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________________ ६५० अनेकान्त [अाश्विन, वीर-निर्वाण सं०२४६५ ज्ञानके प्रवर्तक महाप्रभु भगवान महावीरका कैसा साधा- कि इस अनुवादको किसी योग्य मनुष्य-द्वारा संशोधित रण जीवनचरित्र लिखा गया है। कराकर छपाया जावे। जल्दबाजी करके परिश्रम और ___ अब मैं इसके अंग्रेजी अनुवाद पर भी कुछ शब्द धर्मकी व्यर्थ और लोग-हँसाई न कराई जावे । मैं सलिखनेकी महाराजजीसे श्राज्ञा चाहता हूँ। पिछले वर्ष माजसे इस बातकी अपील करता हूँ कि भगवान् महादेहली महाराजजीका दर्शन लाभ हुआ । श्रापके शिष्य वीरका जीवनचरित्र पहिले हिन्दी भाषामें ही लिखनेके महाराज गणीजीने मुझे बताया कि 'इस जीवनचरित्रका लिये किसी बड़ी-सी संस्थाके साथ एक अलग विभाग अंग्रेजी अनुवाद भी कराया जा रहा है ।' मै इस शुभ खोलें, जिसमें कुछ योग्य मनुष्य चर्चा और खोज द्वारा भावनापर महाराजजीको बार बार बधाई देता हैं। भगवानके जीवन-समाचार प्राप्त करनेका प्रयत्न करें और लेकिन फिर भी महाराजकी इस शुभ भावनाको सादर कोई धुरंधर भावककलाविज्ञ विद्वान उसको लिखे। इसके हृदयमें स्थान देते हुए महाराजकी कार्यप्रणाली पर फिर बाद दूसरी भाषाओंमें अनुवादकी ओर बढ़ा जावे। तीखी आलोचना लिखता हूँ। महाराजजीने मुझे टाइप अन्तमें मैं यह विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने किसी किये हुए कई सौ पन्ने दिखाये । उस पन्द्रह बीस-मिनटके द्वेषवश यह श्रालोचना नहीं लिखी । श्रद्धाके साथ इस समयमें उन पन्नोंको जहाँ तहाँसे पढ़कर मैं इसी निर्णय जीवनचरित्रको पढ़कर हृदयमें जो भाव स्वाभाविक ही पर पहुँचा कि यह अंग्रेज़ीका जीवनचरित्र हिन्दीवाले आये थे उन्हींको लिखा है। संभव है लेख लिखनेका का कोरा शब्द अनुवाद हो रहा है । इसपर कुछ समय अभ्यास न होने व भाषाज्ञानकी कमीके कारण में इस तक मैंने महागजजीसे चर्चा भी की। मैंने कहा कि अालोचनामें महाराज जीके प्रति अपनी श्रद्धासे विचलित 'महाराज ! अँग्रेजीमें लिखनेका उद्देश्यतो विदेशियों हुअा दीखता हूँ, परन्तु वास्तवमें ऐसा नहीं है। मेरी और मुख्यतया अँग्रेज़ोंके ही लिये हो सकता है, इसलिये महाराजजीके प्रति श्रद्धा है, आपके व्याख्यानों पर मैं अंग्रेजी जीवन-कला-शैली अँग्रेज़ मनोवति और अँग्रेज़ों- मुग्ध हूँ । मेरा यह सब लिखनेका अभिप्राय केवल के ईसाई धर्मके विश्वासके विपरीत जहाँ सिद्धान्तकी इतना है कि मेरे मतानुसार महाराजजीने जैनधर्म-साहित्य टक्कर होती हो वह विशेष टोका टिप्पणीके साथ यह में एक बड़ी भारी कमीको अनुभव करके, उसको पा जीवनचरित्र लिखाना चाहिये वरना इस कोरे अनवादसे करने के लिये भक्ति और धर्म प्रभावके श्रावेशमें, जीवनलोगहँसाई और उपकारके बदले अपकार होगा। महा. चरित्र कलापर ध्यान न देते हुए, और संकुचित विचाराजसे कुछ देर उसपर चर्चा करनेके बाद मैं तो इस रोके दायरेमें रहकर इस जीवनचरित्रको लिखा है और निर्णय पर पहुँचा था कि महाराजजीको उस अनुवादसे अनुवाद आदि कार्य करा रहे हैं, जिसके कारण न बहुत बड़े उपकारकी गलत आशा है। इस हिन्दीकी इस हिन्दी जीवनचरित्रमें महाराजजीकी श्राशा फली है जीवनीका मेरी बुद्धिके अनुसार केवल छाया अनुवाद और न आगे ही ऐसी संभावना है। बस यह मेरे इस होने की आवश्यकता थी और वह भी एक अंग्रेज़ी भाषा लेखका निचोड़ है । यदि इस लेख में कोई भी ऐसा शब्द के धुरन्धर पंडित, अाचरणकी सभ्यताके प्रेमी और हो जिसका अर्थ कटाक्ष रूप भी हो तो मैं उदार पाठकोंसे महावीर भक्त-द्वारा । यह अनुवाद सम्भव है अभी छप- निवेदन करता हूँ कि वह ऐसा अर्थ कभी न लगावें । कर तैयार न हुआ हो। मैं समाजके विद्वानोंसे यह क्योंकि ऐसी मेरी भावना नहीं है। अन्तमें मैं महाराजजी निवेदन करता हूँ और महाराज जीसे प्रार्थना करता हूँ को वंदना करता हुआ इस लेखको समाप्त करता हूँ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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