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________________ प्रभाचन्द्र के समयकी सामग्री (ले०-श्री० पं० महेन्द्रकुमार न्याय-शास्त्री, ) वाचस्पति और जयन्तका समय अाचार्य प्रभा चन्द्र के समय-निर्णयमें न्याय- म० म० गंगाधर शास्त्री-द्वारा "जातं च सम्बद्ध "मंजरी कार भट्ट जयन्त तथा प्रशस्तपाद- चेत्येकः कालः' इस वाक्यको वाचस्पति मिश्रका भाष्यकी व्योमवती टीकाके रचयिता व्योमशिवा- लिख देना ही मालूम होता है। चार्यका ममय-निर्णय अत्यंत अपेक्षणीय है; क्योंकि वाचस्पति मिश्रने अपना समय 'न्यायसूचीप्रभाचन्द्र के प्रमय कमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचंद्र- निबन्ध' के अन्तमें स्वयं दिया है । यथापर न्यायमंजरी और व्योमवतीका स्पष्टतया "न्यायमूचीनिवन्धोऽयमकारि सुधियां मुदे । प्रभाव है। श्रीवाचस्पतिमिश्रेण वसुस्वंकवसुवत्सरे ॥" जयन्तकी न्यायमंजगीका प्रथम संस्करण संस्करण इम में ८९८ वत्सर लिखा है। विजयनगर सिरीजमं सन् १८९५ में प्रकाशित म. म. विन्ध्येश्वरीप्रसादजीने 'वस्मर' हुआ है। इसके संपादक म० म. गंगाधर शास्त्री शब्द सं शक संवत लिया है।। डा० शतीशचन्द्र मानवल्ली हैं। उन्होंने भूमिका, लिग्वा है कि- विद्याभूषण विक्रम संवत लेते हैं।। म० म० 'जयन्तभट्टका गंगेशीपाध्यायने उपमानचिन्तामणि गोपीनाथ कविराज भी लिखते हैं कि 'तात्पर्य( पृ० ६१ ) में जरन्नैयायिक करके उल्लेख किया टोकाकी परिशुद्धि-टीका बनाने वाले प्राचार्य है । जयन्तभट्टने न्यायमंजरी (पृ० ३१२ ) में उदयनने अपनी 'लक्षणावली' शक सं० ९०६ वाचस्पनि मिश्रको तात्पर्य-टीकामे "जातं च (981 A. D.) में समाप्ती है। यदि वाचस्पतिसम्बद्ध चेत्येकः कालः" यह वाक्य 'प्राचार्य:' का समय शक सं० ८९८ माना जाता है तो इतनी करके उद्धृत किया है। अत: जयन्तका ममय जल्दी उम पर पग्शुिद्धि-जैसी टीका बन जाना वाचस्पति (841 A. D.) से उत्तर तथा गंगेश संभव मालूम नहीं होता। ( 1175 A. D.) से पूर्व होना चाहिये। अत: विक्रम संवत ८९८ (841 A. D.) डा. शतीशचन्द्र विद्याभूषण भी उक्त वाक्य यह वाचस्पति मिश्रका समय प्रायः सर्वसम्मत के आधार पर इनका ममय ९ वों में ११ वीं है। वाचस्पति मिश्रने वैशेषिक दर्शनको छोड़कर, शताब्दी तक मानते हैं। अत: जयन्तको वाचस्पति- प्रायः सभी दर्शनों पर टीकाएँ लिखी हैं। सर्व. का उत्तरकालीन मानने की परम्पराका आधार न्यायवात्तिक-भूमिका, ५० १४५। *देखो, न्याय कुमुदचन्द्र के फुट नोट्स, तथा प्रमेय कमल + हिस्टी आफ दि इण्डियन लाजिक, पृ० १३३ । मा० की मोक्षचर्चा तथा म्योमवतीकी मोक्ष चर्चा । हिस्टी एंड विश्नोग्राफी माफ दि न्याय-वैशेषिक x हिस्टी भॉफ दि इण्डियन लाजिक, १०१४६ । Vol III. पृ०१०१।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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