________________
कातिकवीर निर्माण सं०२४१६]
साहित्य-परिचय और समालोचन
समाचारको गतवर्षके अनेकान्तकी प्रथम किरणमें वे बधाईके पात्र हैं। उनकी प्रस्तावनाको पूर्णरूपसे ही प्रकट कर दिया था (पृ० १०३) और यह भी देखनेका यद्यपि मुझे अभी तक यथेष्ट अवसर नहीं सूचित कर दिया था कि ये ग्रंथ सिंघी जैन-ग्रंथ. मिल सका, फिर भी उसके कुछ अंशों पर मरसरी मालामें छप गये हैं और जल्दी ही भूमिकादिसे तौरसे नजर डालने पर उसमें विद्वानों के लिये सुसजित होकर प्रकाशित होने वाले हैं, परन्तु विचारकी काफी सामग्री मालम होती है । कितनी इनके प्रकारानमें पूरा एक साल और लग गया। ही बातें विशेष विचारके योग्य भी हैं; जैसे और इसलिये अब अक्टूबर में प्रकाशित होकर अकलंकका समय, जिसे उन्होंने विक्रमकी ७वी पाने पर मुझे सबसे पहले इस स्तम्भके नीचे इन्हीं शताब्दीके स्थानपर ८वीं-९वीं शताब्दी सिद्ध करनेका संचित परिचय देनेमें मानन्द मालूम होता है ! का यत्न किया है।
इस संग्रहमें 'न्यायविनिश्चय' के साथ उसके दिगम्बर सम्प्रदायके इन लप्तप्राय महत्वपूर्ण वादिराजसूरिकृत विवरणपरसे कारिकाओंके ग्रन्थरनोंका एक श्वेताम्बर-संस्था (सिंघी-जैनउत्थान-वाक्योंको ज्योंका त्यों तथा संक्षेपमें उद्धृत ज्ञानपीठ ) द्वारा उद्धार देखकर, जहाँ दिगम्बरकिया गया है, जिससे कारिकाओंका अर्थ समझने समाजकी अपने साहित्यके प्रति उपेक्षा-उदासीनता,
और उनके सम्बन्धको मालूम करनेमें आसानी हो; और कर्तव्यविमुखता पर खेद होता है वहाँ श्वेतीनों प्रन्थों पर जुदी-जुदी टिप्पणियाँ अलग दी ताम्बर भाइयोंको इस उदारता, दूरदृष्टिता और गई हैं; तीनोंका विषयानुक्रम भी साथमें लगाया गुणप्राहकताकी प्रशंसा किये बिना भी नहीं रहा गया है; ९ उपयोगी परिशिष्ट दिये हैं, जिनमें इन जाता। इसके लिये सिंपी जैनग्रंथमालाके सुसंचा. ग्रन्थोंके कारिकाओंकी अनुक्रर्माणकाएँ, अवतरण लक मुनि श्रीजिनविजय, उसके संस्थापक एवं वाक्योंकी सूचियाँ और सभी दार्शनिक तथा लाक्ष- पोषक उदारचेता बाबू बहादुरसिंहजी सिंघी और णिक शब्दोंकी सूची खास तौरस उल्लेखनीय हैं। इन ग्रंथोंके इस तरह प्रकाशनकी योजना तथा इनके अतिरिक्त ग्रंथके शुरूमें क्रमशः प्रथमालाके प्रेरणा करनेवाले समर्थ विद्वान प्रज्ञाचक्षु पं० सुखमुख्य सम्पादक श्री जिनविजयजीका 'प्रास्ताविक', लालजी विशेष धन्यवादकं पात्र हैं। इस प्रकारके पं० सुखलालजी संघवी दर्शनाध्यापक हिन्दू प्रयन निःसन्देह साम्प्रदायिक कट्टरताको मिटानेके विश्वविद्यालय, काशीका 'प्राकथन', न्यायाचार्य प्रधान साधन है, और इसलिये मैं इनका हृदयसे पं० महेन्द्रकुमारजीका 'सम्पादकीय वक्तव्य' और अभिनन्दन करता हूँ। महत्वपूर्ण प्रस्तावना' जो सब राष्ट्रभाषा हिन्दीमें अन्धकी छपाई-सफाई सब उत्तम हुई है, काराक लिखे गये हैं, सब मिलकर प्रन्धकी उपयोगिताको भी अच्छा पुष्ट लगाया है और जिल्द सुन्दर तथा बहुत ज्यादा बढ़ा रहे हैं। इस प्रथके सम्पादनमें मनोमोहक है। परिश्रमादिको देखते हुए मूल्य भी न्यानजीने काफी परिश्रम किया है और उस. अधिक नहीं है। संक्षेपमें अन्य विद्यानोंके अपने के कारण उन्हें जो सफलता मिली है उसके लिये पास रखने, मनन करने और नायजेरियों, मान