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________________ वर्ष २, किरण १० महारानी शान्तला ५८१ दोषानेव गुशी-बोषि सुभगे सौभाग्यभाग्यं तव भवणवेल्गोलके शिलालेख न०५६ (१४३) में इनकी व्यक्तं शान्तखदेवि! बमवनौ शक्नोतिकोवा कवि बड़ी प्रशंसा की गई। महारानी शान्तलाके मामा रावते राज-सिंहीव पावें विधमहीभृतः। एवं उनके पुत्र बलदेव भी पके जैनधर्मावलम्बी थे। विस्माता शाम्तखाल्यासा बिनागारमकारपत् ॥" बलदेवने मोरिंगेरेमें जब समाधिमरण किया था तो उनकी महारानीका जीवन जैन-धर्ममय रहा, इसमें कुछ माता और भगिनीने उनके स्मारक रूपमें एक पत्याला भी सन्देह नहीं । एक ज़माना ऐसा था कि बड़े-बड़े राजे- (वाचनालय ) स्थापित किया और सिंगिमय्यके समामहागजे एवं रानी महारानी सभी जैनधर्म के पृष्ठ-पोषक थे। धिमरण पर उनकी भार्या और भावजने शिलालेख श्रवणबेलगोलके लेख नं० ५३ (१४३ ) से प्रमाणित लिखवाया । लिखनेका मवलम यह है कि इन शान्तलाहोता है कि शान्तलाका स्वर्गवास 'शिवगंग' में हुभा देवीके नहर (मातरह) बाले जैनधर्मके एकान्तभक्त थे। था । शिवगंग बेंगलूरसे लगभग ३० मील दूरी पर शान्तलादेवीने हासनसे पूर्व ७ मील दूरी पर अब.. शवोंका एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। स्थित वर्तमान 'ग्राम'नामक गाँवो यताकर शान्तिनामअब एक शंका उठ सकती है कि जिनभक्ता शा- उसका नाम रखा था। मालूम होता है कि इन्हें अपने न्तला अपने परमपुनीत श्रवणबेल्गोलको बोड़कर शरीर- नामपर बड़ा प्रेम था । यही कारण है कि इस गाँवका त्यागके लिये शैवोंके इस तीर्थस्थानमें कैसे पहुँच गई? ही नाम नहीं, अपने द्वारा अवशोल्मोलमें निर्मापित बहुत कुछ संभव है कि वह अस्वस्थ रही हो, जलवायु- उक्त विशाल एवं सुन्दर मन्दिरमें भी स्वनामानुकूल परिवर्तन के लिये वहाँ गई हो और वहीं दुर्भाग्यवश शान्तिनाथ भगवान् की प्रतिमा विराजमान की थी। उनका शरीर-पात होगया हो । क्योंकि यह स्थान समुद्र- ग्राममें अाज जो एक विशाल तथा मनोश शिषमन्दिर पृथ्से ४५६६ फीट उन्नत एक श्रारोग्य-प्रद पहाड़ी जगह मौजूद है संभव है कि वह पहले जिन मन्दिर रहा हो। है। अन्यथा, शान्तला भी अपनी श्रद्धय माताकी तरह सुनने में आता है कि पूर्व में यहाँ र जैनियोंकी पर्याप्त पवित्र तीर्थस्थान श्रवणवेल्गोलमें ही जाकर समाधि- संख्या थी। पर १९२० में जब मैं यहाँपर गया था तब मरण-पूर्वक अपना देह त्याग करतीं । शान्तलाके पिता सिर्फ एक ही जैनीका घर था । वह भी अब है कि नहीं मारसिंगय्य शैव थे । अतः संभव है कि उन्होंने शिवगं- पता नहीं है। गको ही शान्तलाके स्वास्थ्य सुधारका स्थान चुन लिया महारानी शान्तलाके श्रद्धयगुरु श्री प्रभाचन्द्र सिहो । जो कुछ हो, पिता शैव होने पर भी पूज्य माता दान्तदेव एवं प्रगुरु श्री मेधणन्द्र विद्यदेव उम समयके माचिकच्चे कहर जैनी थी । बल्कि गुणवती पुत्री सुविख्यात प्राचार्योमम थे। इनका उल्लेख दक्षिणके स्वर्गवाससे उनके दिल पर गहरी चोट पहुँची, जिससे वे कई शिलालेखम पाया जाता है। यही महारानी शाआमरण मुक्त नहोसकी। इन्होंने अन्तसमयमें श्रवण- न्तलादेवीका मंक्षिप्त परिचय है। इन पर काफी प्रकाश बेल्गोलमें जाकर एकमासके अनशनव्रतके पक्षात् श्री. डालने की मदिच्छा होते हुए भी मामग्रीके प्रभावसे प्रभाचन्द्र, बद्धमान एवं रविचन्द्र इन प्रसिद्ध प्राचार्यो- इस समय इस निरूपाय संवरण करना पड़ा। की देख-रेखमें सन्यास-विषिसे देहत्याग किया था ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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