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________________ वर्ष २, किरण ११] मैं तो बिक चुका! ६३५ नहीं, अब तो सब पढ़ाई खतम हो चुकी, सिर्फ देनेके लिये तय्यार हूं। यह साल बाकी है सो अब तो शादी करके मेरी प्यारे०-भाईसाहब ! लड़की देखकर रिश्ता मनोकामना पूरी करो। लेंगे। यह तो आप जानते ही हैं कि मिलाईमें २१ ___ प्यारेलाल-अच्छा अब तुम्हारा ही कहना अठमाशीके दिये बिना इज्जत नहीं है। दो हजार करूँगा लेकिन बहका अभी चावलग रहा है, जब रुपये सगाईमें और दो हजार शादीमें भी देना बाजायगी तब रात-दिन लड़ाई रहा करेगी। कहो, होगा। लड़ोगी तो नहीं ? आगन्तुक यह सुनकर दंग रह गया और यह ___ पत्नी- आप तो वही मसल करते हैं कि कहकर कि अच्छा, "मैं आपको घर जाकर पत्र “घरमें सून न कपास जुलाहेसे ठेगमठेगा" बहू तो लिखूगा" चल पड़ा । यह आगन्तुक वही मोहन भाई नहीं, लड़ाईकी बात शुरू करदी। था जो खुशालचन्द्र का मित्र था । सुखदेवने ही ये बातें हो ही रहीं थीं कि बाहरसे नौकर आया मोहनको लड़कीके रिश्ते के लिये भेजा था। कि आपको एक बाबू बुलाते हैं। प्यारेलाल उठकर मोहनने सुखदेवसे आकर सब हाल कह गए। सुनाया । सुनकर सुखदेव सोच विचारमें पड़ गये। आगन्तुक-जयजिनेन्द्र देवकी। ऐसा लड़का मुझे कहीं न मिलेगा। वे पत्नीसे कहने प्यारेलाल-जयजिनेन्द्र देवकी साहिब ! लगे-इतना रुपया कहाँसे लाऊँ,क्या करूँ ? गहना कहिये, कुशल क्षेम है? आपका निवास स्थान कहाँ भी कोई नहीं है जिसे बंच दू । हाँ, यह रहनेका है ? ( कुर्सीकी ओर संकेत करते हुए) यहाँ मकान है, इसस चाहे जो करलो। बिराजिय। पत्नी-सोचनेसे क्या होता है ? इम रिश्तेको आगन्तुक बैठ गया । तदनन्तर प्यारेलालने जान दीजिये, कहीं और देख ले, आखिर इतना कहा-भोजन तय्यार है, आप स्नानादिसं निर्वत्त रुपया कहाँस आवेगा। होजायें। सुखदेव-मैं तो किसी अच्छे लड़केसे ही आगन्तुक-मैं तो खाना खाचुका हूँ । यह रिश्ता करूँगा । यदि तुम्हारी समझमें आवेतो यह आपकी मेहरबानी है। मैं ने सुना था कि आपका मकान बंचदें और कुछ रुपया रुक्का लिखकर लेलें। लड़का शादी करने योग्य है सी में अपनी बहनका शादी करने के बाद हम दोनों कहीं नौकरी करके रिश्ता उनके साथ करना चाहता हूँ। लड़की सुन्दर कजं उतार देंगे । तुमको मिलाईका काम अच्छा तथा गृहकार्यमें दक्ष है। आता ही है, तुम मिलाई करना, मैं नौकरी कर प्यारेलाल-अजी भाई साहब ! लड़कीकं लूंगा। सिलाईस हमारा गुजारा होता रहेगा और विषयमें आपने कहा सो तो ठीक है; लेकिन देन नौकरीसे कर्ज अदा होता रहेगा। लेनकी बात भी बतलाइये। पत्नी-जैसी आपकी इच्छा हो, मैं उसीमें आगन्तुक-जो कुछ आप कहंगे मैं यथाशक्ति सहमत हूँ । निःसन्देह लड़की अच्छे घर चली
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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