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________________ ६२ अनेकोन्त वर्ष २, किरण १ प्रथम इन्होंने मंडन मिश्रके विधिविवेक पर 'न्याय- गुरुरूपसे स्मरण करते हैं तम जयन्तको वाचस्पति कणिका' नामकी टीका लिखी है; क्योंकि इनके के उत्तरकालीन नहीं मान सकते। यद्यपि वाचस्पतिदूसरे प्रन्थों में प्रायः इसका निर्देश है। उसके बाद ने तात्पर्य-टीकामें 'त्रिलोचनगुरुन्नीत' इत्यादि मंडनमिश्रकी ब्रह्मसिद्धिकी व्याख्या 'ब्रह्मतत्त्व- पद देकर अपने गुरुरूपसे 'त्रिलोचन' का उल्लेख समीक्षा' तथा 'तत्वबिन्दु' इन दोनों ग्रन्थोंका किया है, फिर भी जयन्तको उनके गुरु अथवा निर्देश तात्पर्य-टीकागें मिलता है, अत: उनके गुरुसम होने में कोई बाधा नहीं है। एक व्यक्तिके बाद 'तात्पर्य-टीका' लिख गई। तात्पर्य टीकाके अनेक गुरु भी हो सकते हैं। साथही 'न्यायसूची-निबन्ध' लिखा होगा; क्योंकि अभी तक 'जातश्च सम्बद्ध चेत्येकः कालः' न्यायसूत्रोंका निर्णय तात्पर्य-टीकामें अत्यन्त इस वचन के आधार पर ही जयन्तको वाचस्पतिअपेक्षित है । 'सख्यतत्वकौमुदी' में तात्पर्य-टीका का उत्तरकालीन माना जाता है। पर, यह वचन उद्धृत है, अत: तात्पर्य टीकाके बाद 'सख्यितत्व वाचस्पतिकी तात्पर्य-टीकाका नहीं है, किन्तु न्यायकौमुदी' की रचना हुई । योगभाध्यकी तत्व... वार्तिककार श्री उद्योतकरका है ( न्यायवार्तिकवैशारदी टीकामें 'सांख्यनत्वकौमुदी' का निर्देश पृ० २३६ ), जिस न्यायवार्तिक पर वाचस्पतिकी है, अत: निर्दिष्ट कौमुदीके बाद 'तत्ववैशारदी' । तात्पर्यटीका है। इनका समय धर्मकीर्ति (635रची गई। और इन सभी ग्रन्थोंका भामती' 650 A. D.) से पूर्व होना निर्विवाद है। टीका में निर्देश होने से 'भामती' टीका सब के ___ म०म० गोपीनाथ कविराज अपनी 'हिस्ट्री अन्त में लिखी गई है। एण्ड बिब्लोग्राफी ऑफ न्यायवैशेषिक लिटरेचर' जयन्त वाचस्पति मिश्रके में लिखते हैं * कि-वाचस्पति और जयन्त समकालीन वृद्ध हैं समकालीन होने चाहिएँ; क्योंकि जयन्तके प्रन्थों वाचस्पति मिश्र अपनी आद्यकृति 'न्याय- पर वाचस्पतिका कोई असर देखने में नहीं आता। कणिका' के मङ्गलाचरणमें न्यामञ्जरीकारको बड़े 'जातश्च' इत्यादि वाक्यके विषय में भी उन्होंने महत्वपूर्ण शब्दों में गुरुरूपसे स्मरण करते हैं। सन्देह प्रकट करते हुए लिखा है कि यह वाक्य ___ किसी पूर्वाचार्य का होना चाहिये । वाचस्पतिके अज्ञानतिमिरशमनी परदमनी न्यायमञ्जरीरुचिराम् पहले भी शङ्कर स्वामी आदि नैयायिक हुए हैं, प्रसवित्रे प्रभवित्रे विद्यातरवे नमो गुरवे ॥ जिनका उल्लेख तत्वसंग्रह श्रादि प्रन्थोंमें पाया इस श्लोक में स्मृत 'न्यायमञ्जरी' भट्ट जयन्त. जाता है। कृत न्यायमञ्जरी-जैसी प्रसिद्ध 'न्यायमञ्जरी' ही म० म० गङ्गाधर शास्त्रीने जयन्तको वाच. होनी चाहिये । अभी तक कोई दूसरी न्यायमञ्जरी स्पतिका उत्तरकालीन मानकर न्यायझरी (पृ० सुनने में भी नहीं आई । जब वाचस्पति जयन्तको सरस्वती भवन सेरीज़ III पार्ट । यथा:
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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