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अनेकान्त
[माद्रपद, वीर-निर्वाण सं०२४६५
विद्वान्-शिष्यादि कौन कौन थे इस विषयमें साधनाभाव इस ग्रंथके अधिकारोंकी गाथाएँ तथा स्थानीय प्रतिके प्रशस्ति-विकल होनेके कारण हम निश्चयपूर्वक कुछ भी नहीं लिख सकते । केवल
प्रारंभिक परिभाषादि प्रकरणकी गाथाएँ ५४, अनेकान्तमें प्रकाशित दक्कनकालिज पनाकी प्रतिके लिपि- १ ज्वराधिकारकी ४७, २ प्रमेहकी ६, ३ मूत्रकृच्छकी संवत्के आधार पर इतना कह सकते है कि ये १५८२ १२, ४ अतिसारकी २१, ५ ग्रहणीकी ५, ६* पाण्डुकी विक्रमसे पहले हुए हैं। यशःकीर्ति नामवाले जैनमुनि ७, ७ रक्तपित्तको १०,८शोषकी ११, ६ श्रामवातकी ६, कई होगये हैं
१० शूलकी ५, ११ विशूचिकाकी १०, १२ गुल्मकी १-प्रबोधसार ग्रंथके कर्ता ।
१८, १३ प्रदरकी १४, १४ छर्दि की ६, १५ तृष्णाकी २-जगत्सुन्दरीके कर्ता, इनके गुरुका नाम धणेसर, २१, १६ हर्षकी १५, १७ हिक्काकी ७, १८ कासकी १७,
सं० १५८२ वि० पर्व, पर कितने पर्व यह अज्ञात है। १६ कुष्ठकी ४७, २० शिरोरोगकी २४, २१ कर्णरोगकी ३–सुनपत नगरके पट्टस्थ-१५७५ वि० में होनेवाले १७, २२ श्वासकी ७, २३ व्रणकी= ३३, २४ भगंदरकी
गुणभद्र भ०के दादागुरु । ये माथुर संघके पुष्कर ६, २५ नेत्ररोगको ३६, २६ नासारोगकी ६, मुखरोगकी गणमें हुए हैं, समय १४७५-१५०० विक्रमाब्दके ६, २८ दंत रोगकी १३, २६ कंठरोगकी १०, ३० स्वर लगभग ।
भेदकी ८, ३१ शाकिनी-भूतविद्याकी २६०, ३२ बाल४-मूलसंघीय पद्मनंदि भ० के प्रशिष्य सकलकीर्ति के रोगी स्वमत ७२, रावणकृतकुमारतंत्रके अनुसार ७७,
शिष्य और पांडवपुराणदिके कर्ता शुभचन्द्र के गुरु ३३ पलित हरणकी अनुमान ३००,३४ वमनकी १०, समय . १५७५से पूर्व
३५ कौतूहलाधिकार अपूर्ण उपलब्ध प्रमाण २४०, ५-६ माघनंदि तथा गोपनंदिके शिष्य; इनका वर्णन शेष अनुपलब्ध ८ अधिकारों के नामकी गाथाएँ इस
"जैन शिलालेखमंग्रह" के ५५ वें लेख में है। प्रकार हैं७-विश्वभूषणके शिष्य, जो माथुर संघके नंदीतटगण ... के हैं; समय १६८३ विक्रमके लगभग ।
३ चंद्रप्रभु चरित्रके कर्ता । ( ये तीन ग्रन्थ जयपुर
पाटोदीके मंदिरमें है) ४ रनकीर्तिके दीचित शिष्य यशःकीर्ति नामके और भी कई मुनि हुए होंगे, हमें
और गुणचन्द्र के गुरु । नेमिचन्द्र के पट्टशिष्य । उनके विषय में हाल जात नहीं है।
६ हेमचन्द्र के प्रपद्य और पभनन्दिके पट्टशिष्य तथा क्षेम+ इनका नाम 'पार्श्वभवांतर' नामक प्राकृत
कीर्तिके गुरु (लाटीसंहिता प्र०)। . गणितसार संग्रहकी
कातिक गुरु (लाटासाहता प्र०) ग कायमें नसकित्तिके बजाय जयकीति है।
एक प्रति वि०सं०१८२३ में अपने हाथसे लिखने वाले। इनके अतिरिक्त 'यशःकीर्ति' नामके जिन और
-संपादक विद्वानोंका परिचय अथवा उल्लेख मेरे रजिष्टर (ऐति
* इसमें राजवंध सयका भी वर्णन है। हासिक खाताबही)में दर्ज स प्रकार है
१ गुणकीर्तिके शिष्य और पांडवपुराण तथा हरि- 1 इसमें भ्रम व अग्निवर्धनका भी वर्णन है। वंशपुराण प्रा. के कर्ता । ललितकीर्तिके शिष्य और = इसमें नाडी प्रण गंडमालाका भी वर्णन है। धर्मशर्माभ्युदयकी 'संदेहस्वान्तदीपिका' टीकाके कर्ता। इस अधिकारके भन्तमें संधि नहीं है।