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वर्ष २, किरण ११]
जगत्सुंदरी-प्रयोगमाला
बाबा-गाह गा, बत्तीसा सत्ततीस बोदना समिळण दुजवेता परतंति ()मण तात्ये रा(प)ईखवा हियागे सायम्यो बहतीसोच ॥२॥ जे सुन्दरे विकल्वे गुणा विदोसविषा ति ॥ क्सितत्तस्सहिषारो उहतासीलो मुणी िपणतो। दोसेहि तेहि गहिये हिवाम (1) सेसगुपचीप महत्वा कामतवाहियारो चालीसो एकताल तियविग्यो ।२६। जापंति सेक्ष णमिमो शबाब परमाए भत्तीए ॥on बादास गंधजुत्ती तेहान सरोवई उ उपएसो।
इन सात गाथानों के बाद "समिळवावविज्" ३६ जाला-गर्दभ (क्षुद्ररोग), ३७ लता (क्षुद्र विष), श्रादि वे ५ गाथाएँ है जो अनेकान्त पृ. ४ की ३८ राईण्हय ( ? ), ३६ विषतत्व (तंत्र), ४० कामतस्व "विषगुरुपायमूळे" नामकी गाथाके बाद प्रकाशित हुई (तंत्र), ४१ तियविज (स्त्रीवैध ?), ४२ गंधयुक्ति ?, हैं। उनका इस प्रति परसे इस प्रकार पाठभेद * पाया ४३ सरोवई (स्वरोत्पत्ति ?)
जाता है-गाथा ८-पुद्यविज्जे (ज), प्राउविजतम्रो इस तरह इसग्रंथमें पूरे ४३ अधिकार है । अनुप- (विजं तु ), गाथा ६-सुललियपयबंध ( पवयण) लन्ध ८ अधिकार पनाकी प्रतिमें अवश्य होंगे; ऐसी भुवणम्मि कव्वं ( सारं ); गाथा १०-अम्हाण पुणो संभावना है।
परिमियमईण (अम्हण पुणो परिमियमयण ), विद्धि ग्रंथका प्रारंभिक भाग
मणसेरण ( वेहसवणेण); गाथा ११-काममूलं (मोक्वं) 1 मपणकरिणो विदिल्यं संजमणहरेहि जेण कुंभवडं गाथा १२-हारीयचरय (गग्ग) सुस्सुवविजयमत्ये तं भुवणे सुमइंदं । यमहजए पसरिषपभावम् ॥१॥ अयाणमाणो वि(उ)। जोगेहि तवयमाला (जोगा तहवि) तरणमह जोहणाई भसरीरो,कोहमोहमयहीणो मणामि जगमुन्दरीणाम बीको परमम्मि पए निरंजयो को वि परमप्या ॥२॥ इन १२ गाथाओं से प्रादि की ४ गाथाओंमें क्रमसे तएणमहसुपाएवि(वी) जीए(जाय)पसाराव सवलसत्यावं मुमतींद्र अथवा सुमृगेंद्र (मुमइंद) को सिद्ध और भुत गच्छति मत्ति पारं बुद्धिविहीणा विडोयम्मि ॥३॥ देवीको तथा अपने गुरु धनेश्वरको प्रणाम किया है, सुवचा मग्मि (ज्म) बमोजस्स (जाब) पसाराव गाथा५-६-७में सज्जन-दुर्जनको नमस्कार किया है और एत्य संपत्तं
१२वीं गाथामें अपनी लघुता प्रकट करते हुए ग्रंथकारने गमिळय तस्स चलखे भावेश धनेसरगुरुस्स am
जगस्मुन्दरीयोगस्तवकमाला कहनकी प्रतिज्ञा की है। गमिण परममत्तीए सज विमनसुन्दरसहावे
चिकित्साके एक अधिकारका नमूना जे विम्गुबे विकम्बे इवित्ति (1) दोसा र अति ॥ सामणिरामो बाळ गहमीदोसंबए बोए । •अनेकान्तमें किसी किसी अधिकारका नाम राखत
- सकं बसपरिमाणं वा अणुवासणं होई ॥१॥
माहवा बहु विरुवाई मलसंघ परइ पुण धम्मस्म । पप गया। को पाठ मराब है।
मा गंपिय भाषा महब सिही अंधखो दोह॥२॥ प्रो. ए. एक उपायावतीकी प्रतिमें 'भक्के मजा-अमोष-वि महोसह दारिमं जबा सहय। समुइंद' पाठ है। इसीतरह और भी अन साधारण एकम्मि कमो बाबुमो पीचो गहबीए (५) बासेह ॥ पाउमेद है।
* कोलो पाठ अनेकान्तक है।
राम