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________________ जगत्सुन्दरी-प्रयोगमालाकी पूर्णता [सम्पादकीय] चानेकान्तकी गत 11वीं किरण में प्रकाशित 'जगत्सु. भी मालूम हुमा कि ग्रंथ महामशुख, बेडंगा और नन्दरी-प्रयोगमाला' नामक लेखपर मैंने जो सम्पा सम्पादनकलासे विहीन छपा है। मालूम होता है कि दकीय नोट दिया था, उसमें यह प्रकट किया गया था उसकी प्रेसकापी किसी भी प्राकृत जानने वालेके द्वारा कि जगरसुन्दरी-प्रयोगमालाकी जितनी भी प्रतियोंका संशोधित और संपादित नहीं कराई गई और न मूल अबतक पता चला है वे सब अधूरी हैं और पूर्णप्रतिकी प्रति परसे कापी करने वाला पुरानी ग्रंथ-लिपिको ठीक तनाशके लिए प्रेरणा की गई थी। उक्त लेखके छप- पढ़ना ही जानता था । परन्तु खैर, इस अन्य प्रति परसे जाने के बाद मेरे पास बम्बईसे एक सूचोपत्र पाया, इतना तो जरूर मालूम होजाता है कि जगत्सुन्दरीजिससे मालूम हुमा कि 'जगत्सुन्दरी उपयोगमाजा' प्रयोगमाला ग्रंथ अधूरा नहीं रहा बल्कि पूरा रचा गया नामका कोई ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। यह देखते ही है। उसके शुरूके ३४ अधिकार के कदी नया नसीराबाद मुझे ख़याल हो पाया कि हो-न-हो यह जगरसुन्दरी की प्रतियोंमें सुरचित हैं और शेष पाठ अधिकार प्रयोगमाला नामका हो ग्रंथ होगा, और इसलिये मैंने मुद्रित हो चुके हैं। इस तरह ग्रंथकी पूर्णता हो जाती उसको मँगानेका विचार स्थिर किया; इधर एक दो दिन है. और यह प्रसन्नताकी बात है। अवश्यही किसी बाद ही प्रोफेसर ए.एन. उपाध्यायजीका पत्र कोल्हा- भंडारमें ग्रन्थकी प्राचीन पर्ण प्रति भी होगी, जिसे खोज पुरसे प्राप्त हुमा, जिसमें उन्होंने उसी सूचीपत्रके हवाले से कर इन अशुद्ध प्रतियोंके पाठोंको शुख कर लेनेकी उक्त ग्रन्थका उल्लेख करके उसे मंगाकर देखनेकी प्रेरणा जरूरत है। की। अतः मैंने सुहृदर पं. नाथुरामजी प्रेमीको बम्बई उक्त मुद्रित प्रतिमें ग्रन्थकारकी प्रशस्ति भी बगी लिख दिया कि वे उक्त यन्यकी एक प्रति शीघ्र खरीदकर हुई है, जिससे यह स्पष्ट मालम होजाता है कि यह भेज देखें । तदनुसार उन्होंने ग्रन्थको प्रति मेरे पास ग्रंथ यशाकीर्ति मुनिका ही बनाया हुचा है और इसभेजदी। जिये जिन दो गाथाभोंके पाठको लेकर यह कल्पना कीअन्य पाते ही मैं उसी दिन रोगशय्यापर पड़े हुए गए . गई थी कि यह ग्रन्थ पशःकीर्ति मुनिका बनाया हुधा न हो कर उनके किसी शिष्यका बनाया हुआ है वह ही उस पर आदिसे अन्त तक सरसरी नज़र डाल गया। देखनेसे मालम हुमा कि यह १३५ पटोंका पम्राकार ठीक नहीं रही। इस अम्बके यश कीर्तिकृत होनेकी हालत ग्रन्थ जगत्सुन्दरी-प्रयोगमालाका ही एक अंश है, और गाथाओं के क्रमाक साधारण सूचना-वाक्यों, वह है उसका ३५ वें 'कौतूहल' अधिकारसे लेकर ४३२ गद्यभाग तथा संधियों पर भी क्रमशः डाले गये हैं 'स्वरोदय' अथवा 'स्वरोपदेश' नामक अधिकार तकका और बहुधा समासयुक्त पदोंको अलग अलग और अन्तिम भाग-प्रकाशकने भी यह प्रकट किया है कि हमें समासविहीन पदोंको मिलाकर छापा गया है. इस ग्रन्थका इतना ही भाग उपलब्ध हुमा है, पूरा ग्रन्थ तरह कितना ही गोलमाल अथवा बेढंगापन पाया जिस किसीके पास हो वे हमें सूचित करें। साथ ही,यह जाता है।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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