूना प्रस्तुत करती है। से पहले कोल्हापुरके लक्ष्मीसेन भट्टारकके मठसे प्रोत्साहबने इस प्रन्थका सम्पादन बड़ी योग्यइसकी एक पुरानी ताडपत्रीय प्रतिको खोज निकाला ता तथा परिश्रमके साथ किया है । पाप सम्पादन और उसका परिचय पूनाक 'एनल्स माफ दि कलामें खूब सिद्धहस्त हैं,इससे पहले प्रवचनसार भाण्डारकर प्रारियटल रिसर्च इन्स्टिटयूट' नामक और परमात्मप्रकाश । नामक अन्धका उत्तम अंग्रेजी पत्रकी १४ वीं जिल्द के अंक नं० १०२ में सम्पादन करके अच्छी ख्याति लाभ कर चुके हैं। प्रकट किया। साथही यह भी सप्रमाण प्रकट किया बम्बई यूनिवर्सिटीने मापके उत्तम सम्पादनके कि इस वरांगचरितके रचयिता प्राचार्य जटासिंह कारण ही इस अन्य के प्रकाशन में २५० १० की नन्दी हैं, जिन्हें जटिलमुनि भी कहते हैं और जो सहायता प्रदान की है, प्रवचनसारकी प्रस्तावना ई० सन् ७७८ से पहले हुए है-श्रीजिनसेनाचार्य पर भी वह पहले २५० रु० पुरस्कारमें दे पकी है कृत हरिवंशपुराणके एक उल्लेख परसे इसे जापन- और हालमें उसने प्रो० साहबको डाक्टर माफ चरितके कर्ता रविषेणाचार्यकी कृति समझ लिया लिटरेचर (डी० लिट०) की उपाधि से विभूषित गया था वह उस उल्लेखको ठीक न समझनेको समयकी विस्तृत समाजोपया के लिये देखो, गनतीका परिणाम था । उक्त परिचयको पाकर बैन सिदान्य भास्कर में प्रकाशित 'प्रवचनसार माणिकचन्द मधमालाके सुयोग्य मंत्री पं० नाथः संस्कार रामकस।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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