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________________ ६३४ अनेकान्त [भाद्रपद, वीरनिर्वाण सं०२४६५ उसे देखकर सारी जनता हाहाकार करने लगी। देखने आवेंगे तो कितनी मिलाई करोगे ? लड़कापर बन क्या सकता था, बेचारे सन्तोष करके लड़का तो देख ही रहा हूँ। बैठ रहे। ___ पुत्र वियोगसे सुखदेव बीमारसे रहने लगे। विलासपुरमें ला० प्यारेलाल एक धनाढ्य पत्नी सोचती थी कि होनहार जो थी सो मनुष्य हैं । इनके चार पुत्र हैं। प्यारेलालने इन तो हो चुकी । घरमें लड़की कुँआरी है। इसके चारों पुत्रोंके पढ़ाने-लिखानेमें कुछ कमी नहीं फेरे तो फेरने ही हैं। ऐसा हो कि इसको अपने रक्खी । साथ ही, वे उनको नम्र, सुशील तथा हाथों पराये घरकी करदें। यह चिन्ता उसको हर- धर्मात्मा बनाने में भी दत्तचित्त रहे । आज ज्येष्ट दम सताने लगी। पुत्र विशालचन्द्रकी बी० ए० में फर्स्ट डिविजनसे __होते होते जब कुछ दिन बीत गये, तो सुखदेव- पास होनेकी खबर मिली है । सारा घर गीत-वासे उनकी पत्नीने कहा-"जो दुःख भाग्यमें बदा दित्रकी ध्वनिसे ध्वनित होरहा है ! कहीं मित्रोंको था सो तो हो चुका, अब लड़की सयानी हो गई प्रतिभोज कराया जारहा है, कहीं नृत्य होरहे हैं। है, इसके लिये कहीं घर-वर ढूँढना चाहिये । छुट्टीके दिन समाप्त होते ही प्यारेलाल विशा किया क्या जाय, काम तो सभी होंगे। नहीं है तो लचन्द्रको इंजीनियरिंगमें दाखिल कर जब वापिस एक खुशाल ही नहीं है। घर आए तब भोजन श्रादिमे निमटकर दम्पति मुखदेव-क्या करूँ, इन मुमीबतोंकी मुझे इस प्रकार वार्तालाप करने लगेखबर नहीं थी, मैं तो सोचता था कि खशालकी पत्नी-कहिये, विशाल दाखिलेमें आगया है. नौकरी होनेवाली है, किमी योग्य लड़कीसे इसका या नहीं ? विवाह करके घरको स्वर्ग बनाऊँगा । सरलाका प्यारेलाल-हाँ, आगया है । लाओ मिठाई व्याह भी ठाठ बाटसे करूँगा; मगर मुझ अभागे- खिलाओ । अब क्या कसर है, कालेजसे निकलते की बांछा क्यों पूरी होती ? जो कुछ रुपया था ही ढाईसौसे लेकर पन्द्रहसौ तककी तनख्वाह पहले पढ़ाई में लगादिया, फिर जो कुछ बचा, मिलेगी। इलाजमें खत्म कर दिया पत्नी-ईश्वरकी दयासे वह सफलता प्राप्त आजकल जिधर देखो पैसे की पृछ है। लड़की करे। हमारी तो यही भावना है। २० सालका चाहे सुंदर हो या बदसूरत, विदुषी हो या मूर्ख होगया । अवतक तो उसने परिश्रम ही परिश्रम हो; मगर जिसने अधिक रुपया देदिया उसकी किया है; आराम कुछ देखा ही नहीं। अबतो उसके सगाई लेली। किससे कहूँ, क्या करूँ ? भाग्यमें सिरपर मौर बंधा देखनेकी मेरी प्रबल उत्कण्ठा लेना बदा नहीं था, वरना जैसा दान दहेज आता होरही है । घरमें अकेली ही रहती हूँ। कोई बच्चा वैसा देकर छुट्टी पाता । जहाँ कहीं जाता हूँ, पहला तक पास नहीं है । बहू आजाय तो घरमें चाँदना सवाल यह है कि सगाईमें कितना दोगे? लड़की नज़र आवे । आप तो रिश्तेके लिये हाँ करते ही
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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