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________________ साहित्य-परिचय और समालोचन [अनेकान्त में 'साहित्य परिचय और समालोचन' नामका एक स्तम्भ रखनेका बहुत दिनोंसे विचार चल रहा है। मनवकारादि छ कारणों के वरा अबतक उसका प्रारम्भ नहीं हो सका था, अब इस वर्षके इसी प्रकसे उसका प्रारम्भ किया जाता है। इस स्तम्भके नीचे समालोचमार्थ तथा भेट स्वरूप प्राप्त साहित्यका परिचय रहेगा। सामान्यपरिचय प्रायः प्रालिके समय ही दे दिया आया करेगा-सामान्य मालोचन भी उसी समय हो सकेगा। विशेष परिचय और विशेष समालोचनका कार्य बादको यथावकाश हुआ करेगा और वह उन्हीं प्रन्थों-पुस्तकों भाविका हो सकेगा जिनके विषयमें वैसा करना उचित और आवश्यक समझा जायगा । हाँ, दूसरे विद्वान् यदि किसी ग्रन्थादिकी समालोचना खास अनेकान्तके लिये लिखकर भेजनेकी कृपा करेंगे तो उसे भी, उनके नामके साथ, इस स्तम्भके नीचे स्थान दिया जासकेगा। -सम्पादक] (१) अकलंकग्रंथत्रयम्--मूल लेखक, भट्टाक- सका, इमीमे वह माथमें नहीं दिया जासका । इन लकदेव । सम्पादक, न्यायाचाय पं०महेन्द्रकुमारजी स्वोपज्ञभाष्यों तथा प्रमाण मंप्रहके अकलंक द्वारा जैन शास्त्री, न्यायाध्यापक स्याद्वाद महाविद्यालय रचे जानेकी मबमे पहले सूचना अनेकान्त द्वारा बनारस । प्रकाशक, मुनि जनविजय, संचालक सन् १९३० में की गई थी और इनको तथा 'सिंघी जैनग्रंथमाला, अहमदाबाद-कलकत्ता। न्यायविनिश्चय मूलको खोज निकालनेकी प्रेरणा बड़ा माइज पृष्ठ सं०, सब मिलाकर ५२० । मूल्य, भी की गई थी। माथ ही, समन्तभद्राश्रम-विज्ञप्ति सजिल्द ५)रु०। नं०४ के द्वारा दूसरे ग्रन्थोंके माथ इन ग्रन्थों को यह कलकत्ताकं प्रसिद्ध श्व० संठ श्री बहादुर भी खोजने के लिये पारितोषिककी सूचना निकाली. सिंहजी सिंघीकी ओरम उनके पूज्य पिता श्री गई थी । लुप्तप्राय जैन ग्रन्थांकी खोज-सम्बन्धी डालचन्दजी सिंघीकी पुण्यस्मृतिमें निकलने वाली मेरे इम आन्दोलनकं फलस्वरूप इन ग्रंथोंका उद्धार 'सिंघी जैन ग्रंथमालाका १२ वाँ प्रन्थ है । इममें होनस मेरी महनी प्रसन्नताका होना स्वाभाविक है, श्रीभट्टाकलंकदेव-विरचित उच्चकोटिक न्यायविषयक और इसलिये मैंने इन प्रन्थोंके उद्धार संबन्धी शुभ सोन संस्कृत प्रन्थोंका संग्रह है, जिनमेंमें एकका .. से देखो, भनेकान्त प्रथम वर्षकी प्रथम किरणमें प्रकाशित नाम 'लघीयत्रय' है, जो कि प्रमाण-नय-प्रवचन लुप्तप्रायजैन ग्रंथोंकी खोज-विषयक विज्ञप्ति नं०३ और विषयक तीन लघु प्रकरणोंको लिये हुए है; दूसरेका तीसरी किरणमें प्रकाशित 'पुरानी बातोंकी खोज' नाम 'न्यायविनिश्चय' और नीमरेका 'प्रमाण मंग्रह' शीर्षकके नीचे, प्रकलंक ग्रन्थ और उनके स्वोपभाष्य' है । पहले तथा तीसरे ग्रंथकेसाथ खुद भट्टाकलंकदेव विरचित स्वोपसभाष्य भी लगा हुआ है, नामका उपशीर्षक लेख। दूमरे प्रन्थका स्वोपसभाष्य उपलब्ध नहीं हो देखो, अनेकान्त वर्ष । किरण .
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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